शिरोमणि कमेटी में उभरा विवाद

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अवधि तो पांच वर्ष तक होती है परन्तु कई बार भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत केन्द्र सरकार की ओर से समय पर चुनाव न करवाने के दृष्टिगत इसकी अवधि दोगुणा से भी बढ़ जाती है। कमेटी के विगत चुनाव वर्ष 2011 में हुए थे परन्तु इसके बावजूद इसके अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों का आंतरिक चुनाव प्रत्येक वर्ष होता है। पिछले समय में हरियाणा की अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन से इसका प्रत्येक पक्ष से भारी नुकसान हुआ है। यह अलग कमेटी कैसे अस्तित्व में आई तथा किन पड़ावों से गुजरी, यह भिन्न विस्तार का विषय है, परन्तु इससे शिरोमणि कमेटी काफी सीमा तक कमजोर अवश्य हुई है। एक दशक भर से इसके कामकाज को लेकर अनेक विवाद भी उठते रहे हैं जिसके लिए अकाली दल (ब) के नेताओं की कटु आलोचना भी की जाती रही है। 
पिछले वर्षों में भी इन विरोधी स्वर वाले नेताओं की ओर से कमेटी के सदस्यों पर आधारित पदाधिकारियों द्वारा चुनाव में पाला बदलने के यत्न अवश्य किये जाते रहे हैं परन्तु वे इसमें सफल नहीं हो सके। दशक भर से ही अकाली दल (ब) को सम्पन्न हुए राजनीतिक चुनावों में भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। विधानसभा में भी तथा प्रदेश की राजनीति में भी इसका आधार सिकुड़ता चला गया। उत्पन्न हुई इस स्थिति में अकाली दल नेतृत्व को बदले जाने की आवाज़ें भी उठीं। उस समय सुखदेव सिंह ढींडसा एवं रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा जैसे टकसाली नेता पार्टी से अलग हो गये थे।  आज भी ऐसे स्वर उठते दिखाई देते हैं। अकाली दल के साथ भावुक धरातल पर साझ रखने वाले लोग भी नेतृत्व में परिवर्तन की इच्छा रखते हैं। प्राय: ऐसा प्रभाव भी बना रहा है कि नेतृत्व में परिवर्तन से छिन्न-भिन्न हुए अकालियों जिनके अन्य कई दल बन गए हैं, में एकता एवं आपसी निकटता आने की अधिक संभावना बन सकती है जिससे अकाली दल का पुन: उत्थान देखा जा सकता है परन्तु विगत सम्पूर्ण काल के दौरान ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला जिसके दृष्टिगत अकाली दल के समर्थक एक बड़े वर्ग में निराशा उत्पन्न हुई दिखाई देती है। अपनी अवधि पूर्ण कर चुकी कमेटी के चुनाव कब होंगे, इस संबंध में भी अभी कुछ स्पष्ट हुआ दिखाई नहीं देता परन्तु  अब पदाधिकारियों के वार्षिक चुनाव के समय कमेटी की अध्यक्षता को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है, उसका एक कारण पार्टी एवं कमेटी में उत्पन्न हुई शिथिलता भी कहा जा सकता है। 
मौजूदा प्रधान हरजिन्दर सिंह धामी नेक इन्सान हैं तथा पूर्ण विशाल-हृदयता के साथ अपने कर्त्तव्य निभा रहे हैं परन्तु उनके मुकाबले में उतरे बीबी जगीर कौर भी पहले कई बार कमेटी की प्रधान रह चुकी हैं। उनमें साहसिक फैसले लेने एवं कमेटी के भीतर सचारू गतिविधियों को चलाए रखने की भी सामर्थ्य है। इस बार यदि बीबी जगीर कौर ने मौजूदा प्रधान को चुनौती दी है तो इस विवाद के बढ़ने के लिए भी नेतृत्व पर ही हऱफ आता है। हम ये पंक्तियां किसी भी उम्मीदवार की विजय-पराजय को लेकर नहीं लिख रहे परन्तु यह अवश्य महसूस करते हैं कि इससे अकाली दल (ब) और कमज़ोर हो सकता है तथा अकाली कतारों में और भी निराशा उत्पन्न होगी। इस पार्टी की राजनीतिक कमज़ोरी अन्य पार्टियों की शक्ति बनेगी जिसका प्रभाव पंजाब की समूची राजनीति पर पड़ेगा।  


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द