अच्छे कर्मों का फल


एक बार राजा भोज ने अपने दरबार में पधारे ज्योतिषियों से यह पूछा
कि उसने अपने पूर्व जन्म में ऐसे कौन से शुभ कर्म किये थे कि
जिसके बदले में उसको राज काज का सुख भोगना नसीब हुआ है।
ज्योतिषियों ने जब राजा भोज से यह बात सुनी तो वे चुप हो गये,
लेकिन एक ज्योतिषी ने गंभीर होकर कहा राजन। मुझे कल तक का
समय दे मैं अवश्य बता दूंगा। 
वक्त के मुताबिक अपने पूरे आंकलन के साथ उस ज्योतिषी ने
कहा-राजन! मेरा कहना मानते हुए इस शहर में अमुक नाम की एक
भंगन है उससे जाकर पूछ लीजिये आपको पता लग जायेगा।
ज्योतिषी के कहे अनुसार राजा भोज अगले ही दिन शहर की उस भंगन
के पास जा पहुंचे और उससे अपना प्रश्न दोहराया, तो भंगन ने
कहा-महाराज शहर के बाहर अमुक पहाड़ी पर एक साधु बैठा तप कर
रहा है। उससे जाकर पूछ लीजिये। 
राजा भोज उसी पल रवाना होकर पहाड़ी पर जा पहुंचे, वहां साधु धूनी
रमाये बैठा था। कुछ समय बाद जब साधु का ध्यान भंग हुआ तो राजा
भोज ने उसके सामने हाथ जोड़कर अपने बारे में पूछा तब साधु ने राजा
की विनम्रता से प्रसन्न होकर अपना ध्यान विष्णुपुरी में ले जाकर वहां
से विमान धरती पर उतारा और उसमें राजा भोज को बैठाकर बैकुंठ ले
गया। जहां उसने राजा को स्वर्ग लोक की सैर करवायी व वहां बनने
वाले सुन्दर महल दिखाये। वहां साधु के यह पूछने पर कि 


यह महल किसके लिए बन रहे हैं तो बताया गया कि ये महल राजा
भोज के लिए बनाये जा रहे हैं। कुछ समय स्वर्ग लोक में रहने के बाद
राजा भोज व साधु पुन: धरती पर लौट आये और फिर साधु ने बताया-हे
राजन! पहले जन्म में मैं और तुम तथा शहर में सफाई करने वाली वह
भंगन आपस में तीनों भाई बहन थे, और यह देखो पहाड़ो में भटकने
वाली वह नग्न और पागल स्त्री हमारी माता थी। यह सुनकर राजा भोज
सन्न रह गये। 
साधु ने आगे बताया कि हमारा पिता जब हम सब छोटी उम्र के ही थे
तो गुजर गये थे। हम लोग काफी गरीब थे। एक बार हम सब दो दिन
से भूखे थे। बड़ी मुश्किल से अपनी माता कहीं से आटा मांग कर लायी
व उसने चार रोटियां बनायी व पकी हुई एक-एक रोटी हम सभी को दे
दी, इतने में एक साधु हमारे द्वार आया और भीख मांगने लगा। 
हमारी माता ने कहा हम स्वयं भूखे हैं तुम्हे रोटी कहां से दें? लेकिन
साधु रोटी लेने की रट लगाकर खड़ा रहा। आखिर में मां ने तंग आकर
गुस्से से साधु की धोती खींचकर उसे नंगा कर दिया, पर साधु कुछ न
बोला, तो हमारी बहन ने उस पर कचरे का टोकरा भरकर डाल दिया,
मैंने चूल्हे से जलती हुई लकड़ी उसे दे मारी, लेकिन तुमने सोचा कि
साधु वाकई भूखा है। अत: तुमने अपनी पूरी रोटी उसे देकर क्षमा मांग
ली। रोटी लेकर साधु चलता बना। 
हमने जैसा बर्ताव उस साधु से किया था उसी का फल हमें अंगले जन्म
में यानि कि अब भोगना पड़ रहा है। तुमने अच्छे कर्म किये, उसी के
बदले तुम राज-काज का सुख भोग रहे हो। मुझे गर्म आग के सामने
शरीर तपाना पड़ रहा है, हमारी बहन को भंगन का कार्य कर गंदगी
उठानी पड़ रही है और अपनी मां पहाड़ों में नग्नावस्था में पागल होकर
भटक रही है। यह सुनकर राजा भोज की आंखे नम हो गयी तब साधु
ने उनसे कहा राजा दु:खी होने की आवश्यकता नहीं है, यह तो कर्मो का
फल है, जैसा करोगे, वैसा भरोगे, हमारे साथ भी यही है। राजा भोज
साधु की बात सुनकर अपने महलों की और लौट गये। सो, कर्मो का
फल हर एक को मिलता है अत: अच्छे कर्म सभी को मनुष्य जन्म में
करने चाहिए तभी वह अगले जन्म में भी सुखी रह सकता है। 
(सुमन सागर)