आज अ़खबार दिवस पर विशेष अ़खबार पढ़ने की आदत बनायें
दोस्तो, राष्ट्रीय अ़खबार दिवस, प्रति वर्ष 29 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिवस, इस बात की याद दिलाता है कि हिंदुस्तान में पहली बार 29 जनवरी, 1780 को पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था जिसका नाम ऽ॥द्बष्द्मद्ग4%ह्य क्चद्गठ्ठद्दड्डद्य त्रड्ड5द्गह्लह्लद्गऽ था। इसको %ष्टड्डद्यष्ह्वह्लह्लड्ड त्रद्गठ्ठ ्नस्र1द्गह्म्ह्लद्बह्यद्गह्म् के नाम से भी जानते थे और यह हिन्दुस्तान का पहला साप्ताहिक अ़खबार था ।
आज, राष्ट्रीय अ़खबार दिवस के अवसर पर मैं अपने पाठक साथियों को याद दिलाना चाहती हूँ कि आजकल लोगों में अ़खबार पढ़ने की आदत में काफी कमी आ रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों का पुस्तकें पढ़ने का रुझान भी लगभग समाप्त हो गया है। कई शोध निष्कर्षों से सामने आया है कि डिजीटल मीडिया की तुलना में प्रिंट मीडिया का मानव मस्तिष्क पर 21 प्रतिशत ज़्यादा अच्छा और देर तक रहने वाला प्रभाव पड़ता है ।
आज के इस खास अवसर पर, हम यह प्रतिज्ञा ले सकते हैं कि हम अ़खबार पढ़ने की आदत को अपने जीवन में फिर से पैदा करें।
आज के इस राष्ट्रीय अ़खबार दिवस पर मैंने कुछ पंक्तियां लिखी हैं जो आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहती हूं :
हमारा अ़खबार
ये अ़खबार हमारे जीवन में
उमर के हर पड़ाव से जुड़े हैं
इन्हीं को देख देख कर
तो हम सब बड़े हुये हैं।
सुबह की चाय भी है अधूरी
अगर हाथ में न हो अ़खबार
तभी तो बेसब्री से रहता है
सबको इसका इंतज़ार
चाहे घर हो या
नुक्कड़ वाली दुकान
ऑफिस की कैंटीन हो
या गांव का मचान
ये अ़खबार मह़िफल जमा ही देते हैं
अगर राजनीतिक मुद्दे पर विचार मिल गये
तो बैठे-बैठे दोस्त भी बना ही देते हैं।
दोस्तो, ऐसा लगता है कि बस
वर्ष, महीने और तारीखें ही बदलती हैं
अ़खबार तो प्रतिदिन वही है
कुछ ख़बरें झूठी तो कुछ सही हैं
कहीं राजनीतिक उथल पुथल के चर्चे
कहीं दर्ज हैं प्रतिदिन
लूटपाट के पर्चे धोखाधड़ी के
कहीं दहेज लोभियों की ख़बरें
फिर भी यही उम्मीद,
कि कहीं कुछ तो सुधरे
शिक्षा संबंधी योजना
नारी जगत में चेतना
पेड़ लगाओ
बेटी बचाओ
न जाने कितने अभियान
अ़खबार लाते हैं हमारे दरम्यान।
किस्से बच्चियों पर फैंके गए तेजाब के
हश्र युवाओं के नशे और शराब के
अ़खबार एक आईना दिखाता है
समाज में क्या हो रहा है
यह बार-बार बताता है
हर नागरिक देश को बचाए
यह पाठ भी हमें पढ़ाता है।
अ़खबार सभी का रखता है ख्याल
चाहे गृहिणी हो या खिलाड़ी
विद्यार्थी हो या कोई अनाड़ी
व्यापारी हो या नेता
छोटा बड़ा हर अभिनेता
सभी वर्ग इसका हिस्सा होते हैं
अ़खबार में इनके तमाम किस्से होते हैं
ये अ़खबार जीते जी हर लेखनी
को कोई कोना देते हैं
और मरने के बाद भी
हाशिये उनके नाम कर देते हैं।
न जाने कितनों को
मिली है इससे पह्चान
कितने व्यक्तित्व की
बनायी है इसने शान।
अ़खबार ही तो है जो
वास्तव में हमें जगा रहा है
समाज के उत्थान के लिए
हमें प्रतिदिन हिला रहा है।
यह मौका भी है
यह स्थान भी है
अपनी आवाज़ उठाने का
हर सोते को जगाने का।
अ़खबार पढ़ें, अ़खबार पढ़ायें
अपने परिवार को इसका हिस्सा बनाएं।