जंग-ए-आज़ादी यादगार पर संकीर्ण राजनीति बंद करें

आमतौर पर माना जाता है कि सिख इतिहास रचते हैं, परन्तु उसके बारे लिखते कम ही हैं। हमने कभी सोचा नहीं था कि पूरे विश्व में, प्रत्येक देश में वहां के पुरातन इतिहास का विवरण संग्रहालयों (म्यूज़ियमों) में संभाल कर रखा जाता है। आप कहीं भी जाएं, हज़ारों वर्ष की कहानी एक फिल्म की तरह आपको संग्रहालय में मिल जाएगी। आज मैं इस लेख के माध्यम से पंजाब में संग्रहालयों के इतिहास बारे जानकारी देना चाहता हूं। 1947 में देश की आज़ादी के बाद पंजाब का विभाजन हुआ। हमारी राजधानी पहले शिमला और फिर चंडीगढ़ में बनी थी। पंजाब में जब एम.एस. रंधावा चंडीगढ़ के कमिश्नर बने तो उन्होंने शहर में एक संग्रहालय बनवाया, जो अधिकतर कला व संस्कृति के बारे था। 1975 में ज्ञानी ज़ैल सिंह, मुख्यमंत्री पंजाब ने फिरोज़पुर के निकट फेरू शहर में सिखों तथा अंग्रेज़ों की जंग का संग्रहालय बनवाया था। सरदार कुलदीप सिंह नारंग तत्कालीन मुख्य सचिव पंजाब ने पहली बार पंजाब सरकार में म्यूज़ियम कल्चर एवं टूरिज्म का अलग विभाग 1980 में बनवाया था। मुझे गर्व है कि मुझे इस विभाग का चार्ज दिया गया था। 
सबसे पहले मैंने खटकड़ कलां में शहीद भगत सिंह का संग्रहालय बनवाया और भगत सिंह की प्रतिमा वहां लगवाई। सरदार जगमोहन सिंह जो भगत सिंह के भांजे थे, उन्होंने इसमें बड़ी सहायता की। अमृतसर राम बाग में महाराजा रणजीत सिंह का संग्रहालय बनवाया जिसमें लंदन तथा पैरिस से ऐतिहासिक वस्तुओं की कापियां करवा कर रखी गई थीं। आज अमृतसर में यह विदेशियों के देखने वाला स्थान है। उच्चा पिंड संघोल जो मोरिंडा के निकट है, वहां एक संग्रहालय बनवाया गया जो पंजाब की टैक्सला संस्कृति से जुड़ता है। सरदार प्रकाश सिंह बादल जो पंजाब के 17 वर्ष मुख्यमंत्री रहे हैं, के शासन में आनंदपुर साहिब में हुई ‘विरासत-ए-खालसा’ की स्थापना अपने-आप में एक इतिहास है। इसका निर्माण आरंभ करने के लिए 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने 100 करोड़ रुपये की सहायता दी थी। पंजाब सरकार ने सरदार बरजिन्दर सिंह हमदर्द सम्पादक ‘अजीत’ की अध्यक्षता में एक बोर्ड का गठन किया था, जिसमें सरदार सुखदेव सिंह ढींडसा, डा. दलजीत सिंह चीमा तथा सरदार डी.एस. जसपाल आई.ए.एस. तथा इस लेख का यह लेखक सदस्य थे। इसकी पूरी रूप-रेखा इस कमेटी ने बनाई थी। सरकार बदलने के कारण यह कार्य पिछड़ गया और जब स. बादल पुन: मुख्यमंत्री बने तो ज़ोर-शोर से इसका निर्माण करवाया गया। इसके पूर्ण होने के बाद एक अजूबे की भांति विश्व भर के सिखों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना। पंजाबी हमेशा पूरे विश्व भर में भारत की आज़ादी के लिए की गई कुर्बानियों पर गर्व करते हैं। 1849 में अंग्रेजों का पंजाब पर कब्ज़ा हो गया था उसके बाद भारत की आज़ादी की लहर पंजाब में शुरू हो गई थी। महात्मा गांधी या पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म से पहले बाबा राम सिंह नामधारी ने कूका लहर की शुरूआत की थी। 86 नामधारी तौपों के साथ मालेरकोटला में शहीद कर दिये गये थे। इससे पहले महाराज सिंह ने अकेले ही अंग्रेजों की नाक में दम करके रख दिया था। पूरा भारत हैरान हो गया था जब कनाडा और अमरीका में रहते सिख भारत में आकर अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने लगे थे। किसी को याद भी नहीं था कि 80 सिख गदर लहर में फांसी पर लटकाये गये थे। हम कभी भारत वासियों को बता ही नहीं सके कि काले पानी की जेल में 2646 देश भक्त कैद थे और उनमें से 2147 पंजाब के योद्धा थे। गुरुद्वारा लहर, बब्बर अकाली लहर, कामागाटामारू जहाज़, क्या-क्या बयान किया जाये। यह इतिहास के पन्ने हमने खून से लिखे थे। जलियांवाला बाग के साके ने अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया था। शहीद भगत सिंह, करतार सिंह सराभा और ऊधम सिंह जैसे बहादुर योद्धा शहीद हो गये लेकिन उनकी गाथा केवल हमारे मन में ही रही।
मुझे याद है जब 6 नवम्बर 2016 को करतारपुर में जंग-ए-आज़ादी यादगार का उद्घाटन हुआ था तो मैंने अपने भाषण में यह कहा था, ‘कि पंजाबी संघर्ष करके इतिहास बनाते हैं, लेकिन लिखते नहीं। आज यह परंपरा खत्म होनी चाहिए। अब पहली बार आज़ादी का इतिहास हमेशा के लिए सम्भाल दिया गया है। इसका श्रेय सरदार डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द और उनकी टीम व पंजाब सरकार को जाता है। जिन्होंने जी.टी. रोड पर 25 एकड़ ज़मीन पर यह यादगार बना दी है।’ यह म्यूज़ियम भारत में देश के परवानों को समर्पित है। मेरी राय में यह पहला म्यूज़ियम है जहां आज की तकनीक का उपयोग करके आज़ादी का हर साका अलग गैलरी में दिखाया गया है जब भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्री श्री मेघवाल वहां आये तो उन्होंने कहा था कि सारे भारत के लोग इसकी यात्रा करें। मैंने संसद के स्पीकर को एक बार निवेदन किया था कि संसद के सभी सदस्य इसको आकर देखें ताकि देश के लिए पंजाबियों द्वारा दी गई कुर्बानियों को वह याद कर सकें। मैं इस बात के लिए कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का भी धन्यवादी हूं जब उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर जो बादल सरकार के समय इस यादगार का रह गया काम पूरा करवाया था। कैप्टन ने पंजाबियों द्वारा एक और बड़ी सेवा की है जो अमृतसर में सिख सेना का म्यूज़ियम बनाकर सेना के इतिहास को भी सम्भाला गया है। आज मुझे बड़ा अफसोस है कि पंजाब में जंग-ए-आज़ादी यादगार करतारपुर के नाम पर संकीर्ण राजनीति होने लगी है। यह म्यूज़ियम पूरे पंजाब की विरासत है। एक पार्टी या व्यक्ति की नहीं। किसी ने भी बनवाया हो, इससे पंजाब का सिर ऊंचा हुआ है। सदियों तक हमारी नसलें यहां आकर अपने बुजुर्गों को नतमस्तक  होंगी। जो आजकल समाचार पत्रों में इसके बारे मैं पढ़ता हूं यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस म्यूज़ियम का सबसे ऊंचा टावर सभी पंजाबियों के सिर की पगड़ी है। अब क्या इतने सालों बाद इस टावर पर लगे सरिये और सीमेंट देखे जाएंगे?
अंत में मेरा निवेदन है कि म्यूज़ियम हमारी की गई कुर्बानियों व अणख की निशानी है। इनका सम्मान किया जाना चाहिए। 


-पूर्व एम.,पी., पंजाब
मो-98681-81133