उत्तराखंड की चार धाम यात्रा

आदि शंकराचार्य द्वारा देश के चार पृथक-पृथक कोनों में स्थापित किये गए देश के चार धाम अर्थात चार पवित्रतम तीर्थ स्थलों में उत्तराखंड में बद्रीनाथ, गुजरात में द्वारका, उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी और तमिलनाडु में रामेश्वरम यात्रा शामिल हैं लेकिन इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में अवस्थित यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ मन्दिरों की यात्रा को भी छोटा चार धाम के नाम से जाना जाता है। शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम यात्रा की भांति ही इन तीर्थ स्थलों की यात्रा को संसार की पवित्रतम तीर्थ स्थलों की यात्रा में से एक माना जाता है। 
छोटा चार धाम यात्रा के सभी पवित्र स्थल अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित हैं। केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह भगवान शिव को समर्पित है। बद्रीनाथ धाम भगवान बद्री या विष्णु को समर्पित है। गंगोत्री धाम माता गंगा और यमुनोत्री माता यमुना को समर्पित हैं। छोटा चार धाम के नाम से प्रसिद्ध इन तीर्थ स्थलों की अवस्थिति अत्यंत ठंडे और बर्फीले स्थान पर होने के कारण यह तीर्थ यात्रा बर्फ पिघलने के बाद ग्रीष्म काल में ही सम्भव है। इसलिए गर्मी में जब मौसम ठीक हो जाता है, तब इन मंदिरों के कपाट खोले जाते हैं। 
उल्लेखनीय है कि छोटा चार धाम के ये सभी पवित्र स्थान उत्तराखंड में हिमालय की बुलंद चोटियों के बीच विद्यमान हैं। भारतीय परम्परा में मोक्ष प्राप्त करना ही जीवन का मंतव्य माना गया गया है। ऐसी मान्यता है कि चार धाम यात्रा मोक्ष प्राप्ति के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक कदम और निकट ले जाती है। इस चारधाम यात्रा का भारतीय परम्परा में अत्यधिक धार्मिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि चारधाम यात्रा जीवन भर के पापों को धो कर मोक्ष के द्वार खोलती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार इस तीर्थ यात्रा पर अवश्य जाना चाहिए। जब कोई तीर्थयात्री चारधाम यात्रा समाप्त करता है तो वह मन की पूर्ण शांति प्राप्त करता है। 
यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। ये पवित्र स्थल उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित हैं। परंपरागत रूप से यात्रा पश्चिम से पूर्व की ओर की जाती है। इस प्रकार यह यमुनोत्री से शुरू होती है, फिर गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में समाप्त होती है। चार धाम यात्रा को पूरा करने का निर्धारित स्थल मार्ग निम्नवत है- हरिद्वार, ऋषिकेश, बरकोट, जानकी चट्टी, यमुनोत्री, उत्तरकाशी,  हरसिल, गंगोत्री, घनसाली, अगस्त्यमुनि, गुप्तकाशी, केदारनाथ, चमोली गोपेश्वर, गोविन्द घाट, बद्रीनाथ, जोशीमठ, ऋषिकेश व हरिद्वार।
चारधाम यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितम्बर से अक्तूबर तक है। इन महीनों में मौसम सुहाना होता है जो यात्रा को आरामदायक और सुखद बनाता है। गर्मियों के दौरान मौसम अच्छा रहता है। क्षेत्र में भारी बारिश होने के कारण कुछ क्षेत्रों में भूस्खलन और बाढ़ की आशंका बनी रहने के कारण मानसून के मौसम में यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है। सर्दियों के मौसम में इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी होने के कारण मंदिर लगभग छह महीने तक बंद रहते हैं। सर्दियों में केदारनाथ की मूर्तियां ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में एवं बद्रीनाथ की मूर्तियां जोशीमठ स्थानांतरित हो जाती हैं। भक्त वहां जाकर दर्शन कर सकते हैं। परम्परागत रूप से गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर के लिए यात्रा अक्षय तृतीया से शुरू होती है। केदारनाथ यात्रा की प्रारंभिक तिथि शिवरात्रि पर और बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि बसंत पंचमी के दिन तय होती है। चार धाम यात्रा अप्रैल-मई में शुरू होती है और हर साल अक्तूबर-नवम्बर में दीपावली के आसपास बंद हो जाती है।
चार धाम यात्रा में शामिल चार पवित्र स्थान उत्तराखंड में गढ़वाल हिमालय की गोद में स्थित हैं। यमुना नदी का स्रोत अर्थात उश्वम स्थल यमुनोत्री के नाम से प्रसिद्ध है। यह यमुनोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में समुद्र तल से 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यमुनोत्री मंदिर हिमालय के ग्लेशियरों और थर्मल स्प्रिंग्स से घिरा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना मृत्यु के देवता यम की बहन हैं। ऐसी मान्यता है कि यमुना में स्नान करने से शान्ति मिलती है। मंदिर के आस-पास घूमने की जगह जानकीचट्टी, सूर्य कुंड, शनि देव मंदिर, सप्तऋषि कुंड आदि हैं। यमुना नदी का उश्वम स्थल यमुनोत्री और गंगा नदी का उश्वम स्थल गंगोत्री, ये दोनों धाम उत्तरकाशी ज़िले में हैं। भगवान शिव का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग ज़िले में है। देश और उत्तराखंड के चार धामों में से एक भगवान विष्णु का बद्रीनाथ धाम चमोली ज़िले में है। यमुनोत्री मंदिर टिहरी गढ़वाल के राजा प्रतापशाह ने बनवाया था। यमुनोत्री मंदिर का जीर्णोद्धार जयपुर की रानी गुलेरिया ने करवाया था।
गंगोत्री धाम का मंदिर देवी गंगा को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगोत्री धाम वह पवित्र स्थान है, जहां भगवान शिव के द्वारा अपनी जटाओं से छोड़े जाने पर गंगा नदी स्वर्ग से उतरी थी। यह स्थल समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, गंगोत्री, उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है। यह मंदिर कपाट खुलने के बाद अक्तूबर तक के लिए खोला जाता है। शेष समय में यहां का वातावरण प्रतिकूल रहने के कारण इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। मान्यता है कि इस क्षेत्र में राजा भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। भगवान शिव यहां प्रकट हुए और उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर उसका वेग शांत किया था। इसके बाद इसी क्षेत्र में गंगा की पहली धारा भी गिरी थी। मंदिर के आस-पास घूमने की जगह भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गौमुख, सूर्य कुंड, जलमग्न शिवलिंग आदि हैं।
समुद्र तल से 3553 मीटर की ऊंचाई पर रुद्रप्रयाग ज़िले में हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम भगवान शिव को समर्पित है। यह चारधाम यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक है। यहां अवस्थित प्राचीन मंदिर को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। केदारनाथ, कल्पेश्वर, तुंगनाथ, मदमहेश्वर और रुद्रनाथ मंदिर एक साथ पंच केदार बनाते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में यहां भगवान शिव ने पांडवों को बेल के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर का निर्माण 8वीं-9वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने कराया था। मंदिर के आस-पास घूमने की जगह गौरीकुंड, भैरव नाथ मंदिर, तुंगनाथ, चंद्रशिला ट्रैक, वासुकी ताल, त्रिजुगी नारायण हैं। 
समुद्र तल से 3300 मीटर की ऊंचाई पर नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच चमोली ज़िले में स्थित बद्रीनाथ धाम की तीर्थयात्रा अत्यंत शुभ मानी गई है। बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें दिव्य त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रक्षक और संरक्षक माना जाता है। बद्रीनाथ धाम को चारधाम यात्रा में इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भगवान विष्णु ने यहां तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी अर्थात बेर का पेड़ बनकर भगवान विष्णु को छाया प्रदान की थी और खराब मौसम में उनकी रक्षा की थी। लक्ष्मी के इस समर्पण से भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर इस स्थान को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वर दिया था। बद्रीनाथ धाम में विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्धारित की गई व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य ने मोक्ष प्राप्त किया था। मंदिर के आस पास घूमने की जगह तप्त कुंड, चरण पादुका, ब्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, पांडुकेश्वर, योगध्यान बद्री मंदिर, माना गांव, सतोपंथ लेक हैं। (उर्वशी)