कर्नाटक चुनावों के बाद उत्साहित नज़र आ रही है कांग्रेस

 

कर्नाटक के चुनाव नतीजों से कांग्रेस में काफी उत्साह है। पार्टी नेताओं के अलावा कई राजनीतिक विश्लेषकों ने भी इस बात पर ज़ोर दिया है कि कर्नाटक में जिन इलाकों से राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकली, वहां कांग्रेस को बहुत फायदा हुआ। इस सिलसिले में एक आंकड़ा भी आया कि जिन क्षेत्रों से यात्रा गुजरी वहां की 66 फीसदी सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई। सो, अब कांग्रेस के नेता इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर बहुत उत्साहित है। इस साल पांच राज्यों—तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में चुनाव होने वाले हैं। इनमें से तीन बड़े राज्यों—तेलंगाना, राजस्थान और मध्य प्रदेश से राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ गुज़री है। कांग्रेस इन तीनों राज्यों में कर्नाटक जैसे नतीजों की उम्मीद कर रही है। इन तीनों राज्यों में राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के क्रम में बहुत समय बिताया था और पार्टी नेता भी उनके साथ चले थे।
 राहुल का आम लोगों से जुड़ाव भी दिखा था। इसलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस उसी हिसाब से इन राज्यों की चुनावी रणनीति बना रही है। इस सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 24 मई को चुनाव वाले राज्यों के नेताओं को दिल्ली बुला कर उनके साथ बैठक भी की। बताया जा रहा है कि राहुल ने अपनी यात्रा में जो मुद्दे उठाए थे उनको केंद्र में रख कर इन तीन राज्यों की चुनावी रणनीति बनेगी।
मोदी अजमेर से करेंगे चुनाव अभियान की शुरुआत
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर भाजपा एक महीने तक जश्न मनाएगी। पूरे एक महीने तक भाजपा देश में मोदी सरकार के कामकाज का प्रचार करेगी। इसकी शुरुआत 31 मई को राजस्थान के अजमेर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली से होगी। इस रैली में आसपास के राज्यों से भी लोगों की भीड़ जुटाई जाएगी। गौरतलब है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में छह महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और उसके छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। सो, प्रधानमंत्री की यह रैली एक तरह से भाजपा के चुनाव अभियान की शुरुआत होगी। बताया जा रहा है कि इस एक महीने के दौरान राजस्थान के अलावा चुनाव वाले बाकी राज्यों में भी प्रधानमंत्री की रैलियां हो सकती हैं। 
कर्नाटक में हुई करारी हार से भाजपा अभी बैकफुट पर है और उसके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर हुआ है। मोदी की रैलियों के जरिए उनमें जोश भरने की कोशिश की जाएगी। इस सिलसिले में पार्टी के दूसरे नेता पूरे देश में 50 से ज्यादा रैलियां और केंद्र सरकार की उपलब्धियों का प्रचार करेंगे। मंत्रालयों के हिसाब से उपलब्धियों की सूची बनाई जा रही है। सरकारी पोर्टल ‘माई गांव’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आकाश त्रिपाठी ने सभी मंत्रालयों को चिट्ठी लिख कर उनसे उनकी योजनाओं की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। उन योजनाओं पर अमल से क्या बदलाव हुआ और लोगों को क्या फायदे हुए, इसकी भी रिपोर्ट बनाई जा रही है। 
क्या अखिलेश अवसर खो चुके हैं?
ऐसा लग रहा है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के राजनीतिक खतरे को या तो समझ नहीं रहे हैं या फिर वह भी बसपा सुप्रीमो मायावती की तरह किसी गैर-राजनीतिक कारण से उस खतरे का मुकाबला करने से कतरा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को लगभग पूरा मुस्लिम वोट मिला था। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम को सिर्फ  आधा फीसदी वोट मिले। लेकिन हाल में हुए नगर निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन किया। अलग-अलग निकायों में एमआईएम के 75 पार्षद जीते हैं। सबसे कमाल का चुनाव मेरठ में मेयर का हुआ, जहां ओवैसी की उम्मीदवार दूसरे और सपा की उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रही। पांच नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष का चुनाव एमआईएम जीती है। 
एक तरफ  मुस्लिम वोट में ओवैसी की ऐसी सेंधमारी है और दूसरी ओर अखिलेश विपक्ष के साथ एकता दिखाने का मौका चूक रहे हैं। वह बेंगलुरू में सिद्धारमैया और शिवकुमार के शपथ समारोह में शामिल नहीं हुए। उनको समझना होगा कि अगर वह उत्तर प्रदेश में बड़ा गठबंधन बना कर यह नहीं जता पाते हैं कि उनके नेतृत्व वाला गठबंधन भाजपा को चुनौती दे सकता है तो तय माने कि मुस्लिम वोट टूट कर ओवैसी के साथ चला जाएगा। बिहार में ओवैसी के पांच विधायक जीते थे। इनमें से चार को तोड़ कर राजद ने अपने साथ कर लिया। राजद, जदयू, कांग्रेस सब मिल कर यह संदेश दे रहे हैं कि भाजपा से असल में वे लड़ रहे हैं, लेकिन अखिलेश उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। 
केजरीवाल पर वक्त का सितम 
सक्रिय राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल और उनके साथी जब अन्ना हज़ारे को अपने कंधे पर बैठा कर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कर रहे थे तो उस दौरान वह कांग्रेस और उसके सभी सहयोगी दलों के नेताओं को परिवारवादी और भ्रष्ट बताते थे। इस सिलसिले में उन्होंने सोनिया गांधी सहित कांग्रेस के दूसरे नेताओं मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, शरद पवार, करुणानिधि, फारुख अब्दुल्ला, शिबू सोरेन, उद्धव ठाकरे आदि नेताओं को परिवारवादी और भ्रष्ट बताया था। यह सिलसिला उन्होंने आम आदमी पार्टी बना कर दिल्ली में अपनी सरकार बना लेने के बाद भी जारी रखा। उनका दावा था कि वह देश में एक नई राजनीति शुरू करने और पहले स्थापित राजनीतिक दलों को राजनीति सिखाने के लिए राजनीति में आए हैं। इतना ही नहीं, अपने को कट्टर ईमानदार बताते हुए वह खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प भी बताने लगे थे। यह सब करते हुए उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिन नेताओं को वह परिवारवादी, भ्रष्ट, चोर, लुटेरा आदि बता रहे हैं, एक मदद के लिए उन्हीं की शरण में जाना पड़ेगा। भ्रष्टाचार के आरोप में उनके दो मंत्रियों के जेल जाने, खुद उनके अपने सरकारी बंगले की सजावट पर 45 करोड़ रुपये खर्च होने का मामला उजागर होने और दिल्ली सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति व तबादले का अधिकार केंद्र सरकार द्वारा छीन लिए जाने के बाद अब केजरीवाल को उन्हीं सारे नेताओं या उनके परिवारजनों के दरवाज़े पर दस्तक देकर मदद की गुहार लगानी पड़ रही है।