अति महत्त्वाकांक्षी अन्न भण्डारण योजना

भारत में अन्न-संरक्षण हेतु केन्द्र सरकार की ओर से मंजूर की गई योजना न केवल अति-महत्त्वपूर्ण है, अपितु इससे देश में भूख और अनाज की बर्बादी को रोकने हेतु बड़ी मदद मिल सकती है। यह योजना नि:संदेह देश में अनाज के धरातल पर बेहद महत्त्वाकांक्षी भी सिद्ध हो सकती है। अन्न-पदार्थों के मामले में इस योजना से देश में आत्म-निर्भरता की भावना को बल मिल सकता है। आज़ादी मिलने के बाद से अब तक की न केवल यह देश की सबसे बड़ी योजना हो सकती है, अपितु पूरे विश्व में यह सहकारी धरातल पर एक बड़ी परियोजना मानी जा सकती है। इस योजना की घोषणा केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने की है। एक लाख करोड़ रुपये की लागत वाली इस योजना से देश में मौजूदा क्षमता से 700 लाख टन अधिक अर्थात कुल 2150 लाख टन अनाज के भण्डारण की क्षमता हासिल हो सकेगी जबकि देश का कुल अन्न उत्पादन 3100 लाख टन तक होता है। मौजूदा समय में देश भर के तमाम उपलब्ध स्रोतों एवं साधनों से केवल 1450 लाख टन अनाज का भण्डारण ही किया जा सकता है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद बेशक कई वर्षों तक देश को विदेशी गेहूं और चावल पर निर्भर रहना पड़ा था, किन्तु देश और खास तौर पर पंजाब के किसान ने अपनी कड़ी मेहनत से न केवल दो-दो हरित क्रांतियों का आ़गाज़ किया, अपितु देश को अनाज के धरातल पर आत्म-निर्भर बनाने हेतु निरन्तर अपना श्रम-स्वेद बहाया। आज स्थिति यह है कि विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला बन गया यह देश एक ओर अपने लोगों की भूख मिटाने हेतु अनाज उपजाने में सक्षम है, वहीं यह दुनिया के कई अन्य देशों को भी अन्न उपलब्ध कराने के योग्य हो गया है। तथापि, देश में एक ओर जहां रह-रह कर भूख और इससे होने वाली मौतों के समाचार देश के बौद्धिक जन को चौंकाते रहते हैं, वहीं विदेशों में भी इस कारण देश की छवि पर प्रश्न-चिन्ह उभरते हैं।
भारत जनसंख्या के तौर पर तो बेशक सर्वाधिक बड़ा देश बन गया है, किन्तु क्षेत्रफल के हिसाब से यह विश्व के अनेक छोटे-बड़े विकसित और समृद्ध देशों से बहुत पिछड़ा है। इसके बावजूद देश के किसान ने भरपूर अन्न उत्पादन किया किन्तु इस सम्पूर्ण स्थिति का त्रासद पक्ष यह रहा कि न तो देश में उत्पादित कुल अनाज को सुरक्षित किया जा सका, न देश के कुछ भागों में से भूख और भुखमरी को समाप्त किया जा सका। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में भी इस बात का दावा रहा कि भारत में अन्न भण्डारण की न्यून सुविधाओं एवं असमान वितरण प्रणाली से वहां भुखमरी जैसी स्थिति उपजती है। इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 117 देशों में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार भूख के धरातल पर भारत 94वें स्थान पर आता है जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और यहां तक कि बंगलादेश भी भारत से अच्छी स्थिति में हैं। एक आंकलन के अनुसार देश की 14 प्रतिशत आबादी आज भी कुपोषण का शिकार है, जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। इसका बड़ा कारण देश में अनाज और फल-सब्ज़ियों की होने वाली बर्बादी होता है। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष लगभग 30,000 करोड़ रुपये की सब्ज़ियां और फल नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार एक वर्ष में हज़ारों करोड़ रुपये का अनाज भी खुले आकाश के तले धूप और वर्षा में खराब हो जाता है। खुले गोदामों में पड़ा अनाज बड़ी मात्रा में चूहों और कीड़े-मकौड़ों द्वारा खराब कर दिया जाता है। रही-सही कसर त्रुटिपूर्ण भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण कर देती है।
ऐसी स्थिति में चिरकाल से देश में एक ऐसी समुचित भण्डारण और सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत महसूस की जा रही थी जिसके तहत देश में उत्पादित अन्न और फल-सब्ज़ियों का सुरक्षित तरीके से भण्डारण किया जा सके। ऐसा भी नहीं कि पूर्व की सरकारों द्वारा कभी ऐसी कोई योजना बनाई ही नहीं गई, किन्तु प्राय: ऐसी योजनाओं की सम्पन्नता के पथ पर वित्तीय स्रोत और राजनीतिक धरातल पर इच्छा-शक्ति की कमी ही आड़े आती रही। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने इतनी बड़ी लागत वाली इस अन्न भण्डारण परियोजना की घोषणा की है तो इस धरातल पर आशाओं और उम्मीदों का जागृत होना बहुत स्वाभाविक है। इस परियोजना के तहत देश के प्रत्येक खण्ड में 2,000 टन अनाज वाले सुरक्षित गोदाम बनाये जाएंगे। हम समझते हैं कि बेशक इस सरकार के पास बहुमत भी है। अत: बहुत स्वाभाविक है कि राजनीतिक इच्छा-शक्ति भी होगी। मंत्रिमंडलीय सहमति से बनी इस योजना को वित्तीय कमी भी नहीं आने दी जा सकती। अत: तय है कि यह परियोजना यदि सिरे चढ़ती है, तो न केवल देश के उत्पादित अनाज को पर्याप्त सुरक्षा, संरक्षण और भण्डारण प्रदान किया जा सकेगा, अपितु देश को भूख, भुखमरी एवं कुपोषण जैसी समस्याओं से भी छुटकारा दिलाया जा सकेगा।