विदेशों में भटकते हमारे युवा

कनाडा में फज़र्ी दाखिलों के चक्कर में फंसे 700 भारतीय विद्यार्थी वहां बहुत कठिन दौर में से गुज़र रहे हैं। इस संबंध में कनाडा की द न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी (एन.डी.पी.) के प्रमुख नेता जगमीत सिंह ने भी कनाडा की संसद में इन विद्यार्थियों से संबंधित मामलों को गम्भीरता से जांचने तथा इस समस्या का कोई अच्छा हल निकालने की बात कही है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी यह विश्वास दिलाया है कि इन विद्यार्थियों के मामलों पर हर पक्ष से विचार किया जाएगा ताकि समस्या का कोई अच्छा हल निकाला जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों ने देश की बेहतरी में अपने ढंग से योगदान डाला है। मार्च माह में स्थायी निवास (पी.आर.) अर्जी देने के समय यह बात सामने आई थी कि इन विद्यार्थियों के कनाडा आने के लिए लगाये गये दस्तावेज़ फज़र्ी थे।
विद्यार्थियों का यह पक्ष है कि उनके साथ एजेंटों तथा इमीग्रेशन कम्पनियों ने धोखा किया है जहां तक एजेंटों तथा कम्पनियों का संबंध है पिछले लम्बे समय से यह बात सामने आती रही है कि इस व्यवसाय से जुड़े कई व्यक्ति तथा कम्पनियां फज़र्ी दस्तावेज़ तैयार करके युवाओं को विदेश में भेज देती हैं, जिन्हें बाद में अलग-अलग देशों में बहुत-सी समस्याओं तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी उलझन में फंसे युवाओं का भविष्य बेहद धूमिल हो जाता है। सामने आये इस मामले ने हमारे समाज के समक्ष और भी अनेक सवाल लाकर खड़े किये हैं। नि:संदेह आज बड़ी संख्या में देश के युवा विदेशों में तथा देश के भीतर भी बेहद कठिनाइयों के दौर में से गुज़र रहे हैं तथा बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं, उन्हें अपना भविष्य बेहद धूमिल तथा अनिश्चितता वाला प्रतीत होता है। यह भी एक बड़ा कारण है कि समाज में लगातार अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही नशों के प्रचलन ने हमारी ज्यादातर जवानी को छलनी करके रख दिया है। हमारी सरकारें लगातार बढ़ती जनसंख्या पर भी नियन्त्रण नहीं पा सकीं तथा न ही अपने युवाओं को कोई बेहतर दिशा ही दिखा सकी हैं। हालत यह है कि विकास के बढ़ते कदमों से कहीं अधिक बेरोज़गारी बढ़ जाती है। इस हालात में लगातार बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण पाने के अलावा कोई और हल दिखाई नहीं देता। आज़ादी के बाद लगभग सभी सरकारों ने बेरोज़गारी  पर नियन्त्रण पाने के लिए प्रयास ज़रूर किये परन्तु वह इसमें सफल नहीं हो सकीं। समय-समय पर अनेक कारणों के दृष्टिगत देश को मंदी के हालात में से भी गुज़रना पड़ता है, ऐसे समय में आम आदमी की हालत बेहद दयनीय दिखाई देने लगती है। देश के कुल घरेलू उत्पाद में चाहे कृषि का 30 प्रतिशत हिस्सा ही पड़ता है परन्तु इसमें अभी भी 60 प्रतिशत से अधिक लोग अलग-अलग ढंग से रोज़गार में लगे हुये हैं। इसलिए औद्योगिक विकास को कृषि के व्यवसाय के साथ जोड़ने की ज़रूरत थी, जिसमें अब तक न तो अधिक सफलता ही मिल पाई है तथा न ही तत्कालीन सरकारों की इस संबंध में कोई ठोस योजनाबंदी ही सामने आई है।
ऐसे अनिश्चित हालात में यदि देश का युवा वर्ग किसी न किसी तरह इस घुटन भरे माहौल से निकलना चाहता है तो उनकी इस मज़बूरी का लाभ ट्रेवल एजेंट तथा ट्रैवल एजेंसियां उठाती हैं। यह भी एक बड़ा कारण है कि आज हमारे लाखों युवाओं को विदेशी धरती पर भटकना पड़ रहा है। बड़ा सवाल यह उत्पन्न होता है कि इस हालात से कैसे निजात पाई जा सकती है। युवाओं को देश में रोज़गार कैसे उपलब्ध करवाया जा सकता है? इसके लिए सरकारों की ओर से स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए हर पक्ष से पुख्ता योजनाएं तैयार करके उन्हें क्रियान्वयन में लाना पड़ेगा तथा मौजूदा समय में यह बात भी दूर की प्रतीत होती है।


-बरजिन्दर सिंह हमदर्द