बाघ के शरीर पर धारियां क्यों ?

बाघ के शरीर पर आज जो काली-काली धारियां तुम देखते हो, पहले ये नहीं थी। बाघ के शरीर का रंग नारंगी जैसा बिल्कुल साफ चमकता हुआ था। फिर उसके शरीर पर ये काली-काली धारियां कैसे आयी? लो सुनो- 
आज से कई सौ साल पहले की बात है। एक दिन जंगल में रामदेव बेंत काट रहा था। अचानक उसने एक भयानक गर्जना सुनी। इससे पहले कि वह संभले, एक विशालकाय बाघ उसके सामने आ खड़ा हुआ। रामदेव अब भागर कहां जाता! उसे देखकर बाघ गरजा, ‘मैं तुम्हें खा जाऊंगा।’ रामदेव ने साहस बटोर कर जवाब दियाए ‘तो खा जाओ। मुझे इससे क्या फर्क पड़ने वाला है!’
रामदेव का जवाब सुनकर बाघ आश्चर्य में पड़ गया। उसने सोचा- ‘यह कैसा इंसान है जो खुद ही अपने को खा जाने के लिए कह रहा है!’ उसने रामदेव से कारण पूछा तो रामदेव बोला, ‘बात सीधी सी है। हम लोग बहुत जल्दी ही मरने वाले हैं। भयंकर प्रलय होने वाला है। सारी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। मछलियां तारों से टकरा जाएंगी। भई, इसलिए ही तो मैं बेंत काट कर जमा कर रहा था। इन बेंतों से मैं अपने मित्रों और सगे-संबंधियों को पेड़ों की टहनियों के साथ कसकर बांध दूंगा जिससे प्रलय का पानी उनको बहा न ले जा सके।’ यह सुनकर बाघ बोला, ‘सच तो यह है कि मैं भी मरना नहीं चाहता हूं। क्या तुम मुझे अपना मित्र नहीं मान सकते? पेड़ की डाल के साथ मुझे भी बांध देना। इस उपकार के बदले, मैं वादा करता हूं कि तुम्हें नहीं खाऊंगा।’
रामदेव ने यह सुन अपनी मुद्रा ऐसी बनायी मानों वह सोच रहा हो- ‘बाघ की सहायता की जाये या नहीं।’ रामदेव को सोचते हुए देखकर बाघ धीरज खोने लगा। वह तरह-तरह से रामदेव को राजी करने का प्रयत्न करने लगा। आखिरकार रामदेव ने उसे पेड़ की एक मोटी डाली के साथ मजबूती से बांध दिया। कई रोज बीत गये। बाघ उसी तरह बंधी हालत में पड़ा रहा। कहीं भी प्रलय का कोई निशान नहीं था। बाघ समझ गया कि रामदेव ने उसे बेवकूफ बनाया है। वह बंधन से छूटने के लिए छटपटाने लगा। लेकिन वह बेंत से बंधा था।
बाघ जितना जोर लगाता, बंधन उतना ही कसकर उसके शरीर में गड़ता जाता। इससे बाघ को असहनीय पीड़ा होने लगी, हाथ-पैर मारने के बाद आखिर बाघ किसी तरह अपने को मुक्त कर सका।
बेंत की रगड़ खाते-खाते उसके शरीर पर लम्बे-लम्बे निशान उभर आये थे। घाव सूखने पर वे ही निशान बाद में काले पड़ गये। ये काले निशान ही बाघ के शरीर पर काली-काली धारियों के रुप में हमें नज़र आते हैं।

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