चुनावी बॉन्ड पर निर्णय में देरी लोकतंत्र के हित में नहीं 

एक बार फिर भारत सरकार ने 4 अक्तूबर से दस दिनों तक चलने वाले चुनावी बांड की 28वीं किश्त की बिक्री को मंजूरी दे दी है और हमेशा की तरह ऐसा ठीक चुनावों के पहले किया जा रहा है जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कुछ ही समय रह गया है। इस बार भी भाजपा को अपने चुनाव अभियान में एक और बड़ा इनाम मिलेगा क्योंकि लगभग 80 से 90 प्रतिशत धन सत्तारूढ़ पार्टी को जाता है। केन्द्र शर्मनाक तरीके से मौजूदा चुनावी बॉन्ड नियमों को अन्य विपक्षी दलों की कीमत पर भाजपा के पक्ष में इस्तेमाल करने की इजाज़त दे रहा है लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट अब भी उस याचिका पर सुनवाई में देरी कर रहा है जो लंबे समय से लम्बित है।
मूल चुनावी बांड योजना 2017 को 2018 में कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन इस साल अप्रैल में ही, मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने संकेत दिया था कि वह सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ की स्थापना के बारे में फैसला करेंगे। याचिकाओं पर उसके बाद कोई सुनवाई नहीं हुई। चुनावी बॉन्ड की 25वीं किश्त के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल 7 नवम्बर को चुनावी बॉन्ड योजना के नियमों में जल्दबाजी में संशोधन करके औचित्य का उल्लंघन किया ताकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव होने वाले वर्ष के दौरान अतिरिक्त पंद्रह दिनों के लिए बिक्री की अनुमति दी जा सके।
नियमों के अनुसार बांड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद हेतु उपलब्ध होते हैं। आम चुनाव के वर्षों में 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि की अनुमति है। अब नवीनतम संशोधन के माध्यम से केंद्र ने पिछले साल हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनावों से पहले नवम्बर 2022 में एक और किश्त की अनुमति दी थी।
जनवरी 2018 में चुनावी बॉन्ड की बिक्री शुरू होने के बाद से पिछले पांच वर्षों में भाजपा ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश में राज्य सरकारों को अस्थिर करने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किये हैं और गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने के लिए विधायकों को खरीदा है। महाराष्ट्र में यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट था कि जुलाई 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से एकनाथ शिंदे समूह के दलबदल को सुनिश्चित करने के लिए भारी धनराशि जुटाई गयी थी।
इसके बाद वहां शिंदे-भाजपा की सरकार बनी। विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने के इन सभी कदमों में भाजपा ने कॉर्पोरेट दान, चुनावी बॉन्ड के पैसे के साथ-साथ विदेशी दान के माध्यम से जुटाये गये अपने विशाल उपलब्ध धन का उपयोग किया। कॉरपोरेट्स के चुनावी ट्रस्टों ने भी राजनीतिक दलों को धन दिया और वहां भी भाजपा ने हाल के वर्षों में 80 प्रतिशत से अधिक धन जुटाया।
बॉन्ड या पोल ट्रस्ट से फंडिंग करना भाजपा के लिए एक रास्ता है क्योंकि जो कम्पनियां दान देती हैं, वे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को नाराज़ नहीं करना चाहती हैं और आईटी विभाग, सीबीआई या ईडी के माध्यम से कार्रवाई को आमंत्रित नहीं करना चाहती हैं।  भारतीय कॉरपोरेट्स के बीच यह डर इतना अधिक है कि औद्योगिक घरानों के युवा वंशज, जो दूरदर्शी हैं और भाजपा को पसंद नहीं करते, चुप रहते हैं क्योंकि वे सिर्फ कुछ उदारवादियों के लिए अपनी कम्पनियों के भविष्य को जोखिम में डालने के लिए तैयार नहीं हैं। कुल मिलाकर नतीजा यह है कि चुनावों में बराबरी का कोई मौका नहीं है। विपक्षी दलों की तुलना में भाजपा दस गुना से भी ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में है। ज़रूरत पड़ने पर दल-बदल कराने के लिए इसके पास एक विशाल युद्ध संदूक है।
नरेंद्र मोदी शासन के पिछले नौ वर्षों में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में धन का असामान्य संकेंद्रण हुआ है। एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि भारत की बीस सबसे अधिक लाभदायक कम्पनियों ने 1990 में कुल कॉर्पोरेट मुनाफे का 14 प्रतिशत, 2010 में 30 प्रतिशत और 2019 में 70 प्रतिशत अर्जित किया।
इसका मतलब यह है कि नरेंद्र मोदी के शासन के पहले पांच वर्षों के दौरान कुछ कॉर्पोरेट घरानों में धन के संकेंद्रण में भारी उछाल आया। पिछले चार वर्षों में यह प्रक्रिया और तेज़ हुई है। यह सत्तारूढ़ दल भाजपा और बड़े उद्योगपतियों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग का परिणाम है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्तमान शासन के दौरान लाभ हुआ है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटकों को भारतीय धनी पूंजीपतियों और नरेंद्र मोदी शासन के बीच इस बदले की भावना पर ध्यान केंद्रित करना होगा और इस बात की जांच की मांग करनी होगी कि कैसे बड़े कॉरपोरेट अपनी दीर्घकालिक व्यवस्था के एक हिस्से के रूप में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को वित्त पोषित कर रहे हैं।  उनके कानूनी विशेषज्ञों को सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका की शीघ्र सुनवाई पर ज़ोर देना चाहिए ताकि विद्वान न्यायाधीश कम से कम अंतिम निपटान तक चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने का आदेश दे सकें। चुनाव लड़ने वाले दलों के बीच समान अवसर स्थापित करके देश में लोकतंत्र को कायम रखने के लिए यह ज़रूरी है। (संवाद)