जन-जीवन को कैसे प्रभावित करती है धुंध

बच्चो! हमारे जैविक और अजैविक वातावरण में धुंध का बनना एक प्राकृतिक क्रिया है। ठंड के मौसम में धुंध होने से हमारी देखने की शक्ति (दृष्टि) पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हमें आस-पास व इधर-उधर जाने में मुश्किल होती है। कुछ दूरी पर भी साफ दिखाई नहीं देता। धुंध के कारण यातायात भी प्रभावित होता है। धुंध के कारण जन-जीवन प्रभावित हो जाता है। हमारे वातावरण में गैसों का एक गुबार बना हुआ है। गैसों के इस गुबार में पानी की बूंदें भी होती हैं। जिस कारण वातावरण में नमी हर समय मौजूद रहती है। ठंड के मौसम में धरती की सतह नज़दीक गर्म हवा में जलवाष्प धरती से ऊपर ठंडी हवा के जल कणों के साथ मिलकर घने हो जाते हैं। धरती की सतह के नज़दीक यह कण लटकते हैं जो धुंध का रूप धारण कर लेते हैं। जब हवा में लटकते जल कण अधिक घने हो जाते हैं तो वह भारी होकर पानी की बूंदें बनकर धरती पर गिरने लगते हैं। हमें बूंदा-बांदी का अहसास होने लगता है। धुंध का प्रभाव हमारे आस-पास कई दिन रहता है। प्यारे बच्चो जैसे कहावत है कि बचाव में ही बचाव है, धुंध के दिनों में सावधानी से आना-जाना, यातायात के नियमों का पालन करके धुंध से बचा जा सकता है। धुंध यातायात में रुकावट बनने के कारण दुर्घटनाओं का कारण बनती है।