‘लॉयन’ नाम से प्रसिद्ध विलेन बने अजीत

फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित अन्य युवाओं की तरह वह भी बॉम्बे हीरो बनने के लिए आये थे, विशेषकर इसलिए कि अपने कद, हैंडसम लुक्स व भारी भरकम आवाज़ के कारण उन्हें अपने लक्ष्य में सफलता का यकीन था। वह कामयाब भी हुए, लेकिन आंशिक ही क्योंकि बतौर हीरो उन्होंने जो फिल्में कीं उनमें से अधिकतर फ्लॉप हो गईं और सेकंड लीड प्ले करने से इसकी भरपाई नहीं होनी थी। इसलिए उन्होंने स्क्रीन पर नैतिक रेखा पार की और इस तरह एक कुलीन, रईस व स्टाइलिश खलनायक के रूप में अजीत ने बॉलीवुड के इतिहास में हमेशा के लिए अपना स्थान सुरक्षित किया। वह बड़े पर्दे पर फैशनेबल विलेन ही नज़र आये- बड़े सनग्लास, खूबसूरत लड़कियां और गंदा व अवैध काम करने के लिए चमचों की टीम। वह शालीन भाषा में बात करते, जिसमें धमकी व कटाक्ष अवश्य भरा होता। ‘मोना डार्लिंग’ या ‘रॉबर्ट’ को खास अंदाज़ से पुकारते और अपने दुश्मनों से कहते, ‘सारा शहर मुझे लोइन के नाम से जनता है।’ इस किस्म के अन्य अनेक डायलाग हैं जो न केवल अजीत की अदाकारी का अटूट हिस्सा बन गये बल्कि आज तक भी सिने प्रेमियों की ज़बान पर चढ़े हुए हैं। वह हीरो, पुलिस व अन्य दुश्मनों से माइंड गेम्स खेलते थे। इसमें शक नहीं है कि अजीत स्क्रीन विलेन की इमेज में क्रांति लाये और उन्होंने हिंदी सिनेमा पर अपनी गहरी छाप छोड़ी।
अजीत के करियर में यह नाटकीय परिवर्तन था। उन्होंने चुलबुली नलिनी जयवंत, परी चेहरा मधुबाला, सुंदर सुरैया, अति प्रतिभाशाली मीना कुमारी आदि के हीरो के रूप में कार्य किया था, लेकिन जब फिल्में नहीं चलीं तो खलनायक बनने के लिए मज़बूर हुए, हालांकि बीच में हीरो के वफादार दोस्त भी बने, मसलन ‘मुगले-आज़म’ में शहजादा सलीम (दिलीप कुमार) के दोस्त दुर्जन सिंह।  अजीत का जन्म हामिद अली खान के रूप में गोलकोंडा के बरोजाई पठान परिवार में 27 जनवरी, 1922 में हुआ था। उनके पिता निज़ाम की सेना में थे और चाहते थे कि वह डॉक्टर या वकील बनें। लेकिन अजीत की पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, जबकि वह प्राकृतिक रूप से होशियार और अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। वारंगल के यूनिवर्सिटी आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, जहां उनके सीनियर पीवी नरसिम्हा राव थे, के एक टीचर ने उनसे कहा कि वह अपने पिता की तरह सेना में शामिल हो जाएं या फिल्म एक्टर बन जायें। अजीत ने अपने टीचर की बात मान ली, पिता से झूठ बोला कि परीक्षा में पास हो गये हैं, अपनी पुस्तकें बेचीं, 113 रूपये मिले और बॉम्बे के लिए रवाना हो गये। यह 1940 के दशक की बात है।
लेकिन बॉम्बे में स्थितियां आसान नहीं थीं। पैसे खत्म हो गये, एक साथी ने सुझाव दिया कि सिनेमाघर में इस उम्मीद से गेटकीपर हो जाओ कि किसी फिल्म निर्देशक की निगाह तुम पर पड़ जायेगी। खुद्दार पठान ने ऐसे जॉब करने से मना कर दिया। उन्होंने संघर्ष जारी रखा, हालात बिगड़ते चले गये और उन्हें शहर में विभिन्न जगहों पर रखे सीमेंट के बड़े पाइपों में अपनी रातें गुजारनी पड़ीं। जल्द ही फिल्मों में छोटे-छोटे रोल मिलने लगे, जिनसे 3 से 6 रूपये की कमाई हो जाती थी। पहली प्रमुख भूमिका के.एल. सहगल की ‘कुरुक्षेत्र’ में मिली, जिससे एक निर्देशक ने उन्हें नोटिस किया और ‘शाह-ए-मिस्र’ (1945) में लीड रोल दिया, लेकिन यह फिल्म फ्लॉप हो गई। निर्देशक नानाभाई भट (महेश भट के पिता) ने उन्हें नाम बदलने के लिए कहा और फिल्मकार के अमरनाथ ने उनके व्यक्तित्व से मैच करते हुए अजीत नाम का सुझाव दिया। अजीत ने नर्गिस को छोड़कर उस दौर की सभी प्रमुख हीरोइनों के साथ बतौर हीरो काम किया, लेकिन मधुबाला के साथ ‘ब़ेकसूर’ (1950), ‘आनंद मठ’ (1952), ‘नास्तिक’ (1954) और ‘हलाकू’ (1956) जिसमें वह मीना कुमारी के लिए ‘आजा के इंतज़ार में’ गाते हैं, को छोड़कर सभी फिल्में बुरी तरह से फ्लॉप हो गईं। 
बतौर हीरो सफलता न मिलने के कारण अजीत कुछ फिल्मो में सेकंड लीड बने, जिनमें से ‘नया दौर’ (1957) व ‘मुगले-आज़म’ (1960) कालजयी साबित हुईं। फिर उनके करीबी दोस्त राजेन्द्र कुमार ने उन्हें खलनायक बनने का सुझाव दिया और ‘सूरज’ (1966) की सफलता के बाद अजीत ने बतौर विलेन फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अजीत के कॅरियर में नया व सकारात्मक मोड़ आ गया। जल्द ही उन्होंने खलनायकी में अपना खास ब्रांड विकसित कर लिया। ‘प्रिंस’ (1969) में वह क्रूर मामा जी थे, ‘हीर रांझा’ (1970) में क्रूर पति और फिर बने ‘ज़ंजीर’ (1973) में ‘एंग्री यंग मैन’ के विरुद्ध ‘कोल्ड ओल्ड मैन’ धर्म दयाल तेजा, और ‘कालीचरण’ (1976) का दीन दयाल तो ‘लोइन’ के नाम से हमेशा के लिए विख्यात हो गया।  अजीत का दिल का दौरा पड़ने से 22 अक्तूबर 1998 को निधन हो गया। उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया। अजीत ने तीन शादियां कीं। पहली पत्नी एंग्लो-इंडियन ईसाई थी, जो सांस्कृतिक कारणों से असफल रही। दूसरी शादी अपने मां-बाप के कहने से की, जिससे तीन बेटे हुए- शाहिद, जाहिद व आबिद। दूसरी पत्नी की मृत्यु के बाद तीसरी शादी सारा से एक्टर जयंत के प्रयासों से हुई, जिससे से शहजाद व अरबाज़ ने जन्म लिया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर