भारतीय विचार और संवैधानिक लोकतंत्र की नींव की बात करती है अश्विनी कुमार की किताब ‘ए डैमोक्रेसी इन रिट्रीट’

पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार की किताब ‘ए डैमोक्रेसी इन रिट्रीट’ हमारे समय के सच का आईना दिखाती है और उदारवादी लोकतंत्र को लेकर भारत के विचार और संविधान द्वारा डाली गई राजनीतिक लोकतंत्र की नींव की बात करती है।
अश्विनी कुमार की यह किताब उनके अलग-अलग स्थानों पर पहले प्रकाशित हो चुके 32 लेखों का संग्रह है, जिनमें राष्ट्र के तीन बुनियादी स्तम्भ माने जाते विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका की पड़ताल की गई है। राजनीति और वकालत में ज़िंदगी का चौथा हिस्सा गुज़ार चुके अश्विनी कुमार ने इस पुस्तक में संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की असल भूमिका और बहुमतवादी शासन के खतरों से भी अवगत करवाया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह किताब सत्ता की या कह लो कुर्सी की, जी हज़ूरी नहीं करती, लेकिन साथ ही साथ इस तथ्य को भी प्रकट करती है कि सिर्फ आलोचना करने के लिए ही आलोचना करना गलत है।
32 लेखों का यह संग्रह संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी गहरी वचनबद्धता को दर्शाता है और अन्याय के प्रति हमारे सांझे कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक होने का संदेह देता है। किताब में उन्होंने जहां न्यायपालिका के सरकार के कामकाज में ज़रूरत से ज्यादा दखलअंदाजी करने पर संसद और न्यायपालिका के बीच बढ़ रहे तनाव का ज़िक्र किया है, वहीं साथ में उन्होंने यह भी बताया है कि न्यायिक समीक्षा का उपयोग हमारे संविधान का एक लाज़िमी और अभिन्न अंग है। अश्विनी कुमार के मुताबिक राष्ट्र और जनता की भलाई के लिए दोनों स्तम्भों के बीच रचनात्मक सहयोग ज़रूरी है।
दिल्ली आर्डीनैंस बिल को लेकर आम आदमी पार्टी को समर्थन देने का जहां उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस की हिचकिचाहट का तीखा विरोध किया, वहीं सत्ता पक्ष पर भी सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली आर्डीनैंस बिल के बारे में दिए गये फैसले का जहां किताब में स्वागत किया गया है, वहीं उसी न्यायपालिका के चुनाव कमिश्नरों की नियुक्ति की प्रक्रिया में च़ीफ जस्टिस की मौजूदगी को लेकर उसके फैसले पर सवालिया निशान भी लगाए हैं, तथा इसको संविधान की भावना के उलट करार दिया है। पूर्व कानून मंत्री ने बार-बार अपने लेखों में न्यायपालिका को अपने फैसलों में संवैधानिक सिद्धांतों के निगहबान बनना यकीनी बनाने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया।
अपने लेखों द्वारा अश्विनी कुमार ने संतुलित और सामूहिक पहुंच के लिए सुप्रीम कोर्ट को लक्ष्मण रेखा का सम्मान करने की ताकीद दी, जिसके मुताबिक अदालत न तो संसदीय प्रक्रिया में ज़रूरत से अधिक दखलअंदाजी करके स्थापित परम्परा को चुनौती दे और न ही अदालत समय की सरकार के अन्यायपूर्ण फैसलों पर अपनी मोहर लगाए। इसके साथ ही लेखक ने संसद में बिना बहस और बिना पड़ताल के कोई बिल पास होने को बहुमतवादी शासन का सबसे बड़ा खतरा करार दिया है।
पंजाब से संबद्ध पूर्व कांग्रेसी नेता ने किताब में दर्ज अपने लेखों द्वारा पंजाब और किसानों के सरोकारों को भी प्रगट किया है। फिर चाहे वह लखीमपुर खीरी की त्रासदी हो या फिर पंजाब में कांग्रेस द्वारा चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हो या फिर पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की अथाह जीत हो या फिर कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का एक साल से लम्बा संघर्ष हो, इन लेखों द्वारा वह किसानों के साथ खड़े नज़र आए और आम आदमी पार्टी को पंजाब की जनता द्वारा दिये गये समर्थन की लाज रखने और अपनी जिम्मेदारी पूरी तन्मयता के साथ निभाने की ताकीद करते भी नज़र आए हैं।
अश्विनी कुमार अपनी किताब ‘ए डैमोक्रेसी इन रिट्रीट’ (A Democracy in Retreat ) को उनकी पिछली किताब ‘Human Dignity-A Purpose in Perpetuity’ का विस्तार अभिप्राय अगला अंक भी करार देते हैं। मानवीय सम्मान के पैरोकार माने जाते अश्विनी कुमार ने कई लेखों में दबे-कुचले और मजलूम लोगों की बात की है। लेखक का कहना है कि स्वतंत्र राष्ट्र तब तक स्वतंत्र रहता है जब तक हम निजी स्वतंत्रता और पिछड़े-दलितों के प्रति रहमदिली की भावना के साथ ओत-प्रोत रहें।
कवि-हृदय रखने वाले अश्विनी कुमार के लेखों में शायरी भी देखने के मिलती है। अश्विनी कुमार शायरी को जज़्बात प्रकट करने का एक ऐसा ज़रिया मानते हैं जो हमें दिल में छुपे अहसास को छूने में मदद करती है और इसको वह अपनी कलम द्वारा प्रकट करते भी रहते हैं। बताते चलें कि उन्होंने अपने दिल के करीब रहने वाले शेयरों और ़गज़लों को संग्रहित करके एक किताब ‘एहसास-ओ-इज़हार’ भी प्रकाशित की है। मौजूदा किताब में उनका एक लेख उर्दू अदब और शायरी पर आधारित है। अतीत में यह लेख ‘ज़िंदगी की धूप-छांव की तर्जुमानी करती शायरी’ के शीर्षक के तहत ‘अजीत मैग्ज़ीन’ में भी छप चुका है। इस लेख को पाठकों का खूब प्यार मिला था। लेखक ने भारत की आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ के मौके पर लिखा यह लेख उन सृजन-रत साहित्यकारों, कवियों और शायरों को समर्पित किया है, जिन्होंने हमारे उदारवादी राष्ट्रवाद को परिभाषित किया और हमें विचारों का सम्मान करने का सलीका सिखाया।
चिल्ली देश के महान दार्शनिक और साहित्यकार पाब्लो नेरूदा के कहे गये शब्द, जिनमें इतिहास की स्थायी ताकीद की झलक है, ही जैसे इस किताब का मूल हों : 
ज़ुल्म उनां सिरां नूं
धड़ों वख कर दिंदा है
जो गाउंदे हन
पर खूह दे हेठां गई आवाज़
धरती दे गुप्त चश्मे वल्ल मुड़ जांदी है
अते हनेरे चों ही लोकां दे
बोल बाहर आउंदे हन।
ये शब्द बताते हैं कि मौजूदा समय के कारण चारों तरफ से आई निराशा से लेखक चिंतित है, लेकिन निराश नहीं। ये लेख उन अंधेरों में भी आशा की किरण निकलने का संदेश भी देते हैं। ये लेख कई सवाल उठाते हैं जिनके जवाब ही हमारे लोकतांत्रिक भविष्य को परिभाषित करेंगे।
यह पुस्तक संवैधानिक लोकतंत्र के मूल पर आधारित मौजूदा समय में अधिक प्रासंगिक इसलिए भी है क्योंकि यह किताब उस समय आई है, जब संसद में सरकार और विपक्षी दलों के बीच असहमति के स्वर शिखर पर हैं। हाल ही में सम्पन्न हुए संसद के शीत ऋतु के सत्र में दोनों सदनों में से विपक्षी दलों के 140 से अधिक सांसद निलम्बित किये गये। तकरीबन उसी समय इस किताब के रिलीज़ होने के अवसर पर कुल 16 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा और उनकी अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधि भी शामिल थे। अश्विनी कुमार अपनी किताब में ऐसी ही वास्तविक लोकतांत्रिक व्यवस्था का संदेश देते नज़र आए हैं।
A Democracy in Retreat   लेखक द्वारा लिखी गई 6वीं किताब है, जिसका प्रकाशन HAR-ANAND पब्लिकेशन द्वारा किया गया है और इसकी कीमत 795 रुपये है।
 

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