बिजली की राजनीति

पंजाब सरकार की ओर से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरों में की गई वृद्धि से एक बार फिर सरकार की विफल योजनाबंदी सामने आ गई है। घरेलू उपभोक्ताओं के अतिरिक्त कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र के लिए दरों में की गई वृद्धि की घोषणा से तराजू डावांडोल होने लगा है। चाहे घरेलू उपभोक्ताओं के लिए नीति तो पहले जैसी ही रहेगी परन्तु इससे सरकार पर वित्तीय बोझ और भी बढ़ जाएगा। पहले ही भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मुफ्त बिजली देने के कारण सरकार को 20 हज़ार करोड़ से अधिक सब्सिडी का बोझ सहन करना पड़ रहा है। अब यह बोझ और बढ़ जाएगा, जिसकी पूर्ति पहले ही संकट में फंसी यह सरकार कैसे करेगी, यह देखना होगा।
पिछले दो वर्ष में सरकार ने 70 हज़ार करोड़ से अधिक ऋण ले लिया है, जो आगामी सरकारों को ब्याज सहित वापिस करना पड़ेगा। इस बढ़े हुये नये बोझ की पूर्ति के लिए पहले ही सरकार ने और ऋण लेने की योजना बना ली है। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले इसके नेताओं ने बार-बार उद्योगपतियों को पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली देने का वायदा किया था परन्तु अब यह वायदा भुला दिया गया है तथा लगातार बिजली बिलों के बढ़ने का बोझ उद्योगपतियों तथा व्यापारियों पर डाला जा रहा है। जब राज्य बिजली आयोग ने उद्योगपतियों की राय ली थी तो समूचे रूप में उन्होंने कहा था कि यदि बिजली और महंगी की जाएगी तो पंजाब के पहले से सिसकते उद्योग बेहोश हो जाएंगे, क्योंकि अन्य राज्यों के मुकाबले में इनमें बनाई गई वस्तुओं की लागत बढ़ने के कारण वे महंगी हो जाएंगी तथा फिर ऐसी स्थिति में इन्हें कौन खरीदेगा? पिछले लम्बे समय से सरकारों की इस तरह की गलत नीतियों के कारण ही पंजाब का ज्यादातर उद्योग प्रदेश से बाहर चला गया है तथा शेष रहते उद्योगपति भी किसी न किसी तरह दिन काट रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की दरें बढ़ाने के लिए की गई घोषणा से गुस्सा पैदा होना स्वाभाविक है। दूसरी तरफ प्रदेश में बिजली की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष से यह कई गुणा और बढ़ गई है। लगाये गये अनुमान के अनुसार यह मांग घरेलू तथा कृषि क्षेत्र में अधिक बढ़ी है। इसके अतिरिक्त घरों के लिए मुफ्त बिजली देने के कारण मांग का लगातार बढ़ते जाना भी स्वाभाविक है। अब यह मांग 15700 मैगावाट तक पहुंच गई है।
सरकार के रोपड़, लहरा मुहब्बत, गोइंदवाल साहिब थार्मल प्लाटों की कुल सामर्थ्य 1856 मैगावाट है तथा दो निजी थर्मल प्लांट राजपुरा तथा तलवंडी साबो से इसे लगभग 3100 मैगावाट बिजली मिल रही है। यह सारा उत्पादन बेहद कम है। शेष बिजली प्राप्त करने के लिए पॉवरकॉम को केन्द्रीय पूल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। केन्द्रीय पूल से बिजली हासिल करने के लिए भी जो कीमत अदा करनी पड़ती है, उसकी पूर्ति करना भी अब प्रदेश सरकार के बस की बात नहीं रही। दूसरी तरफ बिजली आपूर्ति संबंधी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। प्राप्त समाचारों के अनुसार शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम चार घंटे बिजली के कट लगाये जा रहे हैं। औद्योगिक शहर लुधियाना में तो कई स्थानों पर 16 से 24 घंटे तक बिजली कट लगता है। इससे पीने एवं उपयोग किये जाने वाले पानी की हर तरफ बेहद कमी महसूस होने लगी है। भीषण गर्मी में प्रदेश के अधिकतर स्थानों पर बिजली न आने से लोगों को नींद आना भी मुश्किल हो जाता है। 
पैदा हुये ऐसे नाज़ुक हालात से निपटने में सरकार असमर्थ दिखाई देने लगी है। इस बढ़ते बिजली संकट ने मौजूदा प्रदेश सरकार के दावों की पोल खोल कर रख दी है। आज के समय में आम जीवन में उपयोग में आने वाली ज्यादातर वस्तुएं बिजली की आपूर्ति पर निर्भर करती हैं। इसकी कमी से समूचा जीवन लड़खड़ा जाता है। नि:संदेह अपने राजनीति स्वार्थों के लिए सरकार ने लोगों को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली का सहारा तो ज़रूर लिया परन्तु इसके उत्पादन तथा सप्लाई में वह पूरी तरह पिछड़ गई प्रतीत होती है, जिस कारण गाड़ी पटरी से फिसलती जा रही है। आगामी समय में इस चिन्ताजनक स्थिति से सरकार स्वयं को तथा लोगों को कैसे निकालेगी, यह देखने वाली बात होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द