जीवन पर भारी वाहनों की रफ्तार और धन-बल

मानव जीवन ईश्वर की अनुपम कृति है। इसके साथ ही मनुष्य का जीवन समाज और राष्ट्र की सम्पदा भी है। यह विडम्बना ही है कि आज व्यक्ति के जीवन का मूल्य कम होता जा रहा है। तेज रफ्तार वाहन जीवन को रौंद रहे हैं और फिर धन-बल के सहारे या राजनीतिक रसूख से अपराधी बच निकलता है। विगत कुछ दिनों में कई बड़ी घटनाएं घटी हैं, जिनमें महंगी व लग्ज़री गाड़ियों की तेज़ रफ्तार जीवन को रौंद रही है। पहली घटना मुम्बई की है, जहां पुणे के कल्याणी नगर में एक नाबालिग ने तेज़ रफ्तार पोर्शे कार से बाइक सवार 24 वर्ष के दो इंजीनियरों को टक्कर मार दी, जिसमें दोनों की मौत हो गई। चश्मदीदों और पुलिस के अनुसार आरोपित नशे में था। किशोर न्यायालय ने बड़ी सहजता से 300 शब्दों का निबंध लिखने की बात कह कर उसे ज़मानत दे दी।
 सोशल मीडिया और मीडिया में मामले ने तूल पकड़ा तो पुलिस व प्रशासन फिर से सक्रिय हुआ। आनन फानन में यह भी प्रयास किया गया कि वह लड़का गाड़ी नहीं चला रहा था और उसने नशा भी नहीं किया था। समाचार यह भी छपे कि यह लड़का किसी बहुत बड़े पैसे वाले का है और इसी कारण अस्पताल में डॉक्टर्स ने भी पैसा लेकर खून के नमूने बदले। पुलिस और प्रशासन की सुस्ती व चुस्ती के कारण भी स्पष्ट हैं। दो युवा इंजीनियरों की मौत का मामला धन-बल के सहारे दबाने के प्रयास हुए। दूसरा मामला नोएडा का है, जहां तेज़ रफ्तार लग्ज़री कार की टक्कर से ई-रिक्शा सवार एक नर्स समेत दो लोगों की मौत हो गई। मामला दर्ज और रफा-दफा। एक और मामला भी नोएडा का ही है जहां लग्ज़री कार की टक्कर से एक बुजुर्ग की मौत हो गई। ऐसा ही एक मामला पंजाब के मोहाली का भी है जहां लग्ज़री कार की टक्कर से मोटरसाइकिल सवार एक व्यक्ति की मौत हो गई और दूसरा गंभीर रूप से घायल है।
 हाल ही में चेन्नई में राज्यसभा सांसद की बेटी ने अपनी महंगी लग्ज़री कार से एक 24 वर्षीय युवक को रौंद दिया, जिसमें  युवक की मौत हो गई। आश्चर्य है कि इस मामले में भी आरोपित को थाने से ही ज़मानत मिल गई। ध्यातव्य है कि इन  मामलों में महंगी, बड़ी और लग्ज़री गाडियां व उनकी तेज़ रफ्तार है। इन गाड़ियों का सीधा संबंध धन कुबेरों के साथ ही है। क्या इस प्रकार के मामले दुर्घटना से भिन्न हत्या की श्रेणी में नहीं आने चाहिए? सड़क परिवहन मंत्रालय की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 1,68,491 लोगों ने जान गवाई और 4,43,366 लोग घायल हुए। ध्यातव्य है कि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं लापरवाही से, चालक के नशे में होने के कारण व तेज रफ्तार से होती हैं जिनमें सीधे ज़मानत मिल जाती है अथवा मामूली सज़ा के बाद दोषी छूट जाता है। ज्यादातर मामलों में धन-बल के सहारे गवाहों को खरीद लिया जाता है अथवा वकील मरने वाले को ही दोषी सिद्ध कर देता है।
कुछ समय पहले गुजरात के राजकोट में गेमिंग ज़ोन में भीषण आग लगने से 12 बच्चों समेत कई लोगों की मौत की घटना हुई थी। इस घटना में भी प्रशासनिक लापरवाही की कई बातें सामने आ रही हैं। सरकार मृतकों और घायलों को मुआवज़ा देकर अपना काम पूरा कर कर है। गुजरात हाईकोर्ट ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे मानव निर्मित आपदा बताया था।
इसी प्रकार की एक बड़ी घटना दिल्ली के विवेक विहार की है, जहां अवैध रूप से चल रहे बेबी केयर न्यू बॉर्न नर्सिंग होम में आग लगने से 6 शिशुओं की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुके हैं। स्पष्ट है कि नर्सिंग होम का मालिक धन के लिए और धन-बल के सहारे इस अवैध काम को कर रहा था। ऐसे ही प्रतिदिन कहीं न कहीं अवैध अथवा वैध फैक्टरी, गोदाम, अस्पताल, कोचिंग सेंटर आदि में आग लगती रहती है। एक- दो दिन घटना की जांच-पड़ताल होती है और फिर मामला खत्म। 
पिछले दिनों नकली दवाइयों के अनेक ठिकानों और लोगों की संलिप्तता के समाचार छापे। धन-बल के सहारे नशे का कारोबार जारी है। धन-बल के सहारे ही संदेशखली जैसी बड़ी घटनाएं हो रही हैं। कुछ कार्यवाही होती है, फिर मामला रफा-दफा हो जाता है, लेकिन नकली दवाइयां खाने व नशे से जिन लोगों का जीवन गया, उनका क्या दोष था? यह देखने वाली बाद है कि फैक्टरी, गोदाम, अस्पताल, कोचिंग सेंटर एवं इसी प्रकार के अन्य स्थानों पर आग लगने के समाचार बड़े सामान्य होते जा रहे हैं। प्रतिदिन कितने ही लोग जीवन खो रहे हैं। इसी प्रकार तेज़ रफ्तार लग्जरी गाड़ियों से दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिनमें प्रतिदिन कई लोग जीवन गवां रहे हैं। ऐसे मामलों में भी चालक को नाबालिग कह कर अथवा गैर-इरादातन हत्या का मामला दर्ज कर फाइलें बंद कर दी जाती हैं। क्या इस प्रकार की घटनाएं सामान्य हैं? यह अपराध का और जानलेवा भ्रष्टाचार का व्यवस्थित तंत्र है जिसमें से अपराधी धन-बल के सहारे सहज ही बच निकलता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों में 18 वर्ष से कम आयु के 11,717 लोग थे। क्या दुर्घटना में मारे गए ये युवा समाज और राष्ट्र की सम्पत्ति नहीं थे। इस प्रकार की किसी भी दुर्घटना में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित लोगों के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। जब नाबालिग को नशा करने, बार में जाने और बिना लाइसेंस महंगी गाड़ियां चलाने अथवा अन्य प्रकार से अपराध करने की समझ है तो उस पर भी बालिग की तरह आपराधिक मामला दर्ज करके कठोर से कठोर दंड का प्रविधान होना चाहिए। (युवराज)