खूब फोड़े गये पटाखे, सांस लेना हुआ मुश्किल
जागरूकता बढ़ाने की तमाम कोशिशों, समझाने के तमाम प्रयासों और डराने की सभी तरकीबों को दिवाली की रात दिल्ली वालों ने धता बता दिया। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के निर्देशों की अनदेखी करते हुए, न सिर्फ राजधानीवासियों ने बल्कि दिल्ली से सटे और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी उपनगरों में भी लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े, जिसका नतीजा यह निकला कि दिल्ली की हवा पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा ज़हरीले स्तर पर पहुंच गई। शुक्रवार की सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर राजधानी दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अंतर्राज्यीय बस अड्डा आनंद विहार के आसपास 714 अंकों को छू रहा था। यह आजतक का सबसे प्रदूषित स्तर है। इतनी जहरीली हवा सिर्फ राजधानी के किसी एक इलाके में ही नहीं थी बल्कि दिल्ली के हर कोने का कमोवेश यही खतरनाक हाल था। इसके अतिरिक्त हरियाणा व पंजाब में भी हवा बहुत ज़हरीली पाई गई। इन राज्यों के कुछ शहरों में एक्यूआई 500 के आसपास तक पहुंच गया, जिसे बहुत खतरनाक माना जाता है। राजधानी के सेमी पॉश इलाके में शामिल डिफेंस कालोनी में दिवाली की अगली सुबह का वायु गुणवत्ता सूचकांक 631, पड़पड़गंज का 513 और सिरीफोर्ट का 480 था। जबकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक संतोषजनक वायु गुणवत्ता का सूचकांक 0 से 50 के बीच होना चाहिए। 50 से 100 अंकों की गुणवत्ता वाली वायु भी सहन करने लायक होती है, इसके ऊपर की सभी श्रेणियां लगातार खतरनाक, गंभीर और अतिगंभीर श्रेणियां होती है।
गौरतलब है कि हाल के सालों में दिल्ली व आसपास के राज्यों में पटाखों के फोड़ने के कारण दिवाली के आसपास हवा इस कदर ज़हरीली हो जाती है कि सांस लेने में भारी होने लगता है। इसलिए पिछले कई सालों से न सिर्फ दिल्ली में सरकार की तरफ से बल्कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ पर्यावरण समिति की तरफ से भी दिवाली के मौके पर लोगों से पटाखों के न छुड़ाये जाने की अपील की जाती है, साथ ही पुलिस द्वारा इसे न मानने पर कार्यवाई करने की चेतावनी भी दी जाती है। लेकिन पता नहीं क्यों दिल्ली व देश के लोग इन सारी जागरूकताओं, निर्देशों और कानूनी सज़ाओं को एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। यही वजह है कि एक तरफ जहां 2016 के बाद से लगातार किसी न किसी तरह से अदालतें और सरकारें आतिशबाजी पर रोक की बात करती रही हैं, वहीं लोग इस रोक को अपने स्तर पर धता बताते रहे हैं।
मगर इस साल तो हद ही हो गई। माना जा रहा था कि जिस तरह से दिवाली के पहले ही इस साल दिल्ली की हवा प्रदूषण के ज़हर से भर गई है, उसे देखते हुए शायद लोग इस बार दिवाली में आतिशबाज़ी से बाज आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। धनतेरस वाले दिन कई हज़ार चालान काटकर दिल्ली प्रशासन को लग रहा था कि जैसे वह दिल्ली के लोगों को नियम मानने पर मजबूर कर देगा। मगर ऐन दिवाली वाले दिन दिल्लीवासियों ने बता दिया कि हम अभी भी पहले जितने ही बेफिक्र लोग हैं, जो तब तक पटाखों आदि के छुड़ाने से बाज नहीं आएंगे, जब तक हमारे घर का ही कोई शख्स प्रदूषण से शहीद न हो जाए। साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर रोक लगायी थी। इसके बाद अगले ही साल यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से दिल्ली और एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। 2018 में तो देश की सर्वोच्च अदालत ने तथाकथित ग्रीन पटाखों को भी फोड़ने की अनुमति नहीं दी थी और सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि समूचे एनसीआर में इनकी बिक्त्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
इसी तरह साल 2020 और 2021 में दिल्ली सरकार और एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) ने भी सभी तरह के पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन सारे नियमों को एक तरफ रखते हुए 31 अक्तूबर व एक नवम्बर को पटाखे फोड़ने की सारी रोक को एक तरफ रखते हुए, जमकर पटाखें फोड़े गये। सवाल है लोगों ने आखिर ऐसा क्यों किया? आखिर लोगों ने सरकार और अदालतों को संयम बरतने के नाम पर ठेंगा क्यों दिखाया? दिल्लीवासियों की यह बेफिक्री इसलिए भी हैरान करने वाली है, क्योंकि एक दशक पहले तक जहां दिल्ली में महज कुछ दिनों यानी दिवाली के आसपास ही वायु गुणवत्ता निम्न होती थी, वहीं अब राजधानी के वातावरण में साल के कम से कम 8 महीने हवा सांस लेने के लिए स्वास्थ्यप्रद तो नहीं होती। ज्यादा से ज्यादा महाघातक से कम घातक श्रेणी तक ही पहुंचती है। साल 2014 में पहली बार देश की वायु गुणवत्ता का वास्तविक आंकलन करने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स जैसे मानदंड को अपनाया गया, जिसमें पहले दिन से ही दिल्ली की हवा खराब और बहुत खराब के बीच बनी थी लेकिन अब तो साल में कम से कम 25 से 35 दिनों तक इसका दुष्प्रभाव गंभीर श्रेणी तक पहुंच जाता है।
साल 2015 के बाद हर सर्दी के मौसम में कम से कम दो महीने दिल्ली में रहने वाले लोगों के जानलेवा होते हैं क्योंकि 2015 के बाद से आमतौर पर लगातार औसतन एक्यूआई का आंकड़ा 300 के आसपास रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने से यह सांस लेने के लिए औसत गुणवत्ता वाली वायु से कम से कम 5 से 6 गुना यानी 500 से 600 फीसदी तक खराब है। साल 2019 से 2023 के बीच दीपावली के आसपास और इसके बाद हाड़कांपती ठंड के दौरान दिल्ली की वायु गुणवत्ता औसतन 400 से 500 के आंकड़े तक कम से कम डेढ़ से दो महीने तक रही है, जो कि स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद गंभीर स्थिति है। विभिन्न पर्यावरण संस्थाएं, समाज सेवी संगठन, प्रशासन, राजनीतिक पार्टियां सब की सब वायु गुणवत्ता के गिरते स्तर पर लगातार चिंताएं जताती रहती हैं। बावजूद इसके एक्यूआई 300 से 400 के बीच ही घूम रहा है यानी सांस लेने के लिए जो स्वस्थ हवा चाहिए, उससे 6 से 8 गुना खराब हवा में हमें सांस लेना पड़ रहा है।
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