विश्व रैपिड खिताब जीतने वाली शतरंज की रानी कोनेरू हम्पी

विजयवाड़ा में चेन्नै-विजयवाड़ा हाईवे पर एक हाई-राइज काम्प्लेक्स है। इसी में शतरंज की रानी कोनेरू हम्पी का आशियाना है, जिसमें उनके पति दसारी अन्वेष और 7 साल की बेटी अहाना भी रहती हैं। इसी काम्प्लेक्स में हम्पी के पिता अशोक का भी अपार्टमेंट है, जो सुबह से शाम तक ऑनलाइन शतरंज खेलते हैं, 2011 तक अपनी बेटी के साथ प्रतियोगिताओं के लिए यात्रा करते थे और आज भी खेल के संदर्भ में उन्हें बहुमूल्य सुझाव देते हैं। हम्पी के सास ससुर भी पास की ही बिल्डिंग में रहते हैं। हम्पी जब प्रतियोगिताओं के लिए जाती हैं तो अहाना का ख्याल उसके दादा-दादी व नाना-नानी रखते हैं। लेकिन टूर्नामैंट्स में हम्पी के प्रदर्शन का ट्रैक घर में केवल अशोक ही रखते हैं। 
बहरहाल, दिसम्बर 2024 में जब हम्पी अपना दूसरा विश्व रैपिड चैंपियन खिताब (पहला 2019 में जीता था) लेकर न्यूयॉर्क से विजयवाड़ा लौटीं तो अहाना ने उनका स्वागत अपने हाथ से लिखे इस नोट से किया, ‘आप मेरा गर्व हो, मॉम। आप मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हो। आप मेरी प्रेरणा का स्रोत हो। आपका समर्पण, कड़ी मेहनत, प्रेम व विश्वास मुझे अधिक करने, अधिक सीखने और अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित करता है। आई लव यू मॉम।’ दरअसल, आहना ही नहीं पूरा देश हम्पी से प्यार करता है क्योंकि उनकी उपलब्धियां ही कुछ ऐसी हैं। हम्पी ने 7 साल की आयु में लकड़ी के मोहरों को पहली बार अपने हाथ में पकड़ा था। फिर उनका अधिकतर बचपन बिसात के 64 खानों पर मोहरों में ‘युद्ध’ कराते हुए बीता, जबकि उनके पिता उनके खेल को अपनी पैनी निगाहों से देखते रहते थे। इसका नतीजा यह निकला कि मात्र 15 वर्ष की आयु में हम्पी शतरंज के इतिहास में सबसे कम उम्र की महिला ग्रैंडमास्टर बनीं। 
यह 2002 की बात है। फिर 2011 में हम्पी ने महिला विश्व चेस चैंपियन का मुकाबला तिराना में होऊ यिफान के विरुद्ध खेला, जोकि महिला शतरंज का टॉप प्राइज है, लेकिन दुर्भाग्य से वह हार गईं। अपनी बेटी को जन्म देने के कारण हम्पी लम्बे समय तक शतरंज से दूर रहीं, लेकिन जब वह 2019 में बिसात पर लौटीं तो उन्होंने विश्व रैपिड शतरंज चैंपियनशिप का अपना पहला खिताब जीता। इसके अगले वर्ष यानी 2020 में ऑनलाइन चेस ओलम्पियाड में भारतीय टीम का नेतृत्व किया और संयुक्त स्वर्ण पदक हासिल करने में योगदान दिया। इसके दो वर्ष बाद यानी 2022 में हम्पी ने एक बार फिर भारतीय महिला टीम का नेतृत्व करते हुए चेन्नै में आयोजित चेस ओलम्पियाड में कांस्य पदक दिलवाया। उसी वर्ष हम्पी ने विश्व ब्लिट्ज चैंपियनशिप्स में व्यक्तिगत रजत पदक जीता। 
हम्पी ने 2024 में जो अपना दूसरा विश्व रैपिड चैंपियन खिताब जीता वह उनके लिए भी आश्चर्य के तौर पर आया। न्यूयॉर्क की प्रतियोगिता से कुछ माह पहले के दौरान हम्पी बहुत बुरे फॉर्म में चल रही थीं और साथ ही एक साल से वह बीमार भी चल रही थीं। न्यूयॉर्क में विश्व की श्रेष्ठ 110 महिला खिलाड़ी मैदान में थीं। जेट लैग से जूझती हुई वह अजीबोगरीब समय पर प्रतियोगिता में पहुंचीं। पहले राउंड में वह टाइम पर हार गईं, बावजूद इसके कि बिसात पर उनकी स्थिति बेहतर थी। फिर उन्होंने वापसी की। कोई चीज़ उनके पक्ष में नहीं जा रही थी, लेकिन हम्पी ने संघर्ष किया और हम्पी जीत गईं। उनका यही गुण है जिसे उनके पहले कोच व पिता अशोक बहुत पसंद करते हैं। इस खिताबी जीत में भी पिता के आउट-ऑ़फ-द-बॉक्स सुझाव ही हम्पी के बहुत काम आये- ‘चेस इंजन के बिना ट्रेनिंग करना, पिछले विश्व चैंपियनों के वीडियोज देखना, ढेर सारे ऑनलाइन गेम्स खेलना और पज़ल हल करना।’
अपनी युवावस्था में 37 वर्षीय हम्पी बहुत महत्वाकांक्षी थीं। वह ड्रा के लिए कभी हामी नहीं भरती थीं। अनेक ऐसे गेम्स हैं, जिनमें उन्होंने ड्रा के ऑफर को ठुकराया, जीत के लिए अधिक कोशिश की और हार गईं। आजकल वह कम आक्रमक खिलाड़ी हैं, लेकिन अशोक उन्हें आक्रामक खिलाड़ी के रूप में ही देखना चाहते हैं। वह कहते हैं, ‘जब वह यंग थी तो जीत के लिए संघर्ष किया करती थी। मैं इसमें यही जज्बा देखना चाहता हूं।’ अन्य इलीट खिलाड़ियों के विपरीत जो खेल से स्विच ऑफ करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, हम्पी ने अपने जीवन में संतुलन बनाया हुआ है। वह बताती हैं, ‘टूर्नामैंट के खत्म होते ही मेरे शतरंज पर विराम लग जाता है। तब शतरंज तभी होता है, जब मैं अपने कमरे में प्रैक्टिस कर रही हूं या अपने पिता से बातें कर रही होती हूं। वर्ना शतरंज मेरे जीवन का हिस्सा नहीं रहता है। मैं ऐसा ही चाहती थी। मैं जीवन और शतरंज को अलग-अलग रखना चाहती हूं। मैं बिसात का तनाव अपने घर में लेकर नहीं जाती।’
तीन दशक के शतरंज के बाद हम्पी ने अपनी ज़िंदगी को दो खेमों में विभाजित किया हुआ है। एक खेमे में उनका शतरंज करियर है और दूसरे खेमे में उनका पारिवारिक जीवन है। एक में उनके पिता का दखल है और दूसरे में उनके पति व बेटी हैं। कहने का अर्थ यह है कि हम्पी पारिवारिक समय के लिए भी उतनी ही टैक्टिकल हैं, जितना कि शतरंज की बिसात पर अपनी चालों को लेकर। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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