प्रयागराज महाकुंभ में श्रद्धालुओं का आकर्षण बना किन्नर अखाड़ा

प्रयागराज में चल रहे मौजूदा महाकुंभ में देश-विदेश के भक्तों और श्रद्धालुओं का ध्यान सबसे ज्यादा नागा और किन्नर साधु खींच रहे हैं। नागा साधु जहां विभिन्न शैव अखाड़ों का हिस्सा होते हैं, वहीं किन्नर संत पहली बार एक मान्यता प्राप्त अखाड़े के रूप में प्रयागराज महाकुंभ में शामिल हुए हैं। हालांकि वह इसके पहले 2021 में हरिद्वार में और उसके पहले नासिक कुंभ में भी भागीदारी कर चुके हैं, लेकिन पहली बार अपने एक स्वतंत्र अखाड़े के संतों के रूप में किन्नर साधुओं ने प्रयागराज में शाही स्नान किया है और इस घटना से रूबरू होने के लिए किन्नर साधुओं के रास्ते में दोनों तरफ लाखों लोगों की भीड़ खड़ी थी, जो उनका जय जयकार कर रही थी और उन पर फूल बरसा रही थी। इस बार के पहले शाही स्नान के दौरान महाकुंभ में किन्नर साधुओं को देखकर आम श्रद्धालु इस कदर रोमांचित थे कि हजारों की तादाद में पुलिस फोर्स के लगे होने के बावजूद वे अपनी जान जोखिम में डालकर किन्नर साधुओं के रथों के पीछे दौड़ रहे थे और उनके पैर छूने को बेताब थे। किन्नर साधु जैसे ही संगम तट पर शाही स्नान के लिए पहुंचे, लोग रोमांच से जय जयकार करने लगे। 
जूना अखाड़े के साथ किन्नर अखाड़े के संत शाही रथों और बग्घियों पर सवार होकर अमृत स्नान के लिए पहुंचे थे। किन्नर अखाड़े ने श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के साथ अमृत स्नान में हिस्सा लिया। राजशाही तरीके से सुज्जित रथों में स्नान करके लौटते हुए किन्नर संतों ने भाव विह्वल हुए श्रद्धालुओं को निराश भी नहीं किया, उन्होंने भक्तों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। 
जबकि दूसरे साधु आमतौर पर भक्तों के प्रति इतने दयालु नहीं होते। लेकिन शायद इन्हीं और संतों के प्रति आम भक्त इतने आसक्त भी नहीं होते, जिस तरह किन्नर संतों के प्रति लोगों की भाव विह्वलता देखने को मिली। शायद भारतीय समाज में यह बहुत गहरे तक विश्वास बना हुआ है कि किन्नर बहुत पवित्र आत्मा होते हैं। यही वजह है कि आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में जब किन्नर अखाड़े के साधु, संत संगम नोज पहुंचकर अमृत स्नान किया, तो समूचे महाकुंभ क्षेत्र में जय जयकार होने लगी और एक खास तरह की ऊर्जा से पूरा कुंभ क्षेत्र चार्ज हो गया। हर हर महादेव का जयघोष करते जब किन्नर अखाड़े के संत पारंपरिक शस्त्रों का लयपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, तो उनकी गरिमा और शौर्य का उल्लास देखते बनता था। किन्नर अखाड़े के साधुओं ने अमृत स्नान के अवसर पर हर भारतवासी के लिए सुख, समृद्धि और कल्याण की कामना की। उनके मुताबिक महाकुंभ का यह आयोजन न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है बल्कि समाज को सकारात्मक दिशा देने का आयोजन भी है। हर हर महादेव के नारों के बीच किन्नर अखाड़े ने भारतीय संस्कृति का एक ऐसा समरस रूप प्रस्तुत किया है, जो किसी और देश में किन्नरों को इतनी ऊंची सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप में शायद ही स्वीकार हो।
गौरतलब है कि किन्नर अखाड़े की स्थापना साल 2015 में आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने की थी, यह अखाड़ा उत्तराखंड के हरिद्वार में है। यह भारत में संतों के 13 अखाड़ों से अलग है, जो अखाड़े सदियों से मौजूद हैं। किन्नर अखाड़ा दरअसल ट्रांसजेंडर समुदाय का आध्यात्मिक मंच है। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सनातन धर्म और सनातन परंपरा के अनुसार आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व की भूमिका में शामिल किया जाता है। ट्रांसजेंडर अखाड़े में दूसरे अखाड़ों की तरह ही किन्नर महामंडलेश्वर, साध्वी और गुरुओं की परंपरा स्थापित की गई है। ये तकनीकी रूप से पहली बार 2019 के कुंभ मेला में शामिल हुए थे, क्योंकि इसके पहले तक किन्नर समुदाय विधि-विधान से उच्च धार्मिक परंपराओं में शामिल नहीं होते थे। साल 2021 के हरिद्वार कुंभ में किन्नर अखाड़े ने अपनी परंपरा और आध्यात्म के प्रचार प्रसार में मजबूती दिखायी और जब 2025 में लोगों ने प्रयागराज में इनकी पूर्ण मौजूदगी देखी तो अभिभूत हो गये। क्योंकि भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में किन्नरों का विशेष स्थान है।
रामायण और महाभारत जैसे महान हिंदू धार्मिक ग्रंथों में किन्नरों का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है। बाद में आधुनिक समाज ने इनकी पहचान को हाशिये पर धकेल दिया था, खासकर जब भारत में मुस्लिमों का शासन था, तो उन्होंने किन्नरों को हर तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों से दूर कर दिया था। मगर आजाद भारत में एक बार फिर से किन्नर सनातन धर्म परंपरा की समरस संस्कृति का मजबूत हिस्सा हैं। किन्नर मूलत: अपने आध्यात्मिक रहस्यवाद के लिए जाने जाते हैं। किन्नर अखाड़ा केवल धर्म प्रचार नहीं करता बल्कि यह ट्रांसजेंडर अधिकारों, शिक्षा और सामाजिक समावेश के लिए भी काम करता है। भारतीय संस्कृति में किन्नरों को बहुत पूज्य और पवित्र माना जाता है। उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति को हमेशा नमन किया जाता है, इसलिए जब किन्नर किसी अखाड़े या मेले के आयोजन में शामिल होते हैं, तो लोग उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी आभा से प्रभावित होते हैं। अब सनातन पंरपरा के महान संत अखाड़ों में शामिल हुआ, किन्नर अखाड़ा भारतीय समाज में, किन्नरों के सम्मान और स्वीकृति का प्रतीक है। इसलिए कुंभ में नागा साधुओं की तरह इन्हें भी विशेष आदर, सम्मान व उत्सुकता से देखा जाता है।
क्योंकि नागा साधु किसी एक अखाड़े के प्रतिनिधि नहीं होते बल्कि वो सभी शैव अखाड़ों में होते हैं, इसलिए जब शाही स्नान में ये अखाड़े शामिल होते हैं तो इनकी अगुवाई हमेशा नागा साधु करते हैं। क्योंकि कुंभ मेले में एक साथ सभी अखाड़े स्नान के लिए तयशुदा घाट में नहीं पहुंचते बल्कि एक-एक कर पहुंचते हैं, इसलिए शाही स्नान के दिन सुबह 4 बजे से दोपहर बाद तक गगनभेदी जयघोषों के बीच विभिन्न अखाड़ों के साधु, संत स्नान करके एक के बाद एक अपने-अपने आश्रमों में लौटते हैं और उन सबकी अगुवाई करते हुए नागा साधु कई घंटों तक भक्तों को अपना दर्शन देकर उनका प्रयाग में स्नान के लिए आने को सार्थक करते हैं। एक तरह से कुंभ भारत की सनातन संस्कृति का उत्स होता है। इसे हर किसी को नज़दीक से देखना चाहिए, जिसे इसका अवसर मिले। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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