ऐसे बना विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान

भारत इस वर्ष अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के संविधान का विशेष महत्व है, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। हालांकि इसे स्वीकृत 26 नवम्बर, 1949 को ही कर लिया गया था। डा. भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के कारण ही भारत का संविधान ऐसे रूप में सामने आया, जिसे दुनिया के कई अन्य देशों ने भी अपनाया। दिलचस्प बात यह है कि भारत के लिखित संविधान में कई चीजें विभिन्न देशों के संविधान से ली गई हैं। हमारा यह संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। हालांकि कुछ ऐसे देश भी हैं, जिनके पास अपना कोई लिखित संविधान नहीं है, ऐसे देशों में पहले से ही बने ऐसे नियमों के आधार पर ही शासन व्यवस्था चलाई जाती है, जो संविधान के अधिनियमों के बराबर महत्व रखते हैं। आश्चर्य की बात है कि भारत पर करीब दो सदियों तक शासन कर चुके इंग्लैंड जैसे देश के पास भी लिखित रूप में संविधान नहीं है। समय और परिस्थितियों के अनुसार इंग्लैंड के कानून को वहां की संसद द्वारा बदला जा सकता है।
सऊदी अरब भी ऐसा देश है, जिसके पास अपना कोई लिखित संविधान नहीं है, जहां कुरान में लिखी बातों को ही सर्वोच्च मानकर प्राय: अजीबोगरीब कानूनों के आधार पर ही निर्णय लिए जाते हैं। इज़रायल भारत के एक वर्ष बाद यानी 1948 में आज़ाद हुआ था लेकिन उसके पास भी अपना लिखित संविधान नहीं है। हालांकि वहां संविधान बनाने की प्रक्रिया तो शुरू हुई थी किन्तु संसद में आपसी मतभेदों के कारण यह मूर्त रूप नहीं ले सका। इसी कारण इज़रायल की संसद में अलिखित संविधान को ही मान्यता प्राप्त है, जिसके जरिये वहां की शासन व्यवस्था चलाई जाती है। इज़रायल की ही भांति दक्षिण पश्चिमी प्रशांत महासागर के द्विपीय देश न्यूज़ीलैंड में भी अलिखित संविधान ही है और वहां भी पहले बने कानूनों को आधार मानकर न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था चलती है। संविधान के लिखित अथवा अलिखित होने को लेकर कनाडा की स्थिति कुछ अजीबोगरीब है। दरअसल यहां कुछ लोग मानते हैं कि कनाडा में अलिखित संविधान के जरिये शासन होता है जबकि कुछ लोगों का कहना है कि कनाडा का लिखित संविधान है। वैसे माना जाता है कि कनाडा में लिखित संविधान तो है लेकिन यहां की सरकार अलिखित संविधान के नियमों का ही पालन करती है।
जहां तक भारतीय संविधान की बात है तो प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरव का प्रतीक हमारा यह संविधान बहुत मेहनत के बाद तैयार हुआ था। संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चली थी और संविधान के निर्माण में करीब तीन वर्ष का समय लगा था। संविधान के निर्माण कार्य पर करीब 64 लाख रुपये खर्च हुए थे और इसके निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई थी। मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संविधान संशोधन के जरिये सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर संविधान के अनुच्छेद 300 (ए) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया, जिसके बाद भारतीय नागरिकों को छह मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28), संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) तथा संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 के अंतर्गत मूल अधिकारों का वर्णन है और संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि इनमें संशोधन भी हो सकता है तथा राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।
भारतीय संविधान से जुड़े रोचक तथ्यों पर नज़र डालें तो हमारे संविधान की सबसे बड़ी रोचक बात यही है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनीतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे लेकिन अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा के गठन की लगातार उठती मांग को ठुकराया जाता रहा। आखिरकार 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया। 1942 में क्रिप्स कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी।
सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा पहली बार समवेत हुई किन्तु अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा बैठक का बहिष्कार किया गया। दो दिन बाद संविधान सभा की बैठक में डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया और वे संविधान बनाने का कार्य पूरा होने तक इस पद पर आसीन रहे। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हुआ और संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 को संविधान का मसौदा तैयार करने वाली ‘संविधान निर्मात्री समिति’ का गठन किया गयाए सर्वसम्मति से जिसके अध्यक्ष बने भारतीय संविधान के जनक डा. भीमराव अम्बेडकर। संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने के लिए संविधान में पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की गई है, जिससे भारतीय संविधान का सार, उसकी अपेक्षाएं, उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना के अनुसार, ‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’ संविधान की यह प्रस्तावना ही पूरे संविधान के मुख्य उद्देश्य को प्रदर्शित करती है।

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