एक प्रसिद्ध हास्य कलाकार हैं शोभा खोटे   

इस घिसे पिटे विरोधाभास को भूल जाइये कि अपनी मुस्कान के पीछे जोकर अपने आंसुओं को छुपाये रहता है। शोभा खोटे एक ऐसी हास्य कलाकार हैं, जो निरंतर हंसती व हंसाती रहती हैं और यह संदेश देती हैं कि ‘चिंता मत करो, खुश रहो’। अब वह अपने जीवन के 88 बसंत पार कर चुकी हैं, अब भी एक्टिंग कर रही हैं, जिससे वह सबसे पुरानी सक्रिय अभिनेत्री हो जाती हैं। उन्होंने अपने जीवन में सीमा, पेइंग गेस्ट, छोटी बहन, अनाड़ी, गोलमाल, एक दूजे के लिए आदि यादगार फिल्में दी हैं और वह अब भी भरपूर हंसती व हंसाती हैं। वह कहती हैं, ‘जीवन में चीज़ें जैसी आती हैं उन्हें मैं वैसे ही स्वीकार कर लेती हूं। मैं चिंता नहीं करती हूं। देखा जायेगा। और मैं खूब हंसती हूं। मैं खिड़की के बाहर देखती हूं, पक्षियों को कुछ मज़ेदार करते देखती हूं और फिर खूब हंसती हूं। मैं 88 बरस की हो गई हूं और हमेशा की तरह खूब मज़े में हूं।’ 
गौरतलब है कि हाल ही में शोभा खोटे ने फिल्मे (डबल एक्सएल, टॉयलेट, ए लव स्टोरी), टेलेविज़न (स्पाई बहू) और अनेक विज्ञापन (अमूल छाछ, विक्रम टी) किये हैं। उनकी इस दीर्घकालीन सक्रियता का राज़ क्या है? वह बताती हैं, ‘अगर मुझे अधिक काम मिलेगा तो मैं इससे भी ज्यादा काम करूंगी। दुर्भाग्य से इस उम्र में मेरे लिए रोल्स मिलना कठिन है। मैं काम करती रहती हूं क्योंकि मैं फिट हूं। मुझे एक्टिंग करना पसंद है। मैं एक्टिंग करने से ही रिलैक्स होती हूं।’ सेट पर हर कोई शोभा खोटे से उम्र में छोटा होता है। जब वे लोग उनसे आशीर्वाद लेते हैं तो वह खुद को वृद्ध महसूस करती हैं, वर्ना वह खुद को बुढ़िया नहीं समझती हैं। 
बहरहाल, वह एक ऐसा पुल हैं जो हिंदी सिनेमा के सुनहरे युग (1950 व 1960 के दशक) को आज के आधुनिक इंटरनेट युग से जोड़ती हैं। उस पुराने दौर को याद करते हुए वह बताती हैं, ‘तब फिल्मी दुनिया बहुत छोटी थी, ज्यादा कलाकार नहीं थे। हम एक परिवार की तरह थे। हर सिल्वर जुबली के बाद पार्टी होती थी और सब एक दूसरे से मिलते थे। अब पीछे मुड़कर देखती हूं तो बहुत अच्छी यादे हैं। मैं शांति के साथ 9 से 6 काम किया करती थी। अच्छे निर्देशकों के साथ अच्छी भूमिकाएं मिलती थीं। अपने पिता की कृपा से मेरी स्टेज की पृष्ठभूमि थी। मेरे सामने कोई भी कलाकार हो, मुझे एक्टिंग करते हुए डर नहीं लगता था। मैं दिलीप कुमार की पूजा करती थी, लेकिन दुर्भाग्य से मुझे उनके साथ काम करने का कभी अवसर नहीं मिला। राज कपूर से अच्छी दोस्ती थी, उनके साथ आरके स्टूडियो में अनाड़ी के लिए काम करते हुए ऐसा लगा जैसे उनके घर में काम कर रही हूं। देवानंद बहुत सभ्य थे, लेकिन पेइंग गेस्ट में उनके साथ काम करते हुए मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि मैं नेगेटिव भूमिकाएं अदा करने से ऩफरत करती थी।’
लेकिन ‘एक दूजे के लिए’ में भी तो वह नेगेटिव रोल में थीं, हां उसमें हास्य का पुट भी था। हालांकि उस फिल्म को देखते हुए दर्शकों को लगा कि दुर्गा खोटे सीढियां नहीं चढ़ सकती थीं, लेकिन उस समय वह पूर्णत: फिट थीं। यही तो एक्टिंग है। गौरतलब है कि शोभा खोटे ने अपनी पहली फिल्म सीमा (1955) से ही दर्शकों को हंसाना शुरू कर दिया था। इस फिल्म में उन पर यह गाना फिल्माया गया था ‘बात बात में रूठो न, अपने आप को कोसो न’। वह अपने जीवन में इसी दर्शन का पालन करती हैं। इस गाने की उनकी पसंदीदा पंक्ति है- ‘तुम जो हंसे तो हंस देगी दुनिया, रोना पड़ेगा अकेले’। हंसना उम्र बढ़ा देता है, शोभा खोटे इस बात का सबूत हैं। हिंदी सिनेमा में महिला हास्य कलाकार दुर्लभ हैं। शोभा खोटे इससे भी दुर्लभ हैं; क्योंकि हास्य उत्पन्न करने के लिए वह टुनटुन या मनोरमा की तरह शरीर की बनावट पर निर्भर नहीं थीं। दिलचस्प यह है कि शोभा खोटे फिल्मों में हीरोइन नहीं बल्कि हास्य कलाकार बनने के लिए आयी थीं। उनके ज़माने में कोई अन्य महिला हास्य कलाकार नहीं थी, इसलिए कोई कम्पटीशन ही नहीं था। 
पचास के दशक के लिए यह भी दुर्लभ था कि शोभा खोटे एथलीट (स्विमिंग व साइकिलिंग में राष्ट्रीय चैंपियन) थीं और विल्सन कॉलेज से ग्रेजुएट भी थीं। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य व फ्रेंच में जब अपनी शिक्षा पूर्ण की तो अमिय चक्रवर्ती ने उनकी तस्वीरें देखीं और सीमा में कास्ट किया। इस तथ्य से भी मदद मिली कि वह राष्ट्रीय स्तर की साइकिलिस्ट थीं और फिल्म की कहानी में उनके किरदार को साइकिल पर एक चोर का पीछा करना था। इस सीन को शूट करते हुए वह चोटिल हो गईं थीं। उन दिनों मुंबई की लिंकिंग रोड का निर्माण हो रहा था और वह एक कब्र पर गिर गईं थीं। उनके चेहरे पर चोट आयी थी, जो जल्द ठीक हो गई। फिल्मों में आने के बाद शोभा खोटे ने स्पोर्ट्स छोड़ दिया। उनकी आखरी रेस उस दिन थी, जिस दिन सीमा का प्रीमियर हुआ था। उन्होंने रेस जीतने के बाद प्रीमियर में हिस्सा लिया। रेस हारने से पहले ही उन्होंने स्पोर्ट्स को अलविदा कह दिया।
हास्य से शोभा खोटे इतनी जुड़ चुकी हैं कि लोगों को यह याद ही नहीं है कि फिल्म दीदी में वह सुनील दत्त की हीरोइन थीं और उन पर यह चर्चित गाना फिल्माया गया था- ‘तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुम को’। शोभा खोटे के लिए एक्टिंग का इतना अधिक महत्व था कि उन्होंने अपनी लुक्स पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। चम्पाकली के लिए उन्होंने 104 डिग्री बुखार में शूटिंग की थी। नूतन उनकी करीबी दोस्त थीं, जिन्हें वह अपना फ्रेंड, फिलोसफर व गाइड मानती थीं। ज़रूरत पड़ने पर नूतन उनका मेकअप भी कर दिया करती थीं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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