चमगादड़ों में वायरस को हराने की क्षमता कब आई ?
यह तो हम जानते हैं कि चमगादड़ रेबीज़, इबोला, मारबर्ग और सार्स जैसे कई घातक वायरस अपने शरीर में ढोते हैं। चमगादड़ों से संपर्क के चलते संक्रमण मनुष्यों और अन्य जीव-जंतुओं में फैल सकता है। लेकिन चमगादड़ इन वायरस से कभी बीमार नहीं पड़ते, कभी वे इन वायरस से संक्रमित हो भी गए तो बहुत मामूली से बीमार होते हैं, और उनकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कभी अतिसक्रिय नहीं होती है।
यह क्षमता उनमें आई कब और कैसे? झेजियांग विश्वविद्यालय के तुलनात्मक प्रतिरक्षा विज्ञानी आरोन इरविंग व उनके साथियों ने इस सवाल का जवाब खोजने के लिए 10 चमगादड़ों के जीनोम का अनुक्रमण किया। जिनमें 4 हॉर्सशू चमगादड़ और हिप्पोसाइडरिडे कुल के कुछ चमगादड़ शामिल थे। ये सभी चमगादड़ कोरोना वायरस के वाहक थे। इसके बाद उन्होंने इनकी तुलना वंशवृक्ष के 10 अन्य चमगादड़ प्रजातियों के जीनोम अनुक्रम से की। नेचर पत्रिका में प्रकाशित इन नतीजों पाया गया कि 95 अन्य स्तनधारी प्रजातियों की तुलना में चमगादड़ों में काफी अधिक संख्या में प्रतिरक्षा जीन मौजूद थे, और उनमें पाए गए परिवर्तन प्राकृतिक चयन का संकेत देते थे।
इनमें से कुछ अनुकूलन तो चमगादड़ों के कुल विशिष्ट में ही पाए गए थे जो इस बात का संकेत देते हैं कि कुछ प्रतिरक्षा जीन चमगादड़ों के कुलों के अलग-अलग होने के बाद विकसित हुए हैं। लेकिन कई प्रतिरक्षा अनुकूलन (जीन) सभी चमगादड़ों में मौजूद थे, जो इस बात का संकेत देते हैं कि ये जीन एक ही पूर्वज में पनपकर हस्तांतरित हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि जीवाश्म साक्ष्य बताते हैं कि चमगादड़ों में ये जीन लगभग उसी समय आए थे जब उनमें उड़ने की क्षमता विकसित हुई थी। (स्रोत फीचर्स)