स्कूल की ओर 

आज भी मटु खरगोश सुबह सुबह अपने घर से बाहर मटरगश्ती करने निकल गया। अपनी मां की पुकार को अनसुना कर और पिता को ईशारे से रोकते हुए देखकर भी उसने नज़रअंदाज़कर दिया। अब तो उसके माता-पिता और पड़ोसी उसकी शरारतों से तंग आ गये थे। पिता जी ने उसे विद्यालय में पढ़ने के लिए डाला था, शायद कुछ सुधर जाए ओर पढ़ लिख कर कुछ बन जाए। मगर मटु तो विद्यालय परिसर से रोज़ घर भाग आता था। 
उसका सबसे अच्छा मित्र और पड़ोसी गटु तो छोटी आयु में ही पढ़ने लग गया था। पढ़ाई और खेलकूद में वो सबसे आगे था। आज के समय में पढाई लिखाई कितनी ज़रूरी है वो मटु को समझता रहता था। मगर मटु के कानों में जूं न रेंगती थी। मटु किसी की बात नहीं सुनता था। उस पर ना अपनी मां की प्यार से कही बात का और ना अपने पिता जी की डांट का कोई असर पड़ता था। उसके दोस्त गटु के समझाने का भी कोई असर नहीं होता था। ऐसे ही समय बीतता जा रहा था। मटु न पड़ाई करता था और न कोई काम सीख रहा था। कुछ वर्षों बाद मटु के छोटे भाई का जन्म हुआ। मटु की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था। अपने भाई का नाम बन्नी भी मटु ने ही रखा था। दिन भर वो उसके पास ही बैठा रहता। मां न होती तो मटु ही बन्नी के सारे काम करता था। शरारतें करना तो जैसे अब वो भूल ही गया था। अपना सारा समय वो बन्नी की देखभाल करने में बिताने लगा। उसे अपने भाई से बहुत प्रेम था और वो चाहता था कि वो अपने भाई के लिये मार्गदर्शक बने। अब वो सब लोगों से अच्छे से बात करता, सबकी मदद करता और किसी को परेशान नहीं करता था। अपने मां ओर पिता जी की हर बात मानता था। छोटा भाई धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। 
बन्नी को भी अपने भाई के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। अब उसको भी स्कूल में दाखिल करवा दिया था। एक दिन जब बन्नी को कुछ समझ नहीं आया तो वो अपनी किताब लेकर मटु के पास आया। पर मटु को तो ज्यादा पढ़ना लिखना आता ही नहीं था क्योंकि वो ढंग से कभी स्कूल गया ही नहीं था। जब से स्कूल दाखिल हुआ था कभी कभी ही स्कूल जाता था। ज्यादा पढ़ाई उसको नहीं आती थी। वो बन्नी की मदद नहीं कर पाया। बन्नी दो चार बार किताब लेकर अपने भाई के पास कुछ पूछने के लिए आता रहा मगर हर बार की तरह कोई मदद न मिलने पर उसने अपनी मां की ओर रुख कर लिया। मटु को यह देख कर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उदास मन से वो बाहर नदी के किनारे आ बैठा। गटु भी उधर से गुजर रहा था तो उसकी नज़र वहां उदास बैठे मटु पर पड़ी।  गटु बोला, ‘इतनी रात को बाहर क्या कर रहा है! फिर कोई शरारत की क्या?’ मटु में उसे सारी बात बताई और बोला, ‘मैं भी पढना चाहता हूँ लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।’ गटु भी जानता था कि वो अपने भाई से बहुत प्यार करता है और भाई के लिये ही तो वो इतना सुधर गया है। गटु कुछ सोच कर बोला, ‘देर आए दुरुस्त आए। आ़िखरकार तुम्हारे मन में पढने का ख्याल तो आया। तुम चिंता ना करो दोस्त अगर दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ोगे तो कामयाबी ज़रूर मिलेगी। और अभी भी देर नहीं हुई है। सच्चे मन से विद्यालय जाना शुरू करो, मन लगा के पढाई करो। बाकी मैं हूँ ना, मैं भी तुम्हारी मदद करूंगा। मेहनत और लगन से तुम जल्द सबकुछ सीख जाओगे।’ मटु ने चैन की सांस ली और जल्दी से उठ खड़ा वो अपने घर की ओर भागा। उसके कमरे से कुछ आवाज़ें सुनने पर मां और पिता जी उसके कमरे में आये।  उन्होंने पुछा, ‘क्या कर रहे हो? यहां इतनी धूल क्यों है?’ उन्होंने देखा कि मटु किताबों पर लगी धूल झाड़ रहा है। ‘कुछ नहीं मां बाबा, बस किताबों की सफाई कर रहा हूं। आप सो जाइए। सुबह जल्दी उठना है।’ वो बोला। अगली सुबह वो तैयार होकर अपने भाई का इंतज़ार कर रहा था। ‘तुम इतनी सुबह उठ कर तैयार हो गये। कहां जा रहे हो?’ मां ने पूछा। मटु बोला, ‘मुझे विद्यालय जाना है मां। चल बन्नी देर हो रही है।’ उसने बन्नी को आवाज़ लगाई और मां और पिता जी को प्रणाम कर बोला, ‘आज बन्नी और मैं खुद विद्यालय चले जाएंगे और आते समय भी मैं इसे अपने साथ ले आऊंगा। आप चिंता ना करना।’ मां बाबा कुछ कह ना सके और खुशी भरी निगाहों से दोनों को विद्यालय की ओर जाते देखने लगे।

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