कामी रीता जिनके लिए एवरेस्ट पर चढ़ना बाएं हाथ का खेल
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर अपनी जिंदगी में एक बार चढ़ना, एक दो नहीं लाखों पर्वतारोहियों का सपना होता है और वे एक बार चढ़कर ही अपने जीवन को पर्वतारोहण के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने वाला सफल जीवन मानते हैं। लेकिन शेरपा कामी रीता की तो कहानी ही कुछ और है। उनके लिए दुनिया की इस सबसे ऊंची और सबसे खतरनाक चोटी पर चढ़ना मानो बायें हाथ का खेल है। गुजरी 27 मई 2025 को शेरपा कामी रीता ने एवरेस्ट पर सबसे ज्यादा चढ़ाई करने का अपना ही रिकॉर्ड दूसरी बार ध्वस्त कर दिया। वह 27 मई को 31वीं बार एवरेस्ट शिखर पर पहुंचे। शेरपा कामी रीता की यह चढ़ाई भारतीय सेना के एडवेंचर विंग के एक अभियान का हिस्सा थी, जो भारत की पहली एवरेस्ट विजय की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में आयोजित की गई थी। लेकिन जहां तक शेरपा कामी रीता की बात है तो उन्होंने पहली बार एवरेस्ट पर सन 1994 में चढ़ाई की थी। इसके बाद तो मानो उनका एवरेस्ट पर आना जाना नियमित खेल हो गया। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं। आइये उनकी इस असाधारण पर्वतारोहण की कहानी को पन्ने दर पन्ने जानते हैं।
कामी रीता का जन्म साल 1970 में नेपाल के सोलुखुंबु ज़िले के थामें नामक गांव में हुआ था। ये वही क्षेत्र है, जहां से दुनिया के सबसे महान पर्वतारोहियों में से एक तेनजिंग नॉर्गे भी आते हैं। यह गांव हिमालय की गोद में बसा हुआ है और यहां की आबादी में एक बड़ा हिस्सा शेरपा समुदाय का है। शेरपा समुदाय एक ऐसा समुदाय है, जो सदियों से पर्वतारोहण और गाइडिंग का काम करता है। कामी रीता के पिता भी गांव के दूसरे शेरपाओं की तरह एक एवरेस्ट गाइड थे। उन्होंने स्विस पर्वतारोहियों के साथ काम किया था, बचपन में जब कामी रीता ने अपने पिता को पर्वतारोही दलों के साथ जाते देखा, तो उनके मन में भी पर्वतारोहण की एक चिंगारी जली। गरीबी, संसाधनों की कमी और सीमित अवसरों के बावजूद उनके अंदर पहाड़ों से बेइंतहां मोहब्बत थी। वो पहाड़ों से बात करने के लिए मचलने लगे।
कामी रीता को अपनी पहली एवरेस्ट चढ़ाई का मौका साल 1994 में मिला, उस समय उनकी उम्र 24 साल की थी, उन्होंने बतौर पोर्टल (सामान ढोने वाला) अपने कॅरियर की शुरुआत की थी, उनकी पहली चढ़ाई बेहद रोमांचक तो थी ही, बहुत चुनौतीपूर्ण भी। मीलों ऊंचे पर्वतों पर सांस लेना, यहां आने वाले बर्फीले तूफानों से जूझना, हर कदम पर जान जोखिम में डालना। यह सब उन्हें डराने की बजाय धीरे-धीरे मजबूत करता गया। शेरपा कामी रीता कहते हैं, ‘एवरेस्ट प्रत्येक पर्वतारोही को हर बार एक नया सबक देता है। इसलिए मैं हर बार खुद को पहले से बेहतर महसूस करता हूं।’ लेकिन एवरेस्ट पर चढ़ना बायें हाथ का खेल सुनने में तो आसान है, लेकिन हकीकत में बेहद आश्चर्यजनक। इसलिए बार-बार और अब तक 21 बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर सहजता के साथ चढ़ाई करना, शेरपा कामी रीता की दृढ़ता और अनुभव का प्रतीक है। वह इतनी बार एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं कि अब तो उनका यह रोज का काम लगने लगा है। क्योंकि वो 1994 से लगातार पर्वतारोहण कर रहे हैं।
शेरपा कामी रीता कई सालों में तो एक ही मौसम में दो-दो बार दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी को फतह कर चुके हैं। शेरपा कामी रीता इतनी बार एवरेस्ट शिखर छू चुके हैं कि अब वे हवा की गति, मौसम की चाल और शरीर की सीमाओं को भांपने में माहिर हैं। वे सिर्फ खुद के लिए नहीं बल्कि पर्यटकों, क्लाइम्बर्स और पर्वतारोहण के सम्मान के लिए भी अब संसार की इस सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई करते हैं। यह उनके शारीरिक फिटनेस और स्थानीय वातावरण में रचे बसे होने का भी प्रतीक है। शेरपा होने के नाते उनका शरीर ऑक्सीजन की कमी के साथ बेहतरीन संतुलन बनाने में माहिर है। फिर भी ऐसा नहीं है कि उनके लिए एवरेस्ट पर चढ़ना कोई फूलों की सेज पर चढ़ना है। साल 2014-15 में तो वह मरते मरते ही बचे थे, जब एवरेस्ट पर हुए बड़े बड़े हिम-स्खलनों और भूकंप में वह फंस गये थे, जहां उन्होंने अपने कई प्यारे साथियों को खोया। उस डरावने मंजर के बाद शेरपा कामी रीता का भी दिल टूट गया था, वो भविष्य में और चढ़ाईयां नहीं करना चाहते थे, लेकिन फिर वो लौट, क्योंकि उनके ही मुताबिक, ‘अगर मैं एवरेस्ट के बाद वापस न आता तो उन दोस्तों की आत्मा मुझसे सवाल करती, क्या हम सिर्फ मरने के लिए एवरेस्ट गये थे?’
शेरपा कामी रीता ने कई बार सरकार से अपील की है कि पर्वतारोहण में साथ देने वाले शेरपा गाइड को पर्याप्त बीमा सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए। उनके लिए एवरेस्ट शिखर सिर्फ एक चोटी नहीं बल्कि मिशन है। कामी रीता के दो बच्चे हैं और वे खुद चाहते हैं कि उनका बेटा इस जोखिमभरे पेशे में न आए। वह कुछ और करे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा है, ‘मैं नहीं चाहता कि मेरा बेटा मेरी तरह अपनी जान जोखिम में डालकर यह कम सम्मानजनक काम करे। क्योंकि यह दुनिया के किसी भी काम से कहीं ज्यादा खौफनाक है। उनकी पत्नी जब वो हर बार एवरेस्ट फतह करने के मिशन पर निकलते हैं दिन रात प्रार्थनाओं में लगी रहती हैं, वो चाहती हैं कि शेरपा कामी रीता हर बार की तरह इस बार भी फतह करके कामयाबी के साथ लौटे।’
अपनी इस सफलता के लिए कामी रीता को अब तक नेपाल सरकार की ओर से कई सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें एक प्रबल जन सेवा भी है और नेपाल माउंटेनियरिंग एसोसिएशन ने उनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान को पुरस्कृत किया है। शेरपा कामी रीता को पर्वतारोहण में अद्भुत योगदान के लिए नेपाल का नेशनल आइकन अवार्ड भी मिला। साथ ही उन्होंने नेशनल जियोग्राफिक, बीबीसी और नेटफ्लिक्स जैसी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी अपनी कामयाबी की कहानी दर्ज करायी। कामी रीता शेरपा सिर्फ एक पर्वतारोही नहीं है। वे संघर्ष, साहस और समर्पण के प्रतीक हैं, उनकी कहानी हमें सिखाती है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, अगर आपके इरादे बुलंद हैं तो आप अपने सामने एवरेस्ट तक को भी झुका सकते हैं। कामी रीता ने यह करके दिखाया है। वो हमें यह भी बताते हैं कि सफलता का मतलब सिर्फ चोटी पर पहुंचकर फोटो खिचा लेनाभर नहीं है बल्कि दुनिया के हर इंसान को ऊपर उठाकर एवेरेस्ट तक पहुंचा देना है। शेरपा कामी रीता के लिए एवरेस्ट कोई मैदान नहीं, यह हर बार मनुष्य की क्षमता को पलटने वाली देवभूमि साबित होती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर