कज़र् में फंसा कर गरीब देशों को बर्बाद कर रहा चीन
बैंकिंग सिस्टम आने से पहले सूदखोर हुआ करते थे जो ज़रूरतमंद व्यक्ति को ऊंची दर के ब्याज पर कज़र् दिया करते थे। कज़र् के बदले ये लोग उस व्यक्ति की ज़मीन-जायजाद, गहने या अन्य कीमती सामान को गिरवी रख लिया करते थे ताकि कज़र् न चुका पाने की हालत में उनके कज़र् की वसूली की जा सके। चालाक सूदखोर किसानों को इतना ज्यादा कज़र् दे देते थे कि उनके लिए कज़र् चुकाना मुश्किल हो जाये। ऐसी हालत में वे लोग किसान के घर और ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेते थे। आज चीन जैसा बड़ा देश एक ऐसे सूदखोर व्यापारी के रूप में सामने आया है जो गरीब और कमज़ोर देशों को किसानों की तरह कज़र् के बोझ से दबा रहा है। जैसे किसान सूदखोर के चक्कर में फंसकर अपनी जमीन-जायजाद से हाथ धो बैठते थे, ऐसे ही ये देश अपने प्राकृतिक संसाधनों और संपत्ति को चीनी कब्ज़े में दे रहे हैं। इस प्रकार ये देश एक दिन चीन के गुलाम बन बन जाएंगे।
देखा जाए तो चीन उन सूदखोरों से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि वे व्यक्ति की ज़रूरत के लिए उसको कज़र् देते थे लेकिन चीन तो अपनी ज़रूरत के लिए इन देशों को कज़र् के जाल में फंसा रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) कहते हैं, के अन्तर्गत दुनिया के विभिन्न देशों को सड़क, रेल और जलमार्ग द्वारा जोड़ने की योजना बनाई थी। इसका उद्देश्य यह था कि चीनी सामान पूरी दुनिया में आसानी से निर्यात हो सके। चीन ने अपनी इसी योजना को पूरा करने के लिए गरीब देशों को फंसाया है। चीन ने पहले तो गरीब देशों को यह लालच दिया कि वह उनके यहां स्कूल, पुल, अस्पताल, हवाई अड्डा, पोर्ट, सड़क, रेलवे और दूसरे ज़रूरी आधारभूत ढांचे खड़ा करेगा जिससे उनके देश का जबरदस्त विकास होगा। दूसरा लालच यह दिया गया कि जब ये देश सीधे चीन से जुड़ जायेंगे तो इनका आयात-निर्यात सुगमता से पूरी दुनिया से हो सकेगा। यह योजना इतनी ज्यादा आकर्षक थी कि दुनिया के अमीर और गरीब देश इसकी ओर खिंचे चले आये। अमीर देश तो धीरे-धीरे इस योजना से दूर हो गये लेकिन गरीब देश एक बार इस योजना में फंसे तो फंसते चले गये। बुनियादी ढांचे के नाम पर चीन इन देशों में ऐसे निर्माण करता गया कि ये देश चीन के कज़र् जाल में फंसते चले गये। दूसरी तरफ चीन ने इन निर्माण कार्यों के सारे ठेके अपनी कंपनियों को दिये और कंपनियों ने सारा काम अपने देश के लोगों से करवाया। इसके कारण चीन की कंपनियों ने जबरदस्त मुनाफा कमाया और चीनी युवाओं को रोज़गार मिला। चीन लगभग 75 गरीब देशों को बुनियादी ढांचे के विकास के नाम पर ज्यादा ब्याज पर कज़र्र् दे चुका है और लगातार दे रहा है।
चीन किसी भी देश को आर्थिक मदद नहीं देता है, वह सिर्फ बाज़ार भाव या उससे ज्यादा की दर पर कज़र् देता है। चीन कज़र् देते समय क्या नियम और शर्तें तय करता है, यह कोई नहीं जानता। वेनेजुएला और अंगोला जैसे कई देशों ने कज़र् के बदले चीन के पास अपने प्राकृतिक संसाधनों को गिरवी रख दिया है। कहा गया था कि इन देशों के विकास से जो पैसा आयेगा उससे कज़र् चुका दिया जाएगा, लेकिन चीन इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से यह कज़र् वसूल रहा है। कई बार चीन इन देशों को सीधे कज़र्र् न देकर इन देशों के सरकारी, गैर सरकारी और संयुक्त उपक्रमों को कज़र्र् देता है और इस तरह के कज़र् को सरकारी गारंटी मिली होती है। इसके कारण चीनी कज़र् का वास्तविक रूप सामने नहीं आ पाता है। चीन उन देशों का प्राथमिकता देता है, जहां राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता होती है। चीन उन देशों को निशाना बनाता है, जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं। यही कारण है कि उसने दक्षिण अमरीकी और अफ्रीकी देशों को सबसे ज्यादा कज़र् दिया हुआ है।
चीन ने सबसे ज्यादा कज़र् लगभग 2.27 लाख करोड़ रुपये पाकिस्तान को दिया हुआ है। पाकिस्तान इस कज़र् को चुकाने में असमर्थ है इसलिए लगातार इसका पुनर्गठन किया जा रहा है। हैरानी यह है कि चीन पाकिस्तान को और कज़र् देता जा रहा है। पाकिस्तान एक तरह से चीन का उपनिवेश बनता जा रहा है। श्रीलंका भी 2022 में चीन के कज़र् का डिफॉल्ट कर चुका है जिसके कारण उसे अपना हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज़ पर चीन को देना पड़ा है। कितनी अजीब बात है कि जिस बंदरगाह को बनाने के लिए चीन से कज़र् लिया गया, अब वही बंदरगाह चीन के कब्ज़े में चली गई है। ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि चीन ने पाकिस्तान सहित कई देशों को अपने कज़र् के बोझ से दबा रखा है। चीन इस साल 2025 में इन देशों से तीन लाख करोड़ रुपये की वसूली करने वाला है। लगभग दो लाख करोड़ तो बेहद गरीब देशों से वसूल किये जाने हैं।
चीन की वसूली के कारण इन देशों का बजट गड़बड़ा गया है। इन देशों के पास अपने देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और दूसरे विकास कार्यों के लिए पैसा बचने की उम्मीद नहीं है। हालत यहां तक पहुंच गए हैं कि लगभग 40 गरीब देशों को चीन का कज़र् चुकाने के लिए अपने बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है। देखा जाए तो इस तरह चीन ने दक्षिण अमरीकी और अफ्रीकी देशों सहित एशिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी है। यह सब बीआरआई योजना के नाम पर शुरू किया था, लेकिन वह योजना भी सफल नहीं हो पाई है। रिपोर्ट में जो आंकड़े दिये गये हैं, उनके अनुसार चीन की ओर से बांटे गए 33 लाख करोड़ रुपये का कज़र् तो विश्व बैंक की नज़रों से छिपा हुआ है। 2022 में चीन ने अपने कज़र्र् का 60 प्रतिशत हिस्सा वित्तीय संकट से घिरे हुए देशों को दिया है। इससे साबित होता है कि चीन का कज़र् देने का मकसद ही इन देशों की संपत्तियों को कब्ज़े में लेना है। चीन इन देशों में अपने कज़र् के बल पर दखल दे रहा है। इन देशों की आर्थिक और राजनीतिक नीतियां तय कर रहा है।
चीन को इस कज़र् से यह भी नुकसान हो रहा है कि उसकी छवि धीरे-धीरे सूदखोर देश की बनती जा रही है। धीरे-धीरे दुनिया को समझ आ रहा है कि चीन ने गरीब देशों की मदद नहीं की है बल्कि आर्थिक मदद के नाम पर उनके प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा कर लिया है। यही कारण है कि चीनी कंपनियां इन देशों से खनिज पदार्थों को निकाल कर चीन भेज रही हैं। इन देशों को चीनी सामान से पटा जा रहा है ताकि घटिया चीनी सामान की खपत बढ़ती रहे। देखा जाये तो चीन पूरी दुनिया के गरीब देशों को बर्बाद कर रहा है। यह बात दुनिया को जितनी जल्दी समझ आ जाए, बेहतर है। (अदिति)