मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा खतरा है आतंकवाद

आतंकवाद आज पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह मानवता, शांति, सह-अस्तित्व, विकास और लोकतंत्र जैसे मूल्यों का शत्रु है। आतंकवाद एक ऐसी कट्टर सोच का परिणाम है जो सिर्फ विनाश भय और नफरत को जन्म देती है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया के सामने मिसाल पेश की है। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का भारत दशकों से शिकार रहा है। पहलगाम में  हाल ही में जो हमला हुआ, उसमें बेगुनाह पर्यटकों को केवल उनके धर्म के आधार पर मारा गया। यह क्रूरता और बर्बरता की पराकाष्ठा थी। इस हमले का मकसद भारत की एकता को तोड़ना और देश में डर फैलाना था। अब हमारी नीति है कि आतंकवादी जहां भी हों, हम उन्हें समाप्त करने से नहीं हिचकेंगे। साथ ही आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली सरकार और आतंकवाद के मास्टरमाइंड के बीच अंतर किए बिना मुंहतोड़ जवाब देंगे। अब हम आतंकवाद के खिलाफ  ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर चल रहे हैं। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2025 का ऑपरेशन सिंदूर, ये सभी कदम इस नई नीति का प्रमाण हैं। जो देश आतंकवाद को समर्थन देते हैं, उन्हें भी अब सीधा जवाब दिया जा रहा है।
नई दिल्ली में आयोजित ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट कर दिया कि भारत आतंकवाद के किसी भी स्वरूप को सहन नहीं करेगा। उन्होंने कहा,  जब तक आतंकवाद का समूल नाश नहीं हो जाता, भारत शांत नहीं बैठेगा।’
हालांकि, आतंकवादियों का सफाया और उनके शिविरों को नष्ट करना एक आवश्यक कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए उस पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करना होगा, जो इन्हें आर्थिक, वैचारिक और राजनीतिक समर्थन प्रदान करता है। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के अनुसार हाल के वर्षों में आतंकवादी घटनाओं से प्रभावित देशों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। ऐसे में समय की मांग है कि वैश्विक समुदाय सभी प्रकार के मतभेदों और राजनीतिक स्वार्थों को एक ओर रख कर आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर कार्य करे।
इस लड़ाई में पहला और सबसे बुनियादी कदम आतंकवाद की एक सर्वस्वीकृत और व्यावहारिक परिभाषा तय करना होगा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन’ के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किया है, किंतु अब तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। इस स्पष्ट परिभाषा के अभाव में आतंकवादी हमलों की जांच, कानूनी कार्रवाई और अभियुक्तों के प्रत्यर्पण जैसी प्रक्रियाएं बाधित होती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि वैश्विक समुदाय शीघ्र एक स्पष्ट परिभाषा तय करे ताकि आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई प्रभावी और न्यायपूर्ण हो सके।
दूसरा, केवल आतंकी संगठनों को निशाना बनाना पर्याप्त नहीं है। उन देशों की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करना होगा जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं। पाकिस्तान इसका स्पष्ट उदाहरण है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को यह समझना होगा कि पाकिस्तान को दिए जाने वाले ‘बेलआउट पैकेज’ और ऋण किस प्रकार सीमा पार आतंकवाद के पोषण में खर्च होते हैं। भारत ने आईएमएफ में दिए गए बयान में यह उजागर किया है कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले देश को बार-बार आर्थिक सहायता देना न केवल गलत संदेश देता है, बल्कि वैश्विक मूल्यों की अवहेलना भी करता है। जब तक पाकिस्तान अपने आतंकी नेटवर्क को पूर्णत: और ईमानदारी से समाप्त नहीं करता, तब तक उसे किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं दी जानी चाहिए। एफएटीए द्वारा उसे ग्रे लिस्ट में बनाए रखना एक तार्किक और अनिवार्य कदम है।
तीसरा,  ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात यह तथ्य और स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान में स्टेट और नान-स्टेट ऐक्टर्स की गतिविधियों में कोई विभाजन रेखा नहीं बची है। यह तथ्य तब और भी पुष्ट हो जाता है जब लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के आतंकवादियों को राज्य के अधिकारियों द्वारा सम्मान के साथ अंतिम संस्कार दिया जाता है। एक ऐसा देश, जिसके सैन्य अधिकारी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नामित आतंकियों की अंत्येष्टि में भाग लेते हों, उससे आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग की अपेक्षा करना भोलापन होगा।
चौथा, छद्म युद्ध की चुनौती भी उतनी ही खतरनाक है। कुछ देश अपने मित्र राष्ट्रों की आड़ में अपने पड़ोसी देशों में अस्थिरता फैलाते हैं और जब तक इस प्रवृत्ति को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया जाएगा, तब तक यह सिलसिला चलता रहेगा। आतंकी हमलों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया किसी विशेष स्थान या पीड़ितों की राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। जब देश अपने हितों के अनुसार यह तय करते हैं कि किस हमले की निंदा करनी है और किसे अनदेखा करना है, तब यह आतंकवाद के विरुद्ध सामूहिक प्रयासों को कमज़ोर करता है और अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को वैधता प्रदान करता है।
पांचवां, पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों के सुरक्षित ठिकानों का प्रभाव केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी, ऑगमेंटेड रियलिटी और स्वचालित प्रणालियों जैसी तकनीकों के प्रयोग ने इन संगठनों की पहुंच को वैश्विक स्तर पर विस्तृत कर दिया है। अब ये खतरे किसी एक भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं हैं। ऐसे में इनसे निपटने के लिए वैश्विक सहयोग अनिवार्य है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 9/11 हमलों के पश्चात संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि हमें आतंकवाद के लिए किसी भी वैचारिक, राजनीतिक या धार्मिक औचित्य को दृढ़ता से अस्वीकार करना होगा। भारत आतंकवाद के सभी स्वरूपों को जड़ से समाप्त करने के अपने संकल्प में दृढ़ है। हम विश्व के सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों से आह्वान करते हैं कि वे अपने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर इस संघर्ष में साथ आएं। आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, शांत और स्थिर विश्व की रचना हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।

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