अपने तीसरे कार्यकाल में और मज़बूत हुए मोदी
9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मनाने जा रही है। सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि भारत ने पिछले एक साल में कुछ महत्वपूर्ण प्रगति की है। उनके समर्थकों का तर्क है कि 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत ने वैश्विक मान्यता प्राप्त की है और अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। हालांकि, यह एक कठोर वास्तविकता है कि लोग बढ़ती कीमतों, मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी के बारे में भी गंभीर रूप से चिंतित हैं, जो ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी भी जश्न में शामिल हैं। वे भी राजग सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए रैलियां और सार्वजनिक बैठकें आयोजित कर रहे हैं। शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को इन उपलब्धियों के बारे में जनता को सूचित करने का काम सौंपा गया है।
अभियान चार प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित होगा—पहलगाम आतंकी हमले पर सेना की प्रतिक्रिया, वक्फ संशोधन अधिनियम, बी.आर. अम्बेडकर को सम्मानित करना और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का प्रस्ताव। विपक्ष इन विषयों पर सरकार को चुनौती देने की योजना बना रहा है।
संसद में मोदी ने अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है। जब उन्होंने 9 जून, 2024 को अपना तीसरा कार्यकाल शुरू किया था तो भाजपा ने 2019 के चुनाव में 303 लोक सभा सीटों से गिरकर 63 सीटें खो दीं थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाला ‘इंडिया’ ब्लॉक 234 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। इस झटके के बावजूद भाजपा ने तेलुगु देशम पार्टी और जेडी (यू) जैसे सहयोगियों के समर्थन से सरकार बनायी। मोदी अपने पिछले दो कार्यकालों के विपरीत सहयोगियों के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण रहे हैं। इसके अलावा मोदी ने न केवल राजग को एकजुट रखा है, बल्कि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर विभाजन पैदा करने का भी प्रयास किया है। उन्होंने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय आउटरीच प्रयासों में 59 सदस्यों में से दस मुस्लिम सांसदों को भी आश्चर्यजनक रूप से शामिल किया है।
सवाल यह है कि क्या विपक्षी दलों ने संसद में अपनी मजबूत स्थिति के साथ लाभ उठाया है? 24 जून, 2024 को पहले सत्र से ही भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के साथ तनाव अपरिहार्य था। मोदी सरकार के पहले दो कार्यकालों में विपक्ष कमज़ोर और निष्क्रिय था। हालांकि, 18वीं लोकसभा में एक पुनरुत्थानशील विपक्ष है, जिसने मोदी को विवादास्पद कानून पारित करने के लिए राजग सहयोगियों और तटस्थ दलों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर किया। विपक्ष ने वक्फ अधिनियम जैसे विधेयकों को कुछ समय के लिए प्रभावी रूप से रोका, जिससे सदन की कार्यवाही अक्सर बाधित होती रही।
‘इंडिया’ गठबंधन राजग की स्थिरता को लेकर संशय में था। कांग्रेस पार्टी ने पहले साल में इसके पतन की भविष्यवाणी की थी। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने भी दावा किया था कि ‘इंडिया’ ब्लॉक ने अभी तक सरकार बनाने के अपने अधिकार का दावा नहीं किया है। हालांकि, यह विपक्ष ही था जो अव्यवस्थित था जबकि नरेंद्र मोदी ने राजग को मजबूत किया।
पिछले एक साल में मोदी ने कई विवादास्पद कानून पेश करने के लिए कदम उठाये हैं। इनमें ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ नीति और वक्फ (मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्ती) विधेयक में संशोधन उल्लेखनीय हैं। हालांकि उनका ज़ोर मुख्य रूप से उनकी विदेश यात्राओं पर रहा है।
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, महुआ मोइत्रा, कनिमोड़ी, सुप्रिया सुले, गौरव गोगोई और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता मुखर रहे हैं। राहुल अपने पिछले कार्यकाल की तुलना में इस बार विपक्ष के नेता के रूप में अधिक आश्वस्त दिखते हैं।
एक पार्टी जो राजनीतिक परिदृश्य से काफी हद तक गायब है, वह है आम आदमी पार्टी। अरविंद केजरीवाल और आतिशी सहित इसके नेता असामान्य रूप से शांत रहे हैं। इस वर्ष 7 मई से 10 मई तक चार दिनों तक चले भारत-पाक सीमित संघर्ष के संदर्भ में पाकिस्तान के विरुद्ध आतंकवाद पर भारतीय स्थिति को स्पष्ट करने की ज़िम्मेदारी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को दी गयी।
एक दशक पहले भाजपा के सत्ता में आने के बाद से भारत की संघीय एजेंसियों ने 100 से अधिक राजनेताओं की जांच की है, जिनमें से अधिकांश विपक्षी दल के हैं। इनमें से कई राजनेता बाद में भाजपा में शामिल हो गये और जांच के दायरे में आए 25 विपक्षी नेताओं में से 23 के मामले वापिस ले लिए गये या रोक दिये गये, जिससे जांच की निष्पक्षता पर चिंताएं बढ़ गयी हैं।
‘इंडिया’ गठबंधन की आलोचना एक मज़बूत विकल्प प्रदान करने में विफल रहने और एक एकीकृत अखिल राष्ट्रीय नेता की कमी के लिए की गयी है। हालांकि इसमें 29 दल शामिल हैं। ये समूह विभाजित हैं और क्षेत्रीय नेता राहुल गांधी जैसे उम्मीदवारों का समर्थन करने में हिचकिचाते हैं। जो एक राष्ट्रीय गठबंधन के रूप में शुरू हुआ, वह क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों के संग्रह में विकसित हो गया है, जिनमें से प्रत्येक सहयोग के बजाय अपने हितों पर केंद्रित है। हालांकि, जब विपक्षी दल प्रमुख मुद्दों पर एकजुट हुए हैं, तो मतदाताओं ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसी पार्टी लालू यादव के नेतृत्व वाले यादव परिवार के भीतर आंतरिक पारिवारिक मुद्दों से जूझ रही है, जबकि बिहार में चुनाव नजदीक हैं। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अपने प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच टकराव के कारण उथल-पुथल का सामना कर रही है। (संवाद)