विकास का साक्षी है चिनाब का पुल

पहलगाम में बेहद दुखद घटना 22 अप्रैल को घटित हुई थी। उसके मात्र डेढ़ महीने बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से जम्मू को रेल मार्ग द्वारा कश्मीर घाटी से जोड़ने के लिए वंदे भारत रेलगाड़ी को हरी झंडी देना और इसके रास्ते में पड़ती चिनाब नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे पुल का भी उद्घाटन करना बेहद सुखद एहसास देने वाली घटना है। पिछली समकालीन सरकारों के समय ये प्रोजैक्ट शुरू हुए थे परन्तु उनके बाद नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर केन्द्र सरकार द्वारा दिखाई गई तत्परता से इसे पूर्ण किया गया है। पहलगाम की घटना के बाद भारत  द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की गई थी। दोनों देशों की यह लड़ाई सिर्फ 4 दिन ही चली थी, कि पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा यह लड़ाई बंद करने के लिए भारत के साथ सम्पर्क किया गया था, क्योंकि उसे यह एहसास हो गया था, कि वह भारत की इस कड़ी कार्रवाई का ज्यादा समय तक मुकाबला नहीं कर सकेगा।
ऐसे घटनाक्रम ने कश्मीर घाटी की ़िफज़ा ही बदल दी थी। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी माहौल को साफ करने के लिए अपनी बनती बड़ी भूमिका निभाई थी। अब रेल-लिंक के पूरे हुए प्रोजैक्ट ने पाकिस्तान को तथा विश्व को भी यह संदेश ज़रूर दे दिया है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और सरकार इसे पुन: पटरी पर लाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री ने कटरा स्टेशन से जम्मू-कश्मीर को जोड़ने वाली कटरा-श्रीनगर वंदे भारत रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाई है। इस 270 किलोमीटर के स़फर को सड़क के माध्यम से 6 से 7 घंटे का समय लगता है परन्तु इस गाड़ी द्वारा यह स़फर मात्र 3 घंटों में ही पूरा कर लिया जाएगा। उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला का यह रेल लिंक रियासी, बनिहाल, अनंतनाग और अवंतीपोरा से गुज़रता हुआ चिनाब रेल पुल तक पहुंचता है। नि:संदेह यह ट्रेन कश्मीर को एक नई पहचान देने वाली और भारत के साथ जम्मू-कश्मीर का अटूट रिश्ता मज़बूत करने वाली है। 
पहलगाम घटना के बाद भारत के निरंतर किए गए यत्नों और विश्व भर में भेजे गए अपने प्रतिनिधिमंडलों के बाद कश्मीर के संबंध में इसका पक्ष और भी स्पष्ट और मज़बूत हुआ है। दशकों से पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध की जाती गतिविधियों के बाद अब उसे यह एहसास ज़रूर हो गया प्रतीत होता है कि उसका अपने पड़ोसी देश के साथ सद्भावनापूर्ण संबंध बनाने के बिना कोई गुज़ारा नहीं है। यह भी कि उसका अपना विकास भी भारत के साथ मिल कर चलने पर ही सम्भव हो सकेगा। यदि वहां की सेना अपना रवैया नहीं बदलती तो इससे पाकिस्तान के समक्ष और भी बड़ी चुनौतियां आ खड़ी होंगी, जिनका  मुकाबला करना उसके लिए बेहद कठिन हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर के प्रत्येक पक्ष से विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता ही इस क्षेत्र में एक नया जीवन देने में समर्थ होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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