नोबेल शांति पुरस्कार : निष्पक्षता पर क्यों उठ रहे सवाल ?

10 अक्तूबर, 2025 को जैसे ही नार्वेजियन नोबेल समिति द्वारा इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार दिये जाने की घोषणा वैनेजुएला की प्रमुख विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को हुई, वैसे ही सोशल मीडिया में विरोध का तूफान उठ खड़ा हुआ। नोबेल समिति ने मचाडो को यह पुरस्कार देने की वजह यह बतायी थी कि मचाडो वैनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने, तानाशाही के शासन से शांतिपूर्ण ढंग से निपटने और संक्रमण के संघर्ष को आगे बढ़ाने में जुटी हुई है। बावजूद इसके जिस तरह उन्हें 2024 में वैनेजुएला के उच्चतम न्यायालय द्वारा 15 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया, वह उनके साथ हुई राजनीतिक ज़्यादती थी। फिर भी मचाडो ने जिस तरह देश के भीतर रहकर संघर्ष किया, वह उन्हें पुरस्कार देने के सर्वथा योग्य बनाता है।
लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा के तुरंत बाद अगर कुछ लोगों ने इस निर्णय पर सवाल उठाया, तो उनका तर्क यह था कि वास्तव में नोबेल पुरस्कार समिति द्वारा मचाडो को दिया गया शांति पुरस्कार, शांति के उद्देश्यों से मेल नहीं खाता बल्कि यह एक दक्षिणपंथी शख्सियत को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दिया गया पुरस्कार है और इसके पीछे एक खास तरह की राजनीति शामिल है। दरअसल मचाडो इसलिए भी घोषणा के साथ ही विवाद का विषय बन गईं, क्योंकि उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प की प्रशंसा करते हुए न केवल उन्हें एक विजनरी विश्व नेता बताया था बल्कि उन्हें अपने आंदोलन का सहयोगी भी करार दिया था। इसके अलावा नोबेल समिति के इस निर्णय पर इसलिए भी आलोचनाओं की बाढ़ आ गई, क्योंकि मचाडो को पुरस्कार दिया जाना, एक शर्तिया लीकेज की बात थी। दरअसल कई मंचों पर पुरस्कार की घोषणा के पहले ही दावा किया जा रहा था कि मारिया कोरिना मचाडो इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पाने जा रही हैं और यह भी चर्चा है कि इस दावे पर बहुत बड़े-बड़े ऑनलाइन दांव भी लगे थे। लब्बोलुआब यह कि समूची चयन प्रक्रिया की गोपनीयता पर जबरदस्त सवाल उठाये गये। 
विरोध की इस पृष्ठभूमि में हमें यह भी देखना होगा कि महज ये कुछ बातें ही इस त्वरित विरोध का कारण नहीं थीं बल्कि मचाडो की दक्षिणपंथी राजनीतिक वैचारिकता भी इसका बहुत बड़ा कारण थी, जिसके तहत उन्होंने अपने किसी वक्तव्य में अर्जेटीना को अपने देश वैनेजुएला पर हमला तक करने के लिए आह्वान किया था। ऐसे दावे सोशल मीडिया में खूब किये जा रहे हैं और यह बात तो तय ही है कि मचाडो न केवल इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की समर्थक हैं, बल्कि वह इज़रायल की लिक्विड पार्टी की भी घोर समर्थक हैं। माना जाता है कि नोबेल शांति पुरस्कार मूलरूप से उन प्रयासों को पुरस्कृत करने की कोशिश होती है, जो हिंसा को कम करे और संघर्षों के शांतिपूर्ण निपटारे का माहौल बनाएं। साथ ही इस सबके बीच हर तरह के युद्ध के माहौल को रोकें। लेकिन मचाडो का संघर्ष मूलत: राजनीतिक और लोकतांत्रिक संघर्ष के साथ-साथ यह एक खास विचारधारा के लिए आह्वान किया जाने वाला संघर्ष है। माना जा रहा है कि मचाडो के नागरिक अधिकार एक खास तरह की विचारधारा से प्रेरित नागरिक अधिकार हैं, जो दुनिया के लिए निष्पक्ष रूप से शांति की कामना नहीं करते। मतलब यह कि मचाडो शांति के संघर्ष में नहीं बल्कि शक्ति संघर्ष की राजनीतिक लड़ाई का हिस्सा हैं। वह केवल शांति मध्यस्थता या संघर्ष मुक्ति की भूमिका में खरी नहीं उतरतीं बल्कि अपने विरोधियों को वह कड़ाई से निपटाने की मंशा भी रखती हैं। कुल मिलाकर मचाडो को शांति के नाम पर दिया जा रहा यह पुरस्कार एक खास किस्म की राजनीति को बढ़ावा देने का काम करता है। 
विशेष रूप से मचाडो को दिया गया नोबेल शांति पुरस्कार उन लोगों को खटकता है, जो दुनिया में नोबेल शांति पुरस्कार ऐसे लोगों को देते देखना चाहते हैं, जो दुनियाभर में राजनीतिक संघर्षों को खत्म करने, परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रयासों पर ज़ोर देने आदि के लिए जाने जाते हैं जबकि मारिया कोरिना मचाडो इस सबसे अलग एक स्पष्ट राजनीतिक विचारधारा की वकालत करने वाली और अपनी शर्तों के शांति संघर्ष को ही मान्यता देती हैं। इसलिए दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को मचाडो को दिया गया पुरस्कार दक्षिणपंथी राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश लगता है, जो विशेष रूप से एकतरफा विचार वाली राजनीति या संघर्ष को मान्यता नहीं देते। सबसे बड़ी बात यह है कि मचाडो जिस तरह से अपने खुद के देश पर विदेशी हस्तेक्षप की वकालत की है या कठोर आर्थिक प्रतिबंधों की मांग की है, वह भी उनके विरोध का एक बड़ा कारण है। माना जा रहा है कि मचाडो एक खास विचारधारा से प्रेरित होकर अपने ही देशवासियों के लिए सामाजिक व आर्थिक दबाव की स्थितियां पैदा कर रही हैं, जो अपने-आप में एक खास तरह की हिंसा ही है। इसलिए बड़े पैमाने पर लोग मचाडो को नोबेल शांति पुरस्कार दिये जाने का विरोध कर रहे हैं। 
वास्तव में मारिया कोरिना मचाडो ने सार्वजनिक रूप से डोनाल्ड ट्रम्प की प्रशंसा की है और उन्हें दुनिया का विजनरी नेता कहा है जबकि डोनाल्ड ट्रम्प पर दुनिया के कई देशों और राजनेताओं को धमकी देने का आरोप लगता है। लोगों को लगता है ट्रम्प जो कि खुद अनेक विवादास्पद नीतियों और घटनाओं में संलिप्त हैं, उनकी कोई अंधभक्त कैसे निर्विवाद हो सकती है? लोगों को लगता है जो शख्स दुनिया के सबसे विवादास्पद राजनेताओं में से एक डोनाल्ट ट्रम्प को शांति का दूत करार देता हो, वह राजनीतिक रूप से निष्पक्ष कैसे हो सकता है? यही वजह है कि जैसे ही नोबेल समिति ने मचाडो को इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की कि लोग उनका विरोध करने लगे। मचाडो को पुरस्कार देने के कारण नार्वेजियन नोबेल समिति की गोपनीयता भी दांव पर लग चुकी है। जैसा कि हम सब जानते हैं नोबेल चयन प्रक्रिया बेहद गोपनीय होती है।
कुल मिलाकर मारिया कोरिना मचाडो को मिला इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार एक व्यक्ति से कहीं ज्यादा एक संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिया है। चूंकि मचाडो को मिला पुरस्कार शांति की जगह राजनीतिक संघर्ष को दिया गया पुरस्कार लगता है, इसलिए भी इसकी तीखी आलोचना हो रही है। इस तरह देखा जाए तो यह पहला ऐसा मौका है, जब खुलकर नोबेल समिति की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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