स्वदेशी उत्पादों के प्रति लोगों में विश्वास पैदा होना ज़रूरी

हमारे देश में स्वदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करने के लिये प्राय: आवाज़ बुलंद की जाती है। भारत में स्वदेशी सामान के इस्तेमाल पर ज़ोर इसलिए दिया जाता है, क्योंकि इससे देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। 
देश में स्वदेशी सामान की खपत से स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ता है, जिससे स्थानीय उद्योगों को बल मिलता है। इससे रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं और बेरोज़गारी की समस्या कम होती है। इसके अतिरिक्त विदेशी उत्पाद पर निर्भरता भी कम होती है। इसीलिए कभी सरकार की तरफ से देश को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से स्वदेशी अपनाने के बारे में देश को जागृत करने के प्रयास किये जाते हैं तो कभी स्वदेशी उत्पादों के नाम पर अपना व्यवसाय चलाने वाले भी ‘स्वदेशी अपनाओ’ की बातें करते नज़र आते हैं, परन्तु क्या वजह है कि हम तो स्वदेशी का राग ही अलापते रह जाते हैं उधर पड़ोसी देश चीन का बड़े भारतीय बाज़ार पर कब्ज़ा हो जाता है? चीन निर्मित शायद ही कोई ऐसा जीवनोपयोगी उत्पाद हो जिसकी भरपूर खपत भारत में न होती हो, परन्तु हमारे देश में स्वदेशी अपनाओ का शोर तो ज़्यादा सुनाई देता है, परन्तु उसकी गुणवत्ता सुधारने या उचित कीमत में आकर्षक, दीर्घकालिक व योग्य वस्तु का उत्पादन करने पर ज़ोर कम दिया जाता है। 
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई प्रमुख अवसरों पर आत्मनिर्भर भारत बनाने हेतु स्वदेशी अपनाने के संबंध में जनता से अपील कर चुके हैं। वह दुकानों को स्वदेशी वस्तुओं से सजाने और भारतीय उत्पादों को गर्व से उपयोग करने के लिए नागरिकों को प्रेरित करते रहते हैं। प्रधानमंत्री का मानना है कि विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब भारतीय सामान वैश्विक बाज़ार में अपनी पहचान बनाएं और। इसीलिये प्रधानमंत्री अक्सर ‘वोकल फॉर लोकल’ की बात करते सुने जाते हैं जिसमें स्थानीय बाज़ार और उत्पादों को बढ़ावा देने पर बल दिया जाता है। नि:संदेह भारत की आत्म-निर्भरता का मार्ग तभी मज़बूत होगा जब देशवासी अपने उत्पादन, तकनीक और नवाचार में स्वदेशी को प्राथमिकता दें। विदेशी वस्तुओं की जगह स्वदेशी उत्पाद को पहचान और सम्मान देना आज के दौर में राष्ट्रीय हित, सुरक्षा और आर्थिक मज़जबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है।
परन्तु सवाल यह है कि भारतवासियों के लिये स्वदेशी उत्पाद बनाने वाली कम्पनियां या उद्योग अपने आप में कितने विश्वसनीय हैं।
 क्या वजह है कि देश के लोगों को भारतीय उत्पाद  की तुलना में अनेक विदेशी उत्पाद ज़्यादा पसंद आते हैं। कई विपक्षी नेता तो यहां तक कहते हैं कि स्वदेशी अपनाने का पाठ पढ़ने वाले प्रधानमंत्री स्वयं विमान से लेकर मोबाईल फोन, पेन, चश्मा व घड़ी आदि सब कुछ विदेशी प्रयोग करते हैं। सेना सहित कई प्रमुख जगहों से कुछ स्वदेशी उत्पाद हटाये जा चुके हैं। कई बार उनके उत्पाद गुणवत्ता के मानक पर खरे नहीं उतरे। ऐसे में स्वदेशी उत्पाद की विश्वसनीयता पर सवाल तो उठेगा ही।
इसी तरह पिछले दिनों तमिलनाडु में बने कफ सिरप ने देशभर में हंगामा खड़ा कर दिया। इस सिरप के पीने से अब तक कुछ राज्यों में लगभग 26 बच्चों की मौत हो चुकी है। यह मामला भारत में स्वास्थ्य और दवा सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है। क्या इस तरह की घटना भारत की दवा सुरक्षा प्रणाली की गंभीर चूक का संकेत नहीं है?  
केवल गुणवत्ता का ही प्रश्न नहीं, बल्कि मिठाई वाला यदि आपको एक या दो हज़ार रुपये किलो मूल्य की मिठाई देता है तो वह गत्ते के डिब्बे को भी उसी रेट में तोल देता है। यानी आपको मंहगी कीमत अदा करने के बावजूद पूरा सामन नहीं मिल पाता। किसी सामग्री पर छपे अधिकतम खुदरा मूल्य को लेकर भी बड़ा गोलमाल देखा जा सकता है। कई बार तो प्रिंटेड रेट से आधे मूल्य पर भी दुकानदार सामन बेच देता है। जबकि आधे मूल्य पर बेचने पर भी दुकानदार मुनाफा कमाता है।   
हमारे देश में अभी भी किसी वस्तु के प्रयोग की तिथि समाप्त होने के बावजूद सीधे सादे व अशिक्षित लोगों को ऐसा सामान बेच दिया जाता है। कई कम गुणवत्ता वाले सामान पर किसी ब्रांडेड कम्पनी की मुहर लगा कर बाज़ार में बेच दिया जाता है। इस तरह की मानसिकता का केवल एक ही कारण है कि इस तरह के व्यापार करने वाला व्यक्ति कम समय में अधिक धन कमाना चाहता है। वह यह भी भूल जाता है कि ऐसा करके वह आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है, क्योंकि उसे इस बात का पूरा यकीन रहता है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में उसके पकड़े जाने के बावजूद उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं। लिहाज़ा देशवासियों को स्वदेशी उत्पाद अपनाने की सलाह देने वालों को चाहिये कि पहले उत्पादन करने वालों को यह सख्त निर्देश व सन्देश दिया जाये कि गुणवत्ता से कोई समझौता न हो। मिलावटी, नकली व ज़हरीले खाद्य पदार्थ बाज़ार से पूरी तरह गायब होने चाहिए। देशवासियों को ज़हरीली सामग्री बेचने वालों को कड़ा दण्डित दिया जाना चाहिए। भारतीय उत्पाद की कीमतें व नाप तौल ठीक हो। जब तक देशवासियों में स्वदेशी उत्पाद के प्रति पूरा विश्वास पैदा नहीं होता तब तक स्वदेशी का राग अलापना इसलिये मुनासिब नहीं क्योंकि इसकी हकीकत कुछ और है जबकि असली फसाना कुछ और है।

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