त्योहारों की मिठास में घुलते मिलावट के ज़हर को रोका जाए

भारत त्योहारों का देश है जहां हर पर्व खुशियों, रिश्तों और मिठास का प्रतीक माना जाता है। हर उत्सव में मिठाइयां हमारे भावनात्मक जुड़ाव का हिस्सा बन जाती हैं। कोई रिश्ता बिना मिठाई के अधूरा लगता है, क्योंकि यही मिठाई हमारी संस्कृति की पहचान है, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि आज यही मिठाई धीरे-धीरे ज़हर में बदलती जा रही है। हर त्योहारी सीजन में मिलावटी मिठाइयों और नकली मावे का कारोबार चरम पर पहुंच जाता है, जिससे न केवल त्योहारों की पवित्रता प्रभावित होती है बल्कि आम लोगों का स्वास्थ्य भी गंभीर खतरे में पड़ जाता है।
त्योहारों के समय मिठाइयों की मांग अचानक कई गुना बढ़ जाती है। इस बढ़ती मांग के बीच कुछ व्यापारी लालच के चलते शुद्धता की जगह सस्ते और हानिकारक विकल्पों का सहारा ले लेते हैं। असली दूध या मावे की जगह सिंथेटिक मावा बनाया जाता है, जिसमें यूरिया, डिटर्जेंट, तेल और स्टार्च जैसी चीज़ें मिलाई जाती हैं। यह दिखने में भले ही मिठाई असली लगे, पर शरीर के लिए ज़हर साबित होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे पदार्थ लिवर, किडनी और दिल पर सीधा असर डालते हैं और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। त्योहारों से पहले देश के अलग-अलग राज्यों में खाद्य विभाग और पुलिस द्वारा भारी मात्रा में नकली मावा और दूध की खेप पकड़ी जाती हैं। हर वर्ष उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भारी मात्रा में नकली मावा और सिंथेटिक दूध ज़ब्त किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली-एनसीआर, आगरा, मथुरा, कानपुर, झांसी, ग्वालियर और भोपाल में लाखों लीटर मिलावटी दूध और सैकड़ों किलो नकली मावा पकड़ा गया। कई बार ये खेपें राज्यों की सीमाओं के पार से ट्रक भरकर लाई जाती हैं, ताकि त्योहारों के समय बढ़ी हुई मांग को पूरा किया जा सके। जांच में पाया गया है कि इन नकली उत्पादों में खतरनाक तत्व मिलाए जाते हैं।
आज मिठाइयों की चमक जितनी बढ़ी है, उतनी ही उसमें खतरे की परतें भी चढ़ी हैं। बाज़ार में बिकने वाली चमकीली बर्फी और रंगीन मिठाइयां आकर्षक ज़रूर लगती हैं, लेकिन अक्सर इनमें कृत्रिम रंगों और रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ये रंग खाद्य उपयोग के लिए प्रमाणित नहीं होते। इन्हें वस्त्र या पेंट उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है, परन्तु सस्ते दाम में आसानी से मिलने के कारण कई व्यापारी इन्हें मिठाइयों में मिला देते हैं। ये रंग गंभीर बीमारियां उत्पन्न कर सकते हैं। भारतीय मिठाइयों की पहचान कही जाने वाली चांदी का वर्क भी अब शुद्धता की गारंटी नहीं रह गया है। परम्परागत रूप से यह वर्क असली चांदी से बनाया जाता था, जो शरीर के लिए हानिकारक नहीं है, परन्तु अब कई जगहों पर एल्यूमिनियम से बने नकली वर्क का उपयोग हो रहा है, जो सस्ता होता है लेकिन स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है। 
हर साल त्योहारों से पहले प्रशासन और खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा जांच अभियान चलाए जाते हैं, परन्तु सच्चाई यह है कि ये कार्रवाइयांअक्सर सीमित और दिखावटी रह जाती हैं। कई बार पकड़े  गए व्यापारी मामूली जुर्माना भरकर फिर वही कारोबार शुरू कर देते हैं। स्थायी सुधार तब तक संभव नहीं जब तक खाद्य सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू न किया जाए और दोषियों को कठोर दंड न मिले। कई चिकित्सकों के अनुसार त्योहारों के बाद अस्पतालों में पेट दर्द, उल्टी, फूड पॉइजनिंग और एलर्जी के मामलों में कई गुना वृद्धि दर्ज होती है।
मिठाई खरीदते समय सबसे पहले उसकी सुगंध, रंग और बनावट पर ध्यान देना चाहिए। बहुत अधिक चमकीला रंग या अजीब गंध संकेत है कि उसमें रासायनिक मिलावट हो सकती है। याद रखिए, असली त्योहार वही है जिसमें स्वाद से पहले शुद्धता हो। व्यापारी वर्ग को यह समझना चाहिए कि लाभ कमाने का अर्थ जनता के स्वास्थ्य से समझौता करना नहीं है। एक सच्चा व्यापारी वही है जो ग्राहक का विश्वास जीत कर लम्बी अवधि तक टिकता है। व्यापार में ईमानदारी और गुणवत्ता ही सफलता की असली पूंजी है। 
ग्रामीण और शहरी इलाकों में जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को बताया जाए कि असली और नकली मावे में अंतर कैसे पहचाना जाए। त्योहारों की असली आत्मा सिर्फ सजावट, रोशनी या स्वाद में नहीं, बल्कि उसमें निहित भावना में होती है। 
-मो. 70271-20349

#त्योहारों की मिठास में घुलते मिलावट के ज़हर को रोका जाए