अ़फगानिस्तान के साथ बेहतर होते संबंध

अ़फगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी भारत के 6 दिवसीय दौरे पर हैं। वह अ़फगानिस्तान में तालिबान की सरकार के विशेष प्रतिनिधि हैं। चाहे दूसरी बार बनी तालिबान सरकार ने अगस्त 2021 में पुन: सत्ता सम्भाली थी परन्तु अभी तक इस सरकार को भारत सहित विश्व के ज्यादातर देशों ने मान्यता नहीं दी। भारत का अ़फगानिस्तान के साथ सदियों पुराना रिश्ता है। दोनों देशों में समय-समय पर बड़े बदलाव आते गए। अ़फगानिस्तान में अनेक सरकारें बदलीं। भारत ने इतिहास के एक लम्बे स़फर के दौरान अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। देश के विभाजन से पहले अ़फगानिस्तान भारत का पड़ोसी देश था। सैकड़ों वर्ष तक इसकी सीमाएं लांघ कर केन्द्रीय एशिया, ईरान और अ़फगानिस्तान से हमलावर भारत पर हमले करते रहे हैं। उन्होंने देश को जमकर लूटा।
पाकिस्तान बनने से भारत और अ़फगानिस्तान दूर-दूर हो गए। इस तरह सीमाओं के पक्ष से यह पाकिस्तान का पड़ोसी देश बन गया। सदियों से इसके साथ होता व्यापार पाकिस्तान बनने के बाद इस देश द्वारा होने लगा। अ़फगानिस्तान भाग्यहीन देश है। राजाशाही के बाद 1979 में सोवियत यूनियन ने यहां हस्तक्षेप करके अपने समर्थकों की सरकार बनवा दी। दशकों तक यह देश घरेलू युद्ध में उलझा रहा। अमरीका और पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान में तालिबान ब़ािगयों को हथियारों का प्रशिक्षण देकर वहां लगातार भेजा और एक लम्बे संघर्ष के बाद वहां पर तालिबानों का कब्ज़ा करवा दिया। 
वहां तालिबान की सरकार वर्ष 1996 से 2001 तक रही। उस समय यह देश पाकिस्तान का मित्र और भागीदार था। दिसम्बर, 1999 में एक बड़ी घटना यह घटित हुई कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों ने भारतीय विमान का अपहरण करके अ़फगानिस्तान ले गए। अ़फगान सरकार ने उस समय समझौता करवाकर भारतीय जेल में बंद जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर और अन्य कई आतंकवादियों को जेल से रिहा करवाकर पाकिस्तान को सौंप दिया। 2001 में अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर पर अल-कायदा संगठन के प्रमुख ओसामा बिन लादेन द्वारा हमला करवाने के बाद अमरीका और पश्चिमी देशों की कुलीशन ने अ़फगानिस्तान में दाखिल होकर तालिबान सरकार का तख्ता पलट दिया था, क्योंकि वहां ओसामा बिन लादेन अ़फगानिस्तान से अल-कायदा को चला रहा था। लम्बे संघर्ष के बाद 2021 में तालिबान ने अ़फगानिस्तान पर पुन: कब्ज़ा कर लिया। 4 वर्ष पहले तालिबान की बनी दूसरी सरकार के समय भी अ़फगानिस्तान पाकिस्तान का भागीदार बना रहा, परन्तु सीमांत मामले पर अविभाजित भारत के साथ अ़फगानिस्तान के तीव्र मतभेद रहे। विभाजन के बाद यह मामला पाकिस्तान के हिस्से आ गया। अ़फगानिस्तान की मौजूदा तालिबान सरकार के प्रति पाकिस्तान को लगातार यह शिकायत है कि उसके विरुद्ध जिहाद कर रहे पाकिस्तानी तालिबानों का संगठन ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’, पाकिस्तान के विरुद्ध अपनी ज्यादातर गतिविधियों को अ़फगानिस्तान से अंजाम दे रही है और अ़फगानी तालिबान सरकार पाकिस्तानी तालिबान की सहायता करती है। इसी कारण इन दोनों देशों की सीमाओं पर सेना में आपसी गोलीबारी होती आ रही है। पाकिस्तान ने अ़फगानिस्तान के भीतर जाकर पाकिस्तानी तालिबानों पर कई बार बमबारी भी की है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में और भी कड़वाहट आई है।
 दूसरी तरफ  भारत के साथ पाकिस्तान के चलते आ रहे खराब संबंधों के कारण पाकिस्तान भारत और अ़फगानिस्तान के व्यापार में लगातार अवरोध खड़ा करता रहा है, क्योंकि यह व्यापार पाकिस्तान द्वारा होता रहा है। इस कारण समुद्र के रास्ते अ़फगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान की सहमति से चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करने की तैयारी की गई। यह बंदरगाह अ़फगानिस्तान की सीमा के बहुत निकट है। अ़फगानिस्तान के लिए चाहे इस समुद्र वाला रास्ता दूर का है परन्तु अ़फगानिस्तान भारत के साथ लगातार व्यापार को प्राथमिकता देने के लिए इसके इस्तेमाल को ज्यादा उपयुक्त समझता रहा है। वर्ष 2021 में अ़फगानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद भारत ने अ़फगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया था परन्तु अब इसे पुन: बहाल करने की सम्भावना बन गई है। अ़फगान के विदेश मंत्री की इस 6 दिवसीय यात्रा में दोनों देशों के नज़दीक आने की कवायद शुरू हो गई। अ़फगानिस्तान के विदेश मंत्री ने दिल्ली आकर बार-बार यह कहा है कि उनकी सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध चाहती है और आपसी व्यापार को और बढ़ावा देना चाहती है। उसने यह भी कहा कि पिछले 4 वर्षों में भारत ने उसके देश में आई प्राकृतिक आपदाओं के समय हमेशा सहायता का हाथ बढ़ाया और यह भी विश्वास दिलाया है कि वह पहले की भांति अ़फगानिस्तान के मूलभूत ढांचे के निर्माण में प्रत्येक पक्ष से मददगार सिद्ध होगा। मुत्तकी ने स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा है कि उनकी सरकार अ़फगान की धरती को किसी अन्य देश के विरुद्ध इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देगी और आतंकवादियों पर शिकंजा कसने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करेगी। इससे पहले उसने यह भी कहा था कि पाकिस्तान ने गलत ढंग से कश्मीर के एक भाग पर कब्ज़ा किया हुआ है। तालिबान की इस सरकार ने पहलगाम में अप्रैल के महीने में पाकिस्तानी प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा जो मानवीय हनन किया गया था, उसकी भी कड़ी आलोचना की थी।
 मुत्तकी की भारत यात्रा के संबंध में पाकिस्तानी राजनीतिज्ञों द्वारा दिए गए बयानों में उनकी बौखलाहट स्पष्ट रूप से झलकती है। अब अ़फगान सरकार विश्व के साथ अपना रिश्ता बनाना चाहती है, उसी क्रम में अ़फगानी विदेश मंत्री की भारत यात्रा को देखा जा सकता है। रूस ने भी अ़फगानिस्तान की सरकार को मान्यता दे दी है। भारत बहुत सुचेत रूप में इस ओर कदम बढ़ा रहा है। यह सक्रियता दोनों देशों के संबंध के लिए एक अहम घटनाक्रम सिद्ध हो सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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