डायरिया में जीवन रक्षक है ओ.आर.एस घोल

डब्ल्यूएचओ के आंकड़े के मुताबिक हर साल पांच लाख से अधिक बच्चों की मौत डायरिया से होती है। बच्चों को पतले दस्त होने पर ओआरएस का घोल पिलाया जाए तो यह जीवन रक्षक का काम करता है। ओआरएस के घोल से शरीर खासकर बच्चों को इलेक्ट्राल, ग्लूकोज और पानी की समुचित मात्रा मिलती है  ओआरएस के घोल से डायरिया से  होने वाली मौत से बचा जा सकता है। डायरिया होने पर शरीर में खनिज, नमक की मात्रा कम हो जाती है। इसकी भरपाई के लिए सामान्यत: नमक पानी का घोल उचित मात्रा में पिलाया  जाता है। डायरिया में पहली दवा के -प में ओआरएस के घोल को ही देना चाहिए।
डायरिया के प्रमुख लक्षण 
जल्दी -जल्दी दस्त होना, पेट में तेज दर्द होना, पेट में मरोड़ पड़ना, उल्टी आना, बुखार होना, प्यास ज्यादा लगना, जीभ सुखकर मोटी हो जाना, धड़कन बढ़ जाना।   देरी खतरनाक हो सकती है  डायरिया की चपेट में आने वाले बच्चों को बिना चिकित्सक की सलाह के भी इस घोल को दिया जा सकता है। इससे बच्चों के शरीर में पानी की कमी नहीं होती। साथ ही बच्चों की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ने से भी बचा जा सकता है अन्यथा ओआरएस का घोल देरी से पिलाने पर बच्चे की जान को खतरा हो सकता है। यही कारण है कि बच्चों को पतले  दस्त होने पर ओआरएस जिसे संजीवनी कहा जाता है उसे देने को कहा जाता है। 
मात्रा :  कभी कभी बच्चे को दिन में 3- 4 बार या इससे ज्यादा दस्त होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में सावधानी के तौर पर बच्चे को तुरंत घोल  देना शुरू कर देना चाहिए। अगर बच्चे 6 महीने से कम उम्र के हैं तब 10 मिलीग्राम और 6महीने से ज्यादा के हैं तब 20 मिलीग्राम देने में कोई नुकसान नहीं है। बच्चे को यह घोल करीब 10 से 15 दिनों तक दिया  जा सकता है। इस तरह 2 साल से छोटे बच्चों को दस्त होने पर कम से कम 75 से 125 मिलीग्राम घोल  देना चाहिए।  बच्चा 2 साल से बड़ा है तो उसे 125 से 250 मिलीग्राम  घोल रोज देना चाहिए। बच्चों के दस्त को माता-पिता हल्के में न लें। ऐसा होने पर बच्चे को तुरंत ओआरएस का घोल पिलाएं और डाक्टर की सलाह से दवा दें अन्यथा विलम्ब करने से  बच्चे की किडनी खराब हो सकती है और ज्यादा लापरवाही से जान भी जा सकती है। (स्वास्थ्य दर्पण)

-नरेंद्र देवांगन