अंतर्राष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस पर विशेष कौन समझेगा गुमशुदा बच्चें का दर्द ?

बच्चे हर घर की रौनक होते हैं। चाहे वह बड़े हों या छोटे हों। घर को महका कर रखते हैं पल-पल। इन्हीं से ही घर, घर जैसा लगता है। लेकिन जब इन्हीं बच्चों पर डर, गुमशुदगी और मौत का साया मंडराने लगता है तो इन नन्हें बच्चों की जान पर बन आती है।हर साल 25 मई को दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस’ मनाया जाता है। इसको सबसे पहले अमरीका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 25 मई, 1983 को शुरू किया था। बाद में यह विश्व गुमशुदा बाल दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। देखा गया है कि हर आठ मिनट में एक बच्चा गुम होता है। सर्वे के अनुसार पूरे देश में एक वर्ष में लगभग एक लाख बच्चे गुम होते हैं। देश भर में होने वाले विभिन्न तरह के अपराधों के आंकड़े मुहैया कराने वाली सरकारी संस्था राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो का कहना है कि इनमें से 30,000 से ज्यादा बच्चे वापिस नहीं मिलते। यदि हम पूरे विश्व की बात करें तो दुनिया भर में हर साल अनुमानित 80 लाख बच्चे लापता होते हैं। गुमशुदा बच्चों की ज़िंदगी बहुत ही दयनीय होती है, जिसे सोच कर भी डर लगता है। खेलने-कूदने की उम्र में इन बच्चों को ऐसे दलदल में धकेल दिया जाता है जहां इन मासूमों का बचपन नष्ट हो जाता है। उन मां-बाप पर क्या बीतती होगी जिनके बच्चे गुम हो जाते हैं या उनका अपहरण कर लिया जाता है या किसी ऐसी घटना का शिकार हो जाते हैं, जो कभी उन्होंने सोची भी न हो। फूलों की तरह पाले जाते इन बच्चों को अनेक यातनाएं दी जाती हैं। अगर सौ में से एक बच्चा वापिस किसी भी तरह घर आ भी जाता है इस नरक से तो वह सारी उम्र अपने ऊपर हुए अत्याचार को नहीं भूल पाता। काश! वह दरिन्दे इन मासूमों का दर्द समझ सकते। उनका हाथ पकड़ कर अच्छी राह पर ले जा पाते। गुम हुआ बच्चा भी किसी का खून होता है, लाडला होता है। हमें इन्सानियत के नाते उनकी सहायता करनी चाहिए न कि उनका शोषण। तभी आगे आने वाला भविष्य अच्छा होगा। बच्चे समाज और देश का भविष्य होते हैं, इसलिए हम सब की ज़िम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को सुरक्षित रखें।