बुजुर्गों का सम्मान करें

आज हमारे देश में वृद्धों पर दिन व दिन बहुत अत्याचार बढ़ रहे हैं। उनके हितों की रक्षा करने के लिए नये कानून बने हैं। कानून के अनुसार मां-बाप की देखभाल करना बेटों का कर्त्तव्य है और बेटा न होने पर यह कर्त्तव्य बेटी और दामाद को निभाना होगा। ऐसा न करने पर वे अपराधी माने जायेंगे। आज वृद्ध-आश्रमों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसमें वैसे बुजुर्गों की कमी नहीं जिन्हें अपने श्रवण बेटों की बदौलत घर छोड़ना पड़ा अथवा घर से निकाल दिया गया। बुढ़ापा पैंशन लेने वालों की हालत तो और भी बुरी है।
कई लोग यह भी कहते हैं कि अपने पास पैसा हो तो सारे लोग आपकी तारीफ करेंगे। आप की ओर आयेंगे। जैसे भरी हो थैली तो औलाद भी अपनी। दुनिया भर में पारम्परिक परिवारों के टूटने के कारण वृद्धों के लिए पैदा होने वाली समस्याओं पर प्राथमिकता से विचार करने के लिए कहा गया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले समय में विश्व की कुल आबादी लगभग 650 करोड़ हो जायेगी जिसमें 60 साल या उससे अधिक आयु के वृद्धों की संख्या दस प्रतिशत हो जायेगी। इनमें से 80 प्रतिशत वृद्ध विकासशील देशों में होेंगे। जैसे पहले यह बताया गया है कि वृद्धाश्रमों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण बेटों का विदेशों में बस जाना है। यह मानना पड़ेगा कि औद्योगीकरण और शहरीकरण ने हमारे जीवन मूल्यों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। संबंधों का आधार भावना की जगह भौतिकता बनता जा रहा है। इससे जहां अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा हो रही हैं वहीं बूढ़ों की देखभाल की समस्या भी उभर रही है।  अपनी ज़िन्दगी में कामयाब रहे बुजुर्गों को युवा पीढ़ी फूहड़ ही समझती है।
 इसमें संदेह नहीं कि वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है। यहां तक कि नौकरी का चलन भी बदल गया है। इन बुजुर्गों को सम्मान और स्नेह से नया जीवन मिल सकता है। अपने बेटों के इंतज़ार से चौखट की ओर देखती आंखें पथराने से बच सकती हैं क्योंकि वृद्धों को आगे ज़िन्दगी की कोई आस ही नहीं रह गई। सचमुच आज वह ऐसी रात का हिस्सा बन गये हैं जिसका सवेरा दिखाई ही नहीं देता।