कश्मीरी अलगाववादियों के बेनकाब होते चेहरे

कश्मीर घाटी में अलगाव और आतंक को उकसाने वाले अलगाववादियों के चेहरे अब बेनकाब हो रहे हैं। घाटी की गरीब जनता के बच्चों को सेना पर पत्थरबाजी के लिए यही भड़काते थे। जबकि इन अलगाववादी नेताओं के अपने बच्चे न केवल देश व विदेश के नामी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी करके सुख व सुकून की जिंदगी जी रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने वाले विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान इन नेताओं के पाखंड को देश के सामने तथ्यों व नामों सहित उजागर किया। इन नेताओं में आसिया अंद्राबी से लेकर मीरवाइज उमर फारुक तक 112 अलगाववादी नेता शामिल हैं। इनके 210 बच्चे विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वहीं के स्थाई निवासी हो गए। गृह मंत्रालय द्वारा तैयार की गई इस सूची में कहा गया है कि पिछले 70 साल से कश्मीर की स्वायत्तता व स्वतंत्रता के नाम पर घाटी में अलगाव की राजनीति करने वाले हुर्रियत समेत अन्य अलगाववादी संगठनों का कश्मीर के भविष्य से कोई लेना-देना नहीं है, उनका वास्ता केवल अपने बच्चों के भविष्य से है। जबकि यही नेता गरीब कश्मीरी युवाओं के हाथों में किताब और कलम की जगह बंदूक और पत्थर थमाने का काम अर्से से करते चले आ रहे हैं। अब तक यह सुरक्षा केंद्र के परामर्श से राज्य सरकार अस्थाई तौर पर मुहैया करा रही थी। इन नेताओं में ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक, जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शब्बीर शाह, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट हाशिम कुरैशी, पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट के अध्यक्ष बिलाल लोन, और मुस्लिम कांफ्रैंस के अध्यक्ष अब्दुल गनी बट शामिल हैं। उमर फारूक ने 29 जनवरी को पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से वार्ता की थी। जिस पर विवाद हुआ था। शब्बीर शाह कश्मीर में आत्मनिर्णय के अधिकार की बात करते हैं। जबकि कश्मीर से चार लाख से भी ज्यादा पंडित, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य अल्पसंख्यकों को तीस साल पहले विस्थापित कर दिया गया है। यदि शाह में थोड़ी भी राष्ट्रभक्ति होती तो वे यहां बहुलतावादी चरित्र की बहाली के लिए इन विस्थापितों के पुनर्वास की बात करते ? हाशिम कुरैशी 1971 में इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहर्ताओं में शामिल था। बिलाल लोन पीपुल्स कांफ्रैंस के एक अलगाववादी धड़े का नेता है। फारसी का प्राध्यापक रहा अब्दुल गनी बट हुर्रियत का हिस्सा है। इसने कश्मीरी पंडितों के घर जलाने और उन्हें घाटी से बाहर खदेड़ने में अहम् भूमिका निभाई थी। इस कारण इसे 1986 में सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। इन लोगों पर पाकिस्तान से पैसा लेने व आईएसआई के लिए जासूसी करने का भी आरोप है। गृह मंत्रालय को यह जानकारी मनमोहन सिंह सरकार के समय दी थी, लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। विडंबना देखिए जो देश-विरोधी गतिविधियों में तीन दशक से लिप्त थे, उन्हें राज्य एवं केंद्र सरकार की तरफ  से सुरक्षा-कवच मिला हुआ है। यही नहीं, इन्हें सुरक्षित स्थलों पर ठहराने, देश-विदेश की यात्राएं कराने और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पिछले 5 साल में ही 560 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। मसलन सालाना करीब 112 करोड़ रुपए इन अलगाववादियों का पृथक्तावादी चरित्र बनाए रखने पर खर्च हुए हैं। इनकी सुरक्षा में निजी अंगरक्षकों के रूप में लगभग 500 और इनके आवासों पर सुरक्षा हेतु 1000 जवान तैनात थे। पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य के 22 ज़िलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा दी गई थी। जबकि ये पाकिस्तान का पृथक्तावादी एजेंडा आगे बढ़ा रहे थे। इनके स्वर बद्जुबान तो हैं ही, पाकिस्तान परस्त भी रहे हैं। कश्मीर के सबसे उम्रदराज अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी कहते हैं, ‘यहां केवल इस्लाम चलेगा। इस्लाम की वजह से हम पाकिस्तान के हैं और पाक हमारा है।’ अलगाववादी महिला नेत्री आसिया अंद्राबी पाक का कश्मीर में दखल कानूनी हक मानती हैं। अब इनके कश्मीरी प्रेम की हकीकत जान लेते हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी सूची के अनुसार तहरीक-ए-हुर्रियत के अध्यक्ष अशरफ  सेहराई के दो बेटे खालिद और आविद सऊदी अरब में काम करते हुए वहीं के नागरिक बन गए हैं। जमात-ए-इस्लामी के सदर गुलाम मोहम्मद बट्ट का बेटा सऊदी अरब में डॉक्टर है। दुख्तरान-ए-मिल्लत की आसिया अंद्राबी के दो बेटे मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ते हैं। सैयद अली शाह गिलानी के बेटे नईम ने पाकिस्तान से एमबीएस किया और अब रावलपिंडी में डॉक्टर है। गिलानी की बेटी अरब में शिक्षक और दमाद इंजीनियर है। हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारुक की बहन राबिया अमरीका में डॉक्टर है। विलाल लोन के बेटी-दामाद लंदन में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। अलगाववादी मोहम्मद शफी रेशी का बेटा अमरीका में पीएचडी कर रहा है। इसी तरह तमाम अलगाववादियों की संतानें विकसित देशों में रहकर अपना जीवन संवारने में लगी हैं। अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दलों को एक सुर में धारा-370 को खत्म करने की वकालत संसद में करनी चाहिए। इस धारा के चलते ही कश्मीरी जनता में अलगाववाद पला-पोशा है ? इसकी छाया में अवाम यह मानने लगी है कि यही वह धारा है, जिसके चलते कश्मीरियों को विशिष्ट अधिकार मिले हैं। नतीजतन वे भारत से अलग हैं। गोया वह कश्मीरियत की बात तो करते हैं, लेकिन उसे भारतीयता से भिन्न मानते हैं। इस मानसिकता को उकसाने का काम अलगाववादी बीते 30 साल से कर रहे हैं। 

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