कुदरत से छेड़छाड़ के कारण मानसून के बदलते तेवर

जब हम मानसून के बदल रहे तेवर से पूरी तरह वाकिफ हैं। इस विषय बारे ज़रूर सोचना चाहिए क्योंकि यह भी हमारे लिए आने वाले समय में एक गम्भीर समस्या बन सकती है। एक मिथ्या यह भी है कि ग्लोबल वार्मिंग, संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से उपजे प्रदूषण व बांध परियोजनाओं ने मानसून के तेवर पूरी तरह बदल दिये हैं। 
आधुनिक सभ्यता की जीवन शैली से पूर्व भूकम्प, सुनामी या मानसून का कम या ज्यादा होना नहीं था? क्या मानसून चौमासे की बजाये सर्दी में आने लगा है? हमें प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के कारगर उपाय तलाशने चाहिएं। बांधों व बिजली परियोजनाओं को अधिक  से अधिक बढ़ावा देना राष्ट्रीय समृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। बरसात के पानी का सदुपयोग करने के लिए बांध और नदी जोड़ योजना को कार्यरूप दिया जाये। कुदरत से छेड़छाड़ के चलते मानसून के तेवर बदल रहे हैं। 
मानसून अब बे-मौसम आकर परेशानी का सबब बन रहा है। आदमी जब तक कुदरत से खिलवाड़ जारी रखेगा, उसका खमियाज़ा उसे भुगतना पड़ेगा। हम अपनी आदत नहीं बदलना चाहते। अवैध निर्माण, पेड़ों की कटाई और न जाने हम कितना प्रदूषण नित्य फैला रहे हैं। कुछ दिन बाद हमारे खेत-खलिहान भी पत्थरों से भरे होंगे। पर्वतीय इलाकों में तो बड़ी परियोजनाओं एवं विकास के मॉडल ने पर्यावरण को विध्वंस कर दिया है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय इलाकों में तो इन बड़ी परियोजनाओं के अंतर्गत पहाड़ों को भी खोखला कर दिया गया है।
आज ग्लोबल वार्मिंग को लेकर एक बड़े आंदोलन की आवश्यकता महसूस होने लगी है। भूस्खलन के बाद बादल का फटना, बाढ़ के आने जैसी घटनाओं में प्रति वर्ष हो रही बढ़ौतरी ने मानव को बतला दिया है कि सम्भल जाओ अन्यथा आगे का समय सही नहीं है। स्कूलों-कालेजों में हर वर्ष पौधारोपण की बात तो कही जाती है। शपथ समारोह भी होते हैं। सैमीनारों का आयोजन भी किया जाता है। लेकिन ये सब आयोजन तब तक अधूरे हैं जब तक हम अपनी विचारधारा में कुछ न कुछ परिवर्तन नहीं करते। सरकार को ऐसी नीति बनानी होगी ताकि आम व्यक्ति सरकार का सहयोगी साबित हो सके।
मानसून के बदलते तेवर का एक और भी कारण है कि धरती पर गर्मी बढ़ रही है जिससे तपिश धरती से सहन नहीं हो रही। पेड़ काटे जा रहे हैं। जंगल काटे जा रहे हैं। नये वृक्ष लग नहीं रहे तथा पहाड़ों पर प्रदूषण की मार बढ़ रही है। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ रहा है। नई परियोजनाओं के कारण बहुत-सी योजनाएं बन रही हैं। इसी कारण नई सड़कें, पहाड़ काट कर बनेंगी और इसके लिए कुदरती चीज़ों को इधर से उधर करना होगा। आगे बढ़ना है तो विकास भी ज़रूरी है। लेकिन कुछ ऐसा किया जाये कि कुदरत से छेड़छाड़ भी न हो और देश का विकास भी न रुके।