कुदरत ने बनाये हैं दुनिया के दुर्लभतम  ‘गोल्डन ब्लड’ लोग

 

ये लाखों में नहीं, करोड़ों में नहीं बल्कि कई-कई करोड़ाें में से एक हैं। क्योंकि करीब 823 करोड़ की वैश्विक आबादी में ये महज 45 लोग हैं। जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा सवा आठ अरब की विश्व आबादी में महज 45 लोग। इन्हें ‘गोल्डन ब्लड’ ग्रुप वाले खास लोगों के रूप में जाना जाता है। क्योंकि इनका ब्लड ग्रुप न तो ए प्लस होता है, न ए माइनस होता है, न बी प्लस, न बी माइनस, न ओ प्लस न ओ माइनस और न ही एबी प्लस या एबी माइनस होता है। इनके शरीर में जिस समूह का रक्त दौड़ रहा होता है, उसे गोल्डन ब्लड ग्रुप कहते हैं। दुनिया में ओ पॉजिटिव ब्लड गु्रप वालों की तादाद दुनिया की समूची आबादी के करीब 42 प्रतिशत होती है। दूसरे नंबर में ए प्लस ब्लड ग्रुप वाले लोगों की आबादी दुनिया में करीब 31 ग्रुप है। इसी तरह बी प्लस ब्लड ग्रुप वाले लोग करीब 15 प्रतिशत है, जबकि दुनिया में सबसे कम एबी माइनस रक्त समूह वाले लोगों की तादाद दुनिया की कुल आबादी के महज 0.05 प्रतिशत है। लेकिन इनसे भी बहुत, बहुत, बहुत कम लोग गोल्डन ब्लड ग्रुप वाले हैं। 
सवाल उठता है गोल्डन ब्लड ग्रुप आखिर है क्या? यह तो हम जान गये कि यह एक दुर्लभतम ब्लड ग्रुप है। जिस कारण इस रक्त समूह के पूरी दुनिया में महज 45 लोग हैं, मगर सवाल है इनकी खासियत क्या है? इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनका ब्लड किसी भी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति को चढ़ाया जा सकता है, जबकि बाकी रक्त समूह के साथ यह सुविधा नहीं है। इस रक्त समूह के लोग दुर्लभतम इसलिए भी है, क्योंकि अगर इस समूह के किसी व्यक्ति को रक्त की जरूरत पड़ जाए तो दुनिया में सिर्फ 9 लोग ही ऐसे हैं जो ऐसे जरूरतमंद व्यक्ति को ब्लड डोनेट कर सकते हैं यानी इन 45 लोगों में से भी 36 लोग इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपने ही किसी रक्त समूह वाले व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर रक्तदान कर सकें। अब चूंकि इस ब्लड ग्रुप के किसी व्यक्ति के खून की एक बूंद की कीमत कई-कई सौ ग्राम सोने से भी ज्यादा है, इस वजह से ही इसे गोल्डन ब्लड ग्रुप कहते हैं। यह खून सिर्फ उसी शख्स के शरीर में पाया जाता है, जिसका आरएच फैक्टर ‘नल्ल यानी कुछ भी नहीं’ हो। 
दरअसल हमारे शरीर का खून लाल रक्त कोशिकाओं सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स से मिलकर बनता है। ब्लड ग्रुप क्या है, ये दो चीजों से तय होता है एक तो एंटीबॉडी यानी व्हाइट ब्लड सेल में मौजूद प्रोटीन से और दूसरा एंटीजन यानी रेड ब्लड सेल में मौजूद प्रोटीन से। जिसे हम आरएच कहते हैं, वह रेड ब्लड सेल्स की सतह पर मौजूद एक प्रोटीन होता है। आम लोगों में यह आरएच या तो पॉजिटिव होता है या नेगेटिव। लेकिन जिन लोगों के शरीर में गोल्डन ब्लड होता है, उनका आरएच न तो पॉजिटिव होता है और न ही नेगेटिव। यही वजह है कि समूची रक्त संबंधी मैडीकल साइंस यहां पर निरुत्तर हो जाती है, उसे कुछ-कुछ समझ में नहीं आता। इसलिए इस रक्त समूह के लोगों को दुनिया के दुर्लभतम लोगों की कैटेगिरी में रखा जाता है। 
अब सवाल यह है कि भले ये लोग दुर्लभ से दुर्लभतम हों लेकिन आखिर ये इतने कम क्यों हैं? इसकी वजह यह है कि गोल्डन ब्लड ग्रुप आमतौर आरएचएजी जीन के जेनेटिक म्युटेशन की वजह से होता है। जेनेटिक म्युटेशन की वजह से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लोगों में यह ब्लड ग्रुप ट्रांसफर हो जाता है और कुछ शोधों के मुताबिक जब किसी बहुत निकट या दूर के रिश्तेदारों के बीच शादी हो जाए यानी चचेर भाई या चचेरी बहन आदि के बीच तो उनके बच्चों में भी इसके पाये जाने की संभावना बढ़ जाती है। पहली बार यह ब्लड ग्रुप ऑस्ट्रेलिया की एक आदिवासी महिला के शरीर में पाया गया था। जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल के डॉ. जी.एच. वोज और उनकी टीम ने दुनियाभर में मौजूद ऐसे लोगों की तलाश की और सालों की अथक मेहनत के बाद एक डिटेल रिपोर्ट तैयार की, जिसे पाकिस्तान मैडीकल एसोसिएशन की पत्रिका में पब्लिश किया गया। 
इस शोध रिपोर्ट के पहले तक यह माना जाता था कि आरएच एंटीजन के बिना बच्चे जिंदा नहीं रह सकते। अगर हम लोगों के बीच कोई गोल्डन ब्लड ग्रुप जैसे दुर्लभ रक्त समूह का व्यक्ति हो, तो उसे सेंट्रल ब्लड रजिस्ट्री में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए ताकि किसी आपातकाल के दौरान खून की जरूरत पड़ने पर उसकी व्यवस्था की जा सके। एक जो सबसे आम बात इस दुर्लभ रक्त समूह के लोगों में देखी जाती है, वह यह है कि जिन लोगों का यह दुर्लभतम रक्त समूह होता है, उनमें हीमोग्लोबिन की कमी रहती है, जिस कारण उनका शरीर हमेशा बीमार नज़र आता है। ऐसे लोगों की किडनी फेल हो जाने की आशंका भी ज्यादा रहती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर