संयम और विनम्रता के बिना व्यर्थ है कांवड़ यात्रा

हर साल श्रावण मास में करोड़ों की तादाद में कांवड़िये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव कस्बे व शहर वापस लौटते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो यह एक धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। 
कांवड़ के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, धरती पर निवास करने वाले हजारों लाखों तरह के कीड़े-मकोड़ों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित रहा है। भारतीय लोगों के लिए यह शब्द बिल्कुल अनसुना नहीं होगा। सावन के प्रारंभ होते ही केसरी रंग के कपड़ों में कांवड़िये अपने कंधे पर कमंडल लटकाए, पहले उसमें गंगाजल भरकर लाते हैं और अपनी मन्नत के अनुसार किसी विशेष शिव मंदिर में उस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। गंगाजल लाने और उससे शिवलिंग का अभिषेक करवाने तक का यह पूरा सफर पैदल और नंगे पांव किया जाता है। निश्चित तौर पर यह काम बहुत हिम्मत का है, लेकिन शिव भक्ति के सामने कोई भी मुश्किल बड़ी कहां रहती है। पैरों में पड़ने वाले छाले बेशक एक बड़ी रुकावट बन जाते हैं लेकिन शिव भक्त हार कहां मानते हैं। ऐसा माना जाता है शिव का जलाभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। सावन के महीने को शिव माह भी कहा जाता है, क्योंकि यह वो महीना होता है जब सारे देवता शयन करते हैं परन्तु शिव सक्रिय और जागृत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। कांवड़ यात्रा बहुत मुश्किल होती है, इस दौरान कांवड़ियों को कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है जो अत्यंत आवश्यक होता है। आइए, जानते हैं, क्या हैं वो मुख्य नियम। कांवड़ यात्रा शुरू करते ही कांवड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है। यात्रा पूरी होने तक उस व्यक्ति को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते, इसलिए स्नान करने के बाद ही कांवड़िये अपने कांवड़ को छू सकते है। चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, ये सब कांवड़ियों के लिए वर्जित कार्य होते हैं। इसके अलावा किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कांवड़ को रखना वर्जित है। कांवड़ ले जाने के पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करना फलदायी होता है। कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है। इन सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है और इसके लिए कांवड़ियों की संकल्पशक्ति की मजबूती अनिवार्य होती है। (सुमन सागर)

—श्रीगोपाल नारसन