संयम और विनम्रता सिखाती है कांवड़ यात्रा

यूं तो फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को शिवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है लेकिन श्रावण मास में शिव भक्ति का विशेष महत्व है। इन दिनों में भगवान शिव का विविध रूपों में श्रृंगार होता है तो श्रद्धालु व्रत-उपवास रख शिव अराधना में लीन रहते है। कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु देवताओं समेत चार मास के लिए सोने चले जाते हैं। इस दौरान वह सृष्टि को पालने का काम भी भोले शंकर को सौंप देते हैं। भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की उष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना गया है।सावन में विभिन्न साधनों से भगवान शंकर को प्रसन्न करने का उपक्र म किया जाता है। इनमें जलाभिषेक का विशेष महत्व है। शिव की कृपा पाने के लिए कांवड़ यात्रा का खूब चलन है। ऐसी यात्रा हमारे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। कांवड़ यात्रा से हमारे भीतर संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास जागता है। इसमें हम भक्ति के साथ-साथ अपनी शारीरिक क्षमता का भी आकलन करते हैं। देशभर में पवित्र नदियों का जल अपने कंधों पर रखे कांवड़ में लिए लाखों  शिव भक्तों को देखा जा सकता है। शिव भक्ति की मस्ती में झूमते ये कांवड़िये अपने घर के निकट के शिव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। हरिद्वार, देवधाम सहित भारत भर में शिव भक्तों की यह कांवड़ यात्रा विश्व की सबसे बड़ी यात्रा है। लोग सावन में रिमझिम वर्षा और घनघोर घटाओं के बीच मस्ती के साथ झूमते-गाते हरिद्वार और नीलकंठ तक जाते हैं और गंगाजल लेकर नंगे पांव पैदल चलकर लौटते हैं। यात्रा के नियम बड़े कठोर हैं जो शिव भक्तों ने स्वयं ही तय किए होते हैं जैसे यात्रा के दौरान किसी प्रकार का व्यसन न करना, कांवड़ को किसी भी स्थिति में ज़मीन पर नहीं टिकने देना, नंगे पैर चलना और घर में साग-सब्ज़ी में छौंक न लगाना आदि। कांवड़ यात्रा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह हमें कष्टप्रद स्थितियों में भी संयमित और विनम्र बने रहना सिखाती है। हम लम्बी पैदल यात्रा से थके होते हैं। भोजन और विश्राम मिलने का कोई ठिकाना नहीं होता, फिर भी अपना संयम नहीं छोड़ते, अपने उद्देश्य को नहीं भूलते। एक सच्चे भक्त की तरह नम्र और विनीत बने रहते हैं। कांवड़ यात्रा सचमुच समरसता और समानता का वातावरण बनाती है। साथ ही अपनी शक्ति और अखंड भारत की एकता का प्रदर्शन भी करती है। सारा वातावरण शिवमय हो उठता है। सभी में उत्साह है, उल्लास है, भक्ति भाव है, समर्पण है औऱ पवित्रता झलक रही है। यह सब शिव भोले की भक्ति-शक्ति और उदारता के कारण ही तो है। मजेदार यह भी है कि कांवड़ को सजाने और संवारने में भी युवा कांवड़ियों में बड़ी प्रतिस्पर्धा रहती है कि किसकी कांवड़ आकर्षक है। जगह-जगह कांवड़ियों की सेवा के लिए लगे सेवा-शिविर भी स्वत: स्फूर्त होते हैं। श्रावण और शिव की महिमा को देखते हुए कौन कहेगा कि कांवड़ कोरा लोकाचार है। वास्तव में यह हमारी संस्कृति की अनुपम धरोहर है जिसको सहेज कर रखना बहुत ज़रूरी है। (युवराज)