बहुत फलदायी होता है वाणी का संयम

संयम रखना व करना भी एक अद्भुत कला है बल्कि कला ही नहीं जीवन को सुखी बनाने का रहस्य भी है। या कहें कि यही जीवन का मूल आधार है। जिसने अपनी वाणी, जिव्हा अर्थात अपनी सभी कर्मे इंद्रियों एवं ज्ञान इंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया, वही मनुष्य बुद्धिमान, विद्वान, महापुरुष बन सकता है। यह तथ्य अनगिनत उदाहरणों से जाना व समझा जा सकता है। इस संबंध में अतीत और वर्तमान सुनहरे पृष्ठों में अंकित है। वाणी के संयम का एक उदाहरण यहां देना समीचीन होगा। द्वापर युग समाप्ति की ओर था। महाभारत को बोलकर लिखवाने के लिए महर्षि वेदव्यास के मन में किसी योग्य व्यक्ति की कामना जागृत हुई। उनकी इस कामना को पूर्ण करने के लिए गणेश जी ने महाभारत लिखने का संकल्प ले लिया। महर्षि वेदव्यास बोलते गए तथा गणेश जी लिखते गए। बहुत दिनों तक यह कार्य चलता रहा। महाभारत का लेखन कार्य पूर्ण हुआ तो महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी से पूछा, ‘महाभाग! मैंने 24 लाख शब्द बोलकर आपको लिखाए हैं , आश्चर्य है कि इस बीच आप एक शब्द भी नहीं बोले। सर्वथा मौन ही रहे। बस लिखते गए।’तब गणेश जी ने सहज भाव से उत्तर दिया, ‘बादरायण, बड़े कार्य सम्पन्न करने के लिए शक्ति चाहिए और शक्ति का आधार संयम है। संयम ही समस्त सिद्धियों का प्रदाता है। यदि मैं वाणी का संयम न रख सका होता तो आपका ग्रंथ कैसे पूरा हो पाता?’ संयम से ही सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है लेकिन जो उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर संयम से रहते हुए उनका सामना करते हैं , वे जीत कर आनन्द का अनुभव करते हैं। जो मनुष्य अपनी वाणी और जिह््वा पर नियंत्रण कर पाने में सक्षम होते हैं, वे ही तन और मन से प्रसन्न व स्वस्थ तो रहते ही हैं, साथ ही वे अपनी मंज़िल को भी सहज ही पा लेते हैं। वाणी पर संयम करने वाले मनुष्य असाधारण प्रतिभा के धनी होते हैं। वे मानव समाज के प्रेरणास्रोत होते हैं। वे किसी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाते। साथ ही असंख्य मानवीय गुणों से सम्पन्न भी होते हैं। हम भी संयम से रहने का संकल्प लें, जीवन अमूल्य है। (उर्वशी)