पंजाब में बाढ़ भाखड़ा बोर्ड के नियमों के उल्लंघन का परिणाम

जालन्धर, 25 अगस्त (मेजर सिंह) : पंजाब में गत दिनों  सतलुज दरिया के नज़दीकी क्षेत्रों में बाढ़ की तबाही के लिए भाखड़ा-ब्यास प्रबंधकीय बोर्ड के प्रबंधकों द्वारा पहले से ही निर्धारित नियमों के उल्लंघन को जिम्मेवार माना जा रहा है। भाखड़ा डैम पर मुख्य इंजीनियरों के पद तक लम्बा समय तैनात रहे कई पूर्व इंजीनियरों ने बताया कि यदि बोर्ड के प्रबंधक निर्धारित कार्यप्रणाली व नियमों के मुताबिक ठोस कदम उठाते तो पंजाब के लोगों को बाढ़ की मार नहीं सहनी पड़ती। ऐसे कई इंजीनियरों ने बताया कि 1988 में काफी पिछड़कर 23 से 27 सितम्बर के दौरान पंजाब में भीषण बाढ़ आई थी। उस समय भाखड़ा डैम की सिल्वर जुबली मनाई जा रही थी और प्रबंधकों ने फैसला किया था कि डैम में जलस्तर 1688 फुट ऊंचा करना है, जब जलस्तर  1687.5 फुट तक चला गया तो हिमाचल व पंजाब में भारी बारिश शुरू हो गई और बाढ़ आ गई। ऐसी हालत में डैम से पानी छोड़े बिना कोई चारा नहीं था और यह पानी छोड़े जाने के कारण पंजाब का भारी नुक्सान हुआ था और उस समय खाड़कू लहर का दबदबा होने के कारण भाखड़ा बोर्ड के चेयरमैन मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) बी.एन. कुमार गोली का निशाना बने थे। इन बाढ़ के बाद भाखड़ा डैम प्रबंधकों ने फैसला किया कि डैम में 1680 फुट तक ही पानी जमा होने दिया जाए। बोर्ड द्वारा बनाए रोस्टर में फैसला किया कि 31 जुलाई तक जलस्तर 1650 फुट हो और 15 अगस्त तक अधिक से अधिक 1670 फुट तक जलस्तर रहे परंतु अधिकतर इंजीनियर हैरान हैं कि इस बार 15 अगस्त को डैम में जलस्तर पहले ही 1674 फुट था जबकि नियमों के अनुसार 1670 फुट तक होना चाहिए था तो फिर सवाल यह उठ रहा है कि कुछ अधिकारियों ने बिजली पैदावार बढ़ाने की होड़ में नियमों को ताक पर रखकर जलस्तर बढ़ाने की अनुमति दी। उन्होंने बताया कि गत वर्ष 15 अगस्त तक डैम के पानी का स्तर 1660 फुट के नज़दीक रहा है। उनका कहना है कि यदि नियमों के अनुसार जलस्तर डैम में 1670 के नज़दीक होता तो फ्लड गेट खोलने की ज़रूरत न पड़ती और यदि  पड़ती तो भी इतना पानी नीं छोड़ा जाता कि गांव ही डूब जाएं। एक पूर्व चीफ इंजीनियर ने बताया कि इस वर्ष जून के बाद गत वर्ष के मुकाबले डैम में जलस्तर 80 से 100 फुट वैसे ही ज्यादा रहा है। इस बारे न कोई जवाबदेही बन रहा है और न ही कोई बना रहा है। फिर यह भी सवाल उठ रहा है कि यदि 1674 फुट पानी का स्तर था तो 1680 फुट तक पानी का स्तर चला गया था। डैम की अधिक से अधिक क्षमता 1690 फुट है। 1988 में 1687 फुट तक भी स्तर चल गया था। फिर 1680 फुट स्तर पर ही फ्लड गेट खोलने की क्या जल्दी पड़ गई? 22 वर्ष डैम पर काम करके चीफ इंजीनियर रहे एक अधिकारी ने कहा कि 1680 का स्तर तो केवल फैसला है और खतरे की घंटी 1688 फुट के स्तर पर जाकर होती है। उन्होंने कहा कि चारों गेटों के 8 फुट गेट खोलना किसी भी तरह उचित नहीं है। भाखड़ा-ब्यास प्रबंधक बोर्ड ने अब फैसला किया है कि डैम का स्तर 1675 फुट के स्तर पर लाना है, जिसके तहत डैम से और पानी छोड़ा गया है। उन्होंने बोर्ड के इस फैसले को भी गलत करार देते हुए कहा कि पहले तो लगातार 100 फुट जलस्तर रखा गया जिसके कारण डैम की क्षमता एक इंच से भी बढ़ने के आसार हैं।  उन्होंने आशंका जताई कि ऐसे गलत फैसलों से डैम को ही खतरा बन सकता है।ब्यास-सतलुज प्रोजैक्ट से रुक सकता था पानी : एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि यदि भाखड़ा बोर्ड के प्रबंधक पंजाब के लोगों के प्रति चिंतित होते तो सतलुज दरिया में ब्यास दरिया का आने वाला 8500 क्यूसिक पानी रोक सकते थे और इस पानी के रोकने से बाढ़ की मार से बड़े स्तर पर बचाव हो सकता था। उनका कहना था कि पंडोह डैम से 40 किलोमीटर के करीब सुरंग व नहर के ज़रिये क्यूसिक पानी ब्यास से सतलुज में पड़ता है। विशेष हालात में यह पानी सतलुज की जगह पौंग डैम के ज़रिये ब्यास दरिया में छोड़ा जा सकता था। ब्यास दरिया में इस बार जलस्तर नीचे ही रहा है। आम प्रभाव यह है कि जिस तरह दिल्ली में पंजाब की बाढ़ को तुच्छ समझा जाता है। इसी तरह भाखड़ा प्रबंधक भी पंजाब बारे फैसले लेते समय कोई ज्यादा चिंतित या लगाव नहीं दिखाते और नुक्सान प्रदेशवासियों को भुगतना पड़ता है।