विधानसभा के परिणामों के बाद मतदाताओं की सोच क्या रही ?

साल 2024 के आम चुनावों के पहले सत्ता के सेमीफाइनल कहे जाने वाले पांच विधानसभा चुनावों के नतीजों ने सिर्फ लोकप्रिय अनुमानों को उलट देने के स्तर पर ही नहीं चौंकाया, इन नतीजों में मतदाताओं की और भी कई बारीक मगर स्पष्ट रणनीतियां भी देखी जा सकती हैं। मसलन मतदाताओं ने किसी भी राज्य में कमजोर या लंगड़ा जनादेश नहीं दिया। लगता है जैसे मतदाताओं ने पहले से ही तय कर लिया था कि वे जिसकी भी सरकार बनायेंगे, मजबूत बनायेंगे। मतदाता नहीं चाहते हैं कि कमजोर जनादेश को राजनीतिक पार्टियां तिकड़म का गणित बना दें। इसलिए इन चुनावों में उन्होंने बहुमत के आसपास का नहीं बिल्कुल स्पष्ट बहुमत का निर्णय दिया है। 
तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा को तेलंगाना में कांग्रेस को और मिजोरम में ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट यानी जेड.पी.एम. को मजबूत सरकार बनाने का स्पष्ट बहुमत मिला है। जबकि एग्जिट पोल इस संभावना की तस्दीक नहीं कर रहे थे। विशेषकर मिजोरम में तो एक भी एग्जिट पोल यह नहीं कह रहा था कि मिजो नेशनल फ्रंट (एम.एन.एफ.) या जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेड.पी.एम.) में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत मिलेगा। मिजोरम को लेकर सभी एग्जिट पोल त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी कर रहे थे। टाइम्स नाऊ और ईटीवी एग्जिट पोल एम.एन.एफ. और जेड.पी.एम. को क्रमश: 14-18 और 10-14 सीटें दे रहा था, जबकि कांग्रेस के खाते में 9 से 13 सीटें जाते बता रहा था। जबकि वास्तविक नतीजों में जेड.पी.एम. ने 27 सीटें जीत लीं, मतलब यह कि उसे स्पष्ट बहुमत मिला है। जबकि जिस कांग्रेस को एग्जिट पोल 9 से 13 सीटें तक दे रहे थे, वह बमुश्किल एक सीट जीत पायी है, जबकि भाजपा मिजोरम में दो सीटों से खाता खोलती दिख रही है।
स्पष्ट जनादेश का यह परिदृश्य सिर्फ 40 सीटों मिजोरम में ही देखने को नहीं मिला बल्कि मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभा के नतीजों में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है, जहां क्रमश: 230 और 200 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि समग्रता में बाकी चारों प्रदेशों यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी कहीं त्रिशंकु नतीजों की बात नहीं की गयी थी। लेकिन ज्यादातर एग्जिट पोल में इन सभी प्रदेशों में जीत और हार को लेकर एग्जिट पोल इतने स्पष्ट नहीं थे, जबकि चुनाव नतीजे बेहद स्पष्ट आये हैं। मसलन मध्य प्रदेश में चार अलग-अलग एग्जिट पोल में कांगेस को जहां संभावनाओं के परिद्रश्य से बाहर दिखाया जा रहा था, वहीं पांच में उसे औसतन 110 से 125 के बीच दिखा रहे थे। अगर वास्तव में जैसे एग्जिट पोल में नतीजे आते दिखाए जा रहे थे, वैसे ही आये होते तो चाहे भाजपा की या फिर कांग्रेस की सरकार बनी होती, उसका पांच सालों तक चलना मुश्किल होता, चल भी जाती तो हमेशा तख्तापलट से आशंकित रहतीं क्योंकि नाजुक बहुमत पर हमेशा तख्ताउलट की तलवारें लटकती रहती हैं।
शायद इसीलिये पांचों विधानसभा चुनावों के नतीजे बहुमत की संख्या के नजरिये से मजबूत हैं। अनहोनी तो कभी भी और किसी भी स्तर की हो सकती है, लेकिन अगर इन नतीजों को मतदाताओं के विवेक के नजरिये से तौलें तो ये मतदाताओं की इस परिपक्वता को दर्शाते हैं कि वे अपने कमजोर समर्थन को तख्तापलट का शिकार बनाने का मौका राजनीतिक पार्टियों को नहीं देना चाहते।  आम चुनावों के करीब 6 महीने पहले पांच विधानसभा चुनावों के ये नतीजे राजनीतिक पार्टियों को इस अर्थ में भी चौंकाते हैं कि वह मतदाताओं को राय देने के मामले में इतना कच्चा न समझें। अब वह भी सबकी सुनते हैं, मगर ऐन मौके पर करते अपने मन की ही हैं। इन चुनावों के दौरान सिर्फ मीडिया के एग्जिट पोल ही नहीं फेल हुए, राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने स्तर पर जो खुद के सर्वे करा रखा था, सच्चाई यही है कि उनके सर्वे भी वास्तविकता के स्तर पर मुंह के बल गिरे हैं। सच बात तो यह है कि मीडिया के एग्जिट पोल से भी कहीं ज्यादा बेमतलब राजनीतिक पार्टियों के निजी सर्वे साबित हुए हैं, लेकिन ये सचाई वो सार्वजनिक तौर पर नहीं स्वीकारते।
इन नतीजों का एक और सन्देश साफ है कि मतदाताओं को कल्याणकारी योजनाएं चाहिए, लेकिन वैसी ही योजनायें जो ठोस और व्योहारिक हों। सिर्फ चुनावों को जीतने के लिए दिखाए जाने वाले सब्जबाग न हों। ऐसे वायदों को अब वे स्वीकार नहीं करेंगे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बेरोज़गारों को 1500 से 3000 रुपए प्रतिमाह देने का वायदा किया था, तो महंगाई की मार से परेशान गृहणियों को राहत देने के लिए 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने की बात भी कही थी। इसी के साथ आम लोगों को राहत देने के लिए 100 यूनिट तक बिजली बिल माफ और 200 यूनिट तक हाफ करने की घोषणा भी की थी, इसके अलावा किसानों के दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने के साथ ही सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने का वादा भी की थी। इतना ही नहीं कांग्रेस ने किसानों को 5 हार्स पावर तक बिजली बिल माफ करने का ऐलान करने के साथ ही सिंचाई के पुराने बिजली बिल भी माफ करने की घोषणा की थी। इसके साथ ही 12 घंटे सिंचाई के लिए बिजली सुनिश्चित करने की बात भी कही थी। लेकिन मतदाताओं ने इन लोकलुभावन वादों पर भाजपा सरकार द्वारा पहले से ही सुनिश्चित तौर पर मिल रही सुविधाओं को  प्राथमिकता दी। इससे साफ है कि मतदाताओं के भीतर कहीं न कहीं कांग्रेस की अतीत की वायदाखिलाफी इस कदर घर किये बैठी है कि वह उसकी पृष्ठभूमि में उस पर नया भरोसा करने से जिझक रहे हैं। तेलंगाना में यही बात बीआरएस पर लागू हुई है। इस तरह देखें तो ऐन लोकसभा चुनावों के पहले सत्ता के सेमीफाइनल में मतदाताओं ने राजनीतिक पार्टियों को अपने बारे में सोचने के लिए नए सिरे से बाध्य कर दिया है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर