वृक्षों की अंधाधुंध कटाई रोकने की ज़रूरत

पंजाब, हिमाचल एवं देश के कई अन्य प्रांतों में विकासात्मक गतिविधियों के नाम पर वृक्षों की बड़े स्तर पर हो रही कटाई से पर्यावरण एवं प्राकृतिक वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ने के चिन्ह स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगे हैं। वृक्षों की यह कटाई कहीं तो बाकायदा नियोजित ढंग से परियोजना क्षेत्र के अन्तर्गत की जा रही है, परन्तु अनियोजित तरीके, और बिना मंजूरी के भी वृक्षों का अवैध कटान बड़े स्तर पर और निरन्तरता से जारी है। इस प्रकार एक पुष्ट सूचना के अनुसार पिछले पांच वर्ष में पूरे देश में एक करोड़ से अधिक वृक्षों को काट दिया गया है। नि:सन्देह इसके अतिरिक्त भी अवैध रूप से लाखों वृक्ष काटे गये होंगे। प्रत्येक पांच वृक्षों की वैध कटाई के बाद एक वृक्ष का अवैध कटान भी हो जाता है। देश में वन माफिया और वृक्षों की अवैध कटाई करने वाला माफिया इतने सबल हैं कि नियम-कायदे सब उनके समक्ष धरे के धरे रह जाते हैं। इसी प्रकार प्रदेश की निजी परियोजनाओं के तहत भी वृक्षों की वैध-अवैध कटाई होती रहती है। पंजाब में स्थिति इसलिए भी अधिक खराब है क्योंकि यहां वन क्षेत्र का रकबा वैसे ही बहुत कम है। पंजाब में पिछले एक वर्ष में ही वन अथवा हरियाली वाले इलाकों का क्षेत्रफल 6.87 प्रतिशत से कम होकर 6.70 प्रतिशत रह गया है। पंजाब में भी पिछले कुछ समय में घोषित विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत वैध-अवैध तरीकों से बड़े स्तर पर वृक्षों का कटान हुआ है, जिसने स्थिति को अधिक गम्भीर किया है। पंजाब के वन विभाग द्वारा व्यवसायिक इरादे से  वृक्षों की बड़े स्तर पर कटाई किया जाना भी स्थितियों को नाज़ुक बनाता है। हाल ही में मुम्बई की आरे कालोनी में भी प्रस्तावित मैट्रो शैड के लिए सैकड़ों वृक्षों को काटने का कार्य शुरू किया जा चुका है। जिसका स्थानीय लोगों द्वारा भी कड़ा विरोध हो रहा है। वैसे तो यह स्थिति पूरे विश्व में चिंता की नाज़ुक रेखा तक पहुंच चुकी है। यह स्थिति कितनी भयावह है, इसका पता इस तथ्य से भी चल जाता है कि पिछले दिनों स्वीडन की एक पर्यावरण-समर्थक युवा कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग ने विश्व के बड़े नेताओं और बड़े देशों की पर्यावरण संबंधी उपेक्षा को आड़े हाथों लिया। इन नेताओं द्वारा ग्रेटा थुनबर्ग की इस फटकार पर चुप्पी साध जाना स्थितियों के प्रति उनकी मौन स्वीकृति को ही दर्शाता है। वृक्षों के अंधाधुंध कटान से उपजी इस विभीषिका का एक त्रासद पक्ष यह भी है कि जितने वृक्ष काटे जाते हैं, उसके अनुपात में उतनी ही अथवा उससे अधिक संख्या में नये वृक्ष रोपे नहीं जाते। नये पौधारोपण के पथ पर राजनीति और भ्रष्टाचार बहुत बड़ी बाधा बन जाते हैं। पोषण एवं समुचित देखभाल की कमी के कारण नये रोपे गये पौधों में से केवल बीस प्रतिशत ही वृक्ष बन पाते हैं। पंजाब के वन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में प्रदेश के 6 ज़िलों में 35 करोड़ रुपये खर्च कर 2.61 करोड़ नये पौधे लगाये गये। इसके विपरीत लगभग 13 करोड़ रुपये की आय के लिए लगभग एक लाख भरे-पूरे वृक्ष काट दिये गये। इस प्रकार एक ओर तो वृक्षों की बड़े स्तर पर कटाई से पर्यावरण को भारी हानि सहन करनी पड़ी, वहीं भ्रष्टाचार के कारण प्रदेश के राजस्व को भी करोड़ों रुपये का नुक्सान हुआ। वृक्षों के इस अंधाधुंध कटान का सर्वाधिक नुक्सान पर्यावरण के धरातल पर उठाना पड़ता है। पड़ोसी प्रांत हिमाचल के कई इलाकों में पहाड़ रुंड-मुंड हो गये हैं। वृक्षों के अवैध कटान के अतिरिक्त वृक्षों का चोरी हो जाना भी एक बड़े संकट का कारण बनता है। पंजाब के ज़िला होशियारपुर और पठानकोट के सीमावर्ती क्षेत्रों में हज़ारों वृक्षों का चोरी हो जाना अथवा रातो-रात काट लिया जाना भी हरियाली के लिए ़खतरा बनता है। बेशक यह कार्य स्थानीय प्रशासन की मिलीभुगत के बिना नहीं हो सकता। पहाड़ों पर से वृक्षों की कटाई के कारण जहां पानी का बहाव तेज़ होने लगता है, और मिट्टी का क्षरण होता है, वहीं मौनसून की हवाओं का पथ अवरुद्ध होने से वर्षा का क्रम भी प्रभावित होता है। पंजाब में मौजूदा मौनसून के मौसम में असामयिक एवं अथाह पानी  बरसने के पीछे भी पर्यावरण की यह प्रतिकूलता ही उत्तरदायी मानी जा सकती है। पहाड़ों के पानी के अकारण बह जाने से मैदानी इलाकों में धरती के नीचे वाले पानी का स्तर प्रभावित होता है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में वृक्षों का अंधाधुंध कटान करके पर्यावरण को कुरूप एवं प्रभावित करने के लिए केन्द्र और प्रदेश दोनों की सरकारें ज़िम्मेदार हैं। नि:संदेह देश में विकास का होना बहुत ज़रूरी है, परन्तु विकास का यह तरीका सुनियोजित और तर्क-संगत होना चाहिए। सड़कें विकास पथ के प्रशस्त होने का अहम पक्ष होती हैं, परन्तु कई सड़कों के निर्माण एवं विस्तार के दौरान जिस प्रकार की अराजकता और अनियमितता का प्रदर्शन होता है, उससे नये पौधारोपण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। हम समझते हैं कि स्थिति बेशक गम्भीर है, परन्तु सरकारों के धरातल पर कहीं कोई सक्रियता नहीं दिखती है। केन्द्र सरकार स्वच्छता एवं साफ-सफाई के धरातल पर तो पूरा ज़ोर लगा रही है, परन्तु पर्यावरण और इसको प्रभावित कर रहे वृक्षों के भारी कटान को रोकने के लिए कहीं से भी तत्परता दिखाई नहीं देती। पंजाब सरकार के अपने धरातल की बात करें, तो स्थिति वहां भी भयावह प्रतीत होती है। इस प्रकार की मानवीय चूकों के कारण हम अपनी भावी संततियों को एक ऐसे पथ की ओर धकेल रहे हैं जहां विकास के विपरीत विनाश के चिन्ह अधिक बड़े आकार में दिखते हैं। इस स्थिति से बचने हेतु एक ओर जहां वृक्षों के बेवजह और अनियोजित कटान को सख्ती से रोके जाने की बड़ी ज़रूरत है, वहीं नियमितता के साथ एक से अधिक नव-पौधारोपण अभियान चलाया जाना भी उतना ही आवश्यक है। हम यह भी समझते हैं कि यह कार्य जितनी जल्दी किया जाएगा, उतना ही मौजूदा पीढ़ियों के भविष्य और भावी संततियों के हित में होगा।