नया अकाली दल खड़ा करने के लिए हो रहे हैं प्रयास

साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी करने से संबंधित बदनाम बरगाड़ी कांड के मामले में सी.बी.आई. ने पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पंजाब विधानसभा के सी.बी.आई. से जांच वापस लेने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है। इस तरह प्रतीत होता है कि जैसे इस कांड को लटकाने के हर सम्भव प्रयास किये जा रहे हों। हैरानी की बात है कि इस मामले में पंजाब सरकार द्वारा वकीलों के साथ सी.बी.आई. के खिलाफ पैरवी उसी अधिकारी की निगरानी में ही की जा रही है, जिसने स्वयं ही पहले सी.बी.आई. द्वारा इस मामले को खत्म करने के लिए अदालत में पेश की क्लोज़र रिपोर्ट के समय पत्र लिख कर सी.बी.आई. को जांच जारी रखने के लिए कहा था।  फिर इसके बाद इस मामले की जांच के लिए पंजाब पुलिस द्वारा बनाई सिट के प्रमुख पुलिस अधिकारी प्रबोध कुमार के खिलाफ कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं, कुछ मंत्रियों और विधायकों ने भी बयान द़ागे थे। यहां तक कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी सी.बी.आई. द्वारा केस पुन: खोलने की कोशिश का विरोध किया था। परन्तु अब हैरानीजनक सीमा तक इस तरह प्रतीत होता है जैसे इस मामले की गम्भीरता और इसका फैसला करवाने की पहल को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। हालांकि इसी केस से जुड़े श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के खिलाफ रोष कर रही है संगत पर गोलियां चलाने के दो मामलों में भी पंजाब पुलिस की सिट अलग-अलग तरह की पहुंच अपना रही है। एक तरफ कोटकपूरा गोलीकांड की जांच के मामले में पुलिस अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह अकेले ही अपने ही हस्ताक्षरों से आरोप-पत्र दायर कर देते हैं और अंत में इसके खिलाफ उठाई गई आपत्तियों से भी विजय होकर निकलते हैं। जबकि बहबल कलां गोलीकांड की जांच में माननीय अदालत इसके लिए सुनवाई टाल देती है, क्योंकि इसमें सिट सिर्फ एस.एस.पी. चरणजीत शर्मा के खिलाफ भी आरोप-पत्र दायर करती है। वास्तव में राजनीतिक सच्चाई यही है कि यदि बरगाड़ी-बहबल कलां कांड न होते, अकाली दल डेरा सिरसा प्रमुख को श्री अकाल तख्त साहिब से माफी दिलाने और फिर माफी रद्द करने का ड्रामा न करता और चुनावों में डेरा प्रमुख के समर्थन की घोषणा न करवाता, तो सुनिश्चित तौर पर 2017 विधानसभा के परिणाम काफी सीमा तक कुछ और ही होते। मतलब साफ है कि अन्य कारणों के साथ-साथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामलों ने कांग्रेस की सरकार बनाने में काफी भूमिका अदा की थी। अब यह आम चर्चा है कि यदि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार ने 2022 के विधानसभा चुनावों से पूर्व इन मामलों को न निपटाया तो आम लोगों और खास तौर पर सिखों का कांग्रेस से 1984 के बाद एक बार फिर मोह भंग हो जाएगा। वैसे भी आर्थिक तंगी की शिकार पंजाब सरकार लोगों की आशाओं पर पूरी नहीं उतर रही। फिर शांति-व्यवस्था की स्थिति और नशों को खत्म करने में असफल रहने के कारण भी सरकार की छवि खराब हो रही है। 
अकाली दल बादल और नया अकाली दल?
एक तरफ नया अकाली दल बनने की चर्चाएं चल रही हैं और दूसरी तरफ अकाली दल बादल द्वारा टक्साली अकाली दल में गये कुछ नेताओं को वापस लाने की कोशिशें भी जारी हैं। हमारी जानकारी के अनुसार नया अकाली दल बनाने के लिए अब तक दर्जनों बैठकें हो चुकी हैं, परन्तु अभी भी यह गुट किसी फैसले पर नहीं पहुंच सके। वास्तव में नया अकाली दल बनाने वाले और सम्भावित रूप में इसका नेतृत्व करने वाले नेता इस समय को नया संगठन बनाने के अनुकूल नहीं समझते। हमारी जानकारी के अनुसार दर्जनों बैठकों के बावजूद अभी तक इस बात पर ही सहमति नहीं बनी कि पंजाब की अकाली दल बादल, कांग्रेस तथा अकाली दल मान को छोड़ कर अन्य विरोधी गुटों का एक सांझा मोर्चा बनाया जाये, जिसमें संत समाज, अन्य सभी अकाली दल, बसपा, लोक इन्साफ पार्टी, ‘आप’ को छोड़ चुका गुट तथा अकाली दल, कांग्रेस और ‘आप’ छोड़ कर आने वाले नेता शामिल हों या फिर बकायदा एक विधान-एक प्रधान वाला नया अकाली दल बनाया जाए। 
ताज़ा जानकारी के अनुसार अब इन गुटों द्वारा साझे मोर्चे की बजाय एक नई पार्टी बनाने को प्राथमिकता दिए जाने की सहमति बन रही है। इसके लिए विचार-विमर्श जारी है। सोचा जा रहा है कि आज के ताज़ा हालात पर विचार करके नये बनने वाले अकाली दल के लक्ष्य और कार्यक्रम पहले निर्धारित कर लिए जाएं और बाद में इस आधार पर ही कांग्रेस, भाजपा, अकाली दल बादल, मान और बसपा को छोड़ कर सभी छोटी पार्टियों को इसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया जाए। इसके साथ ही नये निर्धारित लक्ष्यों और कार्यक्रमों से सहमत अकाली दल बादल, कांग्रेस, ‘आप’ आदि पार्टियों के नेताओं को भी निजी तौर पर निमंत्रण दिये जाने की बात भी चल रही है। जबकि इनमें से कुछ लोग अकाली दल का महा सत्र बुला कर अपना नया अध्यक्ष चुनने का रास्ता धारण करने के बारे में भी कह रहे बताये जाते हैं। हालांकि यह आज के हालात में आसान नहीं लगता। इस तरह प्रतीत होता है कि अभी यह विमर्श जारी रहेंगे, परन्तु दूसरी तरफ अकाली दल बादल इस स्थिति से निपटने के लिए हमलावर रुख अपनाने की कोशिश करता नज़र आ रहा है। अकाली दल बादल इस समय टक्साली अकाली दल के कुछ नेताओं को वापस अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगा हुआ है। यदि अकाली दल इसमें सफल रहता है तो इससे नया अकाली दल बनाने के इच्छुक लोगों को झटका ही नहीं लगेगा, अपितु इससे यह प्रभाव भी बनेगा कि अकाली दल छोड़ कर जाने वालों का अकाली दल के बिना गुज़ारा नहीं। उनको अपनी राजनीतिक शक्ति पुन: हासिल करने के लिए अकाली दल में लौटना ही पड़ता है। ऐसा होने से अकाली दल बादल और इसके प्रधान सुखबीर सिंह बादल का राजनीतिक कद ऊंचा होने की उम्मीद भी अकाली सूत्र अवश्य करते हैं। 
शिरोमणि कमेटी श्वेत-पत्र जारी करे
सिखों में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की प्रतिष्ठता काफी गिर चुकी है। हाल ही में मनाये गए साहिब श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर काफी अंगुलियां उठी हैं कि इस अवसर का सही फायदा नहीं उठाया गया और कोई स्थायी धार्मिक उपलब्धियां भी नहीं हो सकी। फिज़ूल खर्चों का शोर भी शिखर पर है। इसके लिए अकाली दल बादल जो व्यवहारिक तौर पर एस.जी.पी.सी. पर काबिज़ हैं, के प्रधान को चाहिए कि वह अपनी छवि ऊंची रखने के लिए ‘कमेटी’ को हिदायत करे कि ‘कमेटी’ द्वारा गुरु पर्व पर किये खर्चों और आमदनी के विवरणों के साथ-साथ एस.जी.पी.सी. द्वारा श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और धर्म प्रचार के लिए की गई गतिविधियों का लेखा-जोखा एक श्वेत-पत्र की तरह संगत के सामने पेश करे। ऐसा करना सुनिश्चित तौर पर अकाली दल और शिरोमणि कमेटी की प्रतिष्ठता में वृद्धि करने वाला कदम होगा, परन्तु इससे भी अच्छा हो यदि जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह जी सभी सिख संस्थाओं को हिदायत कर दें कि वह गुरुपर्व के अवसर पर किये अपने-अपने कार्यों, खर्चों और आमदनी का विवरण दें। स्थानीय संस्थाएं अपने-अपने गुरुद्वारों में यह लिख कर लगायें और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी तथा अन्य सभी बड़ी संस्थाएं अपनी गतिविधियां और आमदनी खर्च के विवरण प्रकाशित करें ताकि एक तो गुरुद्वारों के हिसाब में पारदर्शिता आए, दूसरा सिख संगत इस महान गुरुपर्व की उपलब्धियों के बारे में जानकार स्वाभिमान महसूस कर सके।

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