जल-थल में पाया जाने वाला जीव मगरमच्छ

मगरमच्छ जमीन एवं पानी दोनों में रहते हैं। इनकी त्वचा कड़े श्रृंगीय शल्क एवं अस्थिल प्लेटों से युक्त होती है। इनके लंबे थूथन पर बाह्य नासाछिद्र नोंक पर बने होते हैं।  जब ये प्राणी अपने शिकार को निगलते हैं तो भीतरी ग्लाटिस खिसक कर नासाछिद्रों के समीप आ जाता है और निगलने एवं श्वसन का काम साथ-साथ चलता रहता है। इसकी पूंछ शक्तिशाली एवं चपटी होती है। तैरने में पूंछ का विशेष सहयोग है। यह भयानक मांसभक्षी जानवर है एवं अधिकतर अलवण जल में रहता है। सारी दुनिया में विभिन्न प्रकार के मगरमच्छ पाये जाते हैं।
इनमें से कुछ निम्न हैं :-
क्रोकोडाइल : इस प्रजाति के मगरमच्छ एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा मध्य अमरीका में पाये जाते हैं। इसकी त्वचा काफी मोटी एवं कड़ी होती है। यह मगरमच्छ 30 से 40 फुट लंबी एक सुरंग जमीन में बनाता है। इसका दूसरा मुंह पानी के स्तर के नीचे खुलता है एवं एक मुंह जमीन पर होता है जिसमें एक बड़ा घोंसला होता है। इसमें मादा रहती है एवं अंडे रखे जाते हैं।  
ऐलिगेटर : क्रोकोडाइल की अपेक्षा इसका सिर अधिक चौड़ा होता है। ये प्राय: उथले पानी में पड़े रहते हैं। इन की आंखें और नासाछिद्र पानी के बाहर दिखाई पड़ते है। इन्हें यदि छेड़ा जाये तो ये पानी के नीचे मिट्टी में घुस जाते हैं। 
गोविएलिस : यह भारतीय घड़ियाल है। भारत में तो यह पाया ही जाता है। यह मलय में भी पाया जाता है। इसका आकार सबसे अधिक विशाल होता है। यह 20 फुट लंबा होता है। भारत में पाया जाने वाला गोविएलिस गैन्जेटिकस मछली खाता है। उत्तर भारत की नदियों में यह अधिकतर पाया जाता है। 
केमान : इस प्रकार के मगरमच्छ दक्षिण एवं मध्य अमेरिका में पाये जाते हैं। इसकी लंबाई 6 से 8 फुट तक होती है। पीठ तथा पूंछ पर कांटेदार त्वचा पाई जाती है। रंग मटमैला सा होता है। ये ऐलिगेटर की तरह ही दिखाई देते हैं, किन्तु आकार में उनसे छोटे होते हैं।

—सुनील परसाई