भूख ...

सीढ़ियों से उतरते हुए रामू को ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी किसी खाली पीपे की तरह लुढ़कने लगेगा, यह शायद भूख की वजह से है वह सोचने लगा, और हथेली को गर्दन से छुआ कर ताप लेने लगा। बुखार तो नहीं है अब, उसने महसूस किया। मगर टांगें उसे अब भी किन्हीं चकराते हुए लट्टूओं पर खड़ी महसूस हो रही थीं। ‘यह शायद भूख व कमज़ोरी, की वजह से है उसने फिर दोहराया और सीढ़ियों से उतरकर गली में आ गया।’ सड़क पर उसने चारों तरफ दूर तक नज़र दौड़ायी। वह बराबर पांच दिन बाद घर से बाहर निकला था। उसे पहले क्षण तो कुछ नया-नया अजनबी-सा लगा व स्वयं को डूबा हुआ-सा महसूस हुआ। परन्तु फिर वह धीरे-धीरे सारी सांसारिक चीज़ों से जुड़ता चला गया। वह किसी खोई हुई चीज़ मिल जाने की फिराक में था। मगर वह खुश नहीं था, ‘वह भूखा था।’उसने बुखार के इन पांचों दिनों में सिवाय फलों के रस व गोलियों के अलावा कुछ भी न खाया था। वह चप्पलें घसीटता हुआ सड़क के मुहाने तक पहुंच गया जहां से कई रास्ते विभिन्न स्थानों के लिए जाते थे। ‘यहां से होटल बहुत दूर नहीं था। मगर पैदल वहां तक पहुंचाना उसके लिए दूभर था। उसने बस स्टॉप की तरफ नज़र-फैंकी, वही स्थान जो इंसानों की भीड़ से भरा रहता था, खाली था, वह हैरान होकर इधर-उधर देखने लगा।’जिधर-जिधर नज़र दौड़ाई दुकानें बंद थीं, सड़कें सूनी थीं  जिस पर रोबिले चेहरे वाली कुछ वर्दियां घूमती नजर आ रही थीं। क्या आज हड़ताल है? उसने अपने आप से पूछा। कहीं थोड़ी-सी दूरी पर कुछ लोग उसे खड़े नजर आ रहे थे, जिनसे कि वह जवाब पा सकता था। यह आसान तो था मगर वह उस जवाब को पाने के लिए उन तक पहुंचने में कतराने लगा। वह बिजली के खम्भे के सहारे खड़ा हो गया और बार-बार बंद दुकानों व सूनी सड़कों की ओर देर तक देखता रहा। अगर सचमुच हड़ताल हुई तो वह बेचैन हो उठा तब उस खम्भे के नीचे खड़ा हो बस का देर तक इन्तजार करना उसे हास्यस्पद लगने लगा। वह उखड़े कदमों से स्वयं के शरीर को घसीटने लगा लेकिन टांगें शायद बहुत कमज़ोर थीं। किन्तु वह सारे रास्ते अपनी लाचार दलीलों से इसे मज़बूत करता रहा। होटल तो बन्द थे, यह उसने देख ही लिया था। मगर अब बिना कुछ पूछताछ किए पुन: घर लौट जाना स्वयं की भूख के साथ खिलवाड़ करने की तरह था। अब वह ऐसी स्थिति में नहीं आया व न ही एकदम नाउम्मीद था कुछ अब भी उसके भीतर बचा था जो उसे धकेल रहा था, शायद भूख की पीड़ा शांत करने के लिए। चलते-चलते वह एक होटल तक पहुंचा, जहां बाहर कुछ नौकर बैठे-बैठे रसोइयों के साथ बीड़ियां फूंक रहे थे। तो सरकार संबंधी व परस्पर विरोधी बातें भी किए जा रहे थे। मगर उनके चेहरे पर ग्लानि न होकर खुशी के हावभाव नजर आ रहे थे। उसे यह देख बहुत असंगत-सा लगा। वह आगे बढ़ा और बड़े ही आकस्मिक ढंग से उसने उन लोगों को ठहाकों को एकदम काट दिया। वे चुप होकर उसकी ओर देखने लगे। ‘उसने खरखराती आवाज में पूछा, होटल किस वजह से बंद है?’ उन लोगों ने यह प्रश्न सुन बहुत आश्चर्य व्यक्त किया कि, जैसे उसे आज के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। कुछ देर चुप रहने के बाद वे कहने लगे। ‘कि शहर में हड़ताल है, और सरकार की गलत खाद्य वितरण नीति और अपर्याप्त वितरण के विरोध में है। इसलिए होटलों व ढाबों को बंद रखना खासतौर पर बहुत जरूरी हो गया है।’ ‘वह चुपचाप सुनता रहा, उसे अब यह कहना तो बिल्कुल निरर्थक लगा कि, उसे बुखार है और वह ‘भूखा’ है वह जानबूझ कर कुछ देर तक वहां रुका रहा कि शायद छुपे तौर पर उन लोगों ने कुछ प्रबंध कर रखा हो ऐसा वह सोचने लगा।’ ‘उन लोगों ने उसकी बढ़ती जिज्ञासा को देख किसी चोर रास्ते की ओर संकेत करने के बजाय अन्न संकट पर चिन्ता प्रकट करते हुए अनाज के चढ़े भावों की फेहरिस्त सुनाना व उत्तेजित हो हड़ताल संबंधी ब्यौरों को देना शुरू कर दिया। अब वह कुछ देर तक हां-हूं करता रहा, और फिर वह बिना कोई उद्देश्य निर्धारित किए एकाएक कदम उठाने लगा।’ वह बुरी तरह से खीज उठा था और इस सारी स्थिति के प्रति आक्रोश से भर उठा। ‘अब क्या हो सकता है?’ उसने मुंह में जमा हो रहे कसैलेपन को थूका और असहाय होकर अपनी चारों तरफ देखने लगा मानों इस बात का जवाब वहां कहीं मौजूद था। तभी उसे ख्याल आया कि वह अपने कमरे की ओर तो नहीं जा रहा है उसने कुछ मुड़कर पीछे छोड़ी हुई सड़क को देखा। फिर अगले चौराहे की दूरी व अपने पांवों की सामर्थ्य का हिसाब लगाया, वह क्षण भर असमंजस में घिर गया, फिर भी किसी तरह उसने खुद को तैयार किया। बहुत मुमकिन है, वहां कुछ मिल जाये, सोच इस सिरे से उम्मीदें लिए वह चलने लगा। ‘वह बड़े ध्यान से हर दुकान का ‘साईन-बोर्ड’ पढ़ता हुआ चल रहा था। रामू शायद इस तरह अपनी भूख व कमज़ोरी के एहसास से छुटकारा पाना चाहता था, मगर बीच-बीच में होता यह कि कोई होटल का साईन-बोर्ड उसकी निगाहों के सामने आ जाता और दुकानों पर लगे तालों पर आ अटकता। तब यह ‘भूख’ और कमज़ोरी का एहसास फिर उतनी ही सख्ती से उसे जकड़ लेता...।’

— महामंदिर गेट के निकट, जोधपुर (राजस्थान) पिनकोड 342010
मो. 94143-75214