अर्जेन्टीना का मुद्रा संकट-एक चेतावनी

क्या हम 2008 की विश्व मंदी और वैश्विक आर्थिक संकट भूल गये हैं? इस संकट की छांव अमरीका जैसे साम्राज्यवादी मुल्क को भी झेलनी पड़ी थी। साम्राज्यवादी युद्ध संकट झेलने की जगह शोषक वृत्ति के होने के कारण पिछड़े मुल्कों पर बोझ डाल कर अपना संकट हल करने के आदी हैं। इस तरह अस्थायी तौर पर बाहर निकल जाना उनके लिए इतना कठिन न था परन्तु बाद के वर्षों में वे लक्षण पुन:  उभरने लगे जिसका सेंक छोटी-बड़ी आर्थिकता को झेलना पड़ सकता है।
अमीर मुल्कों का अपना ही दैभ होता है। एक बार राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर ने कहा था, ‘लोकतंत्र को अपने रंग में’ ढालने के लिए काम को अरुंधति राय के शब्दों में समझना चाहें तो, ‘आज येम योमस्की और उनके साथी मीडिया विश्लेषकों के हम आभारी हैं कि हज़ारों बल्कि करोड़ों हम जैसे लोगों को यह स्वयं सिद्ध है कि ‘मुक्त बाज़ार’ लोकतंत्रों में जनमत को ठीक उसी तरह बनाया जाता है जिस तरह कि साबुन, बिजली के खटके या स्लाईस की हुई डबल रोटी जैसी आम उपभोक्ता सामग्री।’
यह वैश्वीकरण का दौर है। अब आर्थिक सूत्र आपस में बुरी तरह जुड़े हैं तथा विश्व व्यापार रुपये में न होकर डॉलर में हो रहा है। यदि इसकी एक कड़ी प्रभावित होती है तो बाकी की आर्थिकता भी प्रभावित होती है। वर्तमान आर्थिक संकट को 2008 के उभरे संकट की निस्तरता में ही देखना जाना चाहिए। जिसका तीव्र विस्फोट अमरीका महाद्वीप के दक्षिणी भाग में हो रहा है। बड़ी आर्थिकताएं ब्राज़ील, अर्जन्टीना, पेशगुए, मैक्सिको भी प्रभावित हो रही हैं। वेनेजुएला के बाद इस संकट का कुप्रभाव अर्जन्टीना पर पड़ चुका है। नये हालात में ईरान और अमरीका आमने-सामने हैं। ईरान को पहले ही आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। दोनों के टकराव से भारत में महंगाई का इज़ाफा अनिवार्य होता चला जाएगा। मीडिया यहां से तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ते कदम देख रहा है।
गुज़रे 11 अगस्त को अर्जन्टीना में 27वें राष्ट्रपति चुनाव की पहली यात्रा मुकम्मल हुई, जिसमें सत्ता पक्ष के उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति मुरसीओ माकरी के वाम पक्ष के विरोधी उम्मीदवार अलवेरतो फागडंज के सामने 32.3-47.4 प्रतिशत के भारी अन्तर से पराजय का मुख देखना पड़ा। चुनाव परिणाम के 24 घंटे बाद ही अर्जन्टीना की स्टाक मार्किट 55 प्रतिशत गिर गई तथा स्थानीय मुद्रा 30 प्रतिशत, वहां की मुद्रा पैसो अमरीकी डॉलर के सामने गिर गई। गिरावट तीस प्रतिशत बताई गई जो आर्थिकता के ढांचे में बड़ा झटका कहा जा सकता है। आर्थिकता के विश्व इतिहास में यह आज के दौर की सबसे बड़ी गिरावट का नमूना है। चुनाव परिणामों में एक झटके के साथ सरकार की जड़ें हिल गईं। रातों-रात पूरे देश में अफरा-तफरी का वातावरण बन गया। असुरक्षा इससे अलग नहीं होती। संकट की इस घड़ी में विदेश वित्त मंत्री निकोलस दुखोवने ने अहम नवीनीकरण की ज़रूरत का बयान देकर अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। सोवियत संघ रूस में भी ग्लासनोस्त जैसे बयान जारी किये गये। विदेश निवेशक जोकि चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा में बैठे थे समझ गये थे कि उनका पक्ष धर प्रतिनिधि अंतिम विजय से काफी दूर है, सोचें अपनी बची-खुची पूंजी निकाल कर प्रस्थान कर गये। इसीलिए आज ‘आवारा पूंजी’ नाम प्रचलन में आया। उनका देश से नहीं पूंजी से लगाव रहता है। अपने लाभ पर आंच आते ही ये अपना धन उठा कर भाग जाने में ही विश्वास करते हैं। वह समझ रहे थे कि वामपंथी आर्थिक क्षेत्र में सरकारी हस्ताक्षेप की नीति पर ही चलते हैं जिससे उनकी मुनाफाखोरी सीमित ही रहेगी। इस अविश्वास तथा अस्थिरता ने एक ही दिन में आर्थिकता की नींव हिला कर रख दी। अमरीकी साम्राज्यवाद को लेकर अन्य मुल्कों में भी छटपटाहट पहले से ही है।
हम यदि भूल नहीं कर रहें तो अर्जन्टीना का वर्तमान संकट नव-उदारवादी नीतियों के कारण है। जबकि बड़ी शक्तियों के लिए यह राजनीतिकरण का अवसर है। स्थानीय मुद्दों को उलझा कर तमाशा खड़ा करने की फिराक में अनेक हैं। आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर अपने पर निर्भर बनाने की ताक में उसके संकट को बढ़ाया जा सकता है। अन्य देशों को भी (भारत सहित) इस घटनाक्रम से काफी कुछ सीखना चाहिए। एक संतुलित सोच के साथ आगे फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए। आर्थिक संकट की मार किसी भी देश के लिए भयानक होती है।