केन्द्र का इस वर्ष का बजट किसान-हितैषी नहीं


किसान संस्थाओं द्वारा केन्द्र के वर्ष 2020-21 बजट को किसान हितैषी नहीं अपितु किसान विरोधी कहा गया है। इसको बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मुनाफे के लिए बताया गया है। केन्द्र सरकार का 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने और इसको बढ़ाकर दुगुना करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए बजट में कुछ भी नहीं और न ही फसली विभिन्नता जो समय की ज़रूरत है, उसको लाने के लिए कोई प्रयास किया गया है। बजट के तौर पर कृषि संकट और बढ़ने की सम्भावना है और किसान और कज़र् में डूब जायेंगे, जो 16 सूत्रीय सुझाव दिए गए हैं, इससे न तो कृषि विकास होने की उम्मीद है और न ही इसमें कोई सुधार आने की सम्भावना है। 
कृषि जिसमें ग्रामीण विकास और सिंचाई क्षेत्र शामिल हैं, उसके लिए रखे 2.83 लाख करोड़ रुपए नामात्र हैं, इसमें कृषि का हिस्सा तो 1.42 लाख करोड़ ही है। बढ़ रही महंगाई और कीमतों को देखते हुए यह धन-राशि बहुत ही कम है। गत वर्ष की अपेक्षा 5.6 प्रतिशत की वृद्धि तो वस्तुओं की बढ़ रही कीमतों की भी पूर्ति नहीं करता। कुल देश की पैदावार (जी.डी.पी.) में कृषि का हिस्सा मात्र 14 प्रतिशत रह गया, जबकि वार्षिक विकास दर गत वर्ष के दौरान 2.8 प्रतिशत थी। भारत में 42 प्रतिशत आबादी को और पंजाब में 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को कृषि धंधे में रोज़गार मुहैया है। 
कृषि को बजट में कोई खास महत्व नहीं दिया गया प्रतीत होता। इस समय जो आर्थिक मंदहाली आई है, उसका मुख्य कारण लोगों की खपत वस्तुओं और सेवाओं संबंधी मांग में कमी आना है। उपभोक्ताओं का खपत की वस्तुओं पर खर्च कम हो रहा है, गांवों में तथा कृषि के धंधे में बड़ी जनसंख्या होने के कारण इस क्षेत्र की खपत (चीज़ों की मांग) में वृद्धि करना ज़रूरी है, जो कृषि के विकास और किसानों की आमदनी बढ़ाने के बाद ही हो सकता है। बजट में इस पहलू को नज़रअंदाज़ किया गया है। बजट में किसानों को ऋण के जाल से निकालने के लिए कुछ नहीं दिया गया प्रतीत होता। कृषि के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन ऋण का बोझ बढ़ने के कारण आत्महत्याओं का रुझान बढ़ रहा है, जिसको रोकने के लिए बजट में कुछ नहीं दिया गया। किसानों के कृषि खर्च कम करने के लिए भी बजट में कुछ नहीं। कीमियाई खादों पर सब्सिडी कम कर दी गई है, जिस कारण किसानों को यह महंगे उपलब्ध होंगे और कृषि खर्चों में वृद्धि का कारण बनेंगे। कीमियाई खादों के उद्योग कि अगले वर्ष के शुरू में 60,000 करोड़ रुपए की राशि लेने योग्य होगी। यह उद्योग निजी क्षेत्र में तो मर गया प्रतीत होता है। कोई निजी क्षेत्र में इस उद्योग में लागत करने के लिए आगे नहीं आ रहा। सभी नये प्लांट सरकारी क्षेत्र में स्थापित किए जा रहे हैं, जो आने वाले वर्षों में एक समस्या बन सकते हैं। 
खाने वाले अनाज की सब्सिडी में गत वर्ष के मुकाबले बहुत भारी कमी की गई है, जिसको 1.84 लाख करोड़ से घटाकर 1.15 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। अनाज के भण्डार बढ़ रहे हैं, अनाज का बफर 21.4 मिलियन टन चाहिए, इसमें असम्भावित वृद्धि हुई है। यह बढ़कर साढ़े तीन गुणा हो गया  है। गेहूं की इस रबी के खेतों में खड़ी फसल बहुत आशाजनक है। इसके 113 मिलियन टन तक होने का अनुमान है। इसके निर्यात की कोई सम्भावना नहीं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कीमत से भारत की गेहूं की कीमत अधिक है। यदि निर्यात करना है तो सब्सिडी देनी पड़ेगी। यदि सब्सिडी दी जाती है तो यह सब्सिडी देने को विश्व व्यापार संस्था (डब्ल्यू.टी.ओ.) में चुनौती दी जायेगी। सरकारी खरीद के तौर पर जो गेहूं बड़े पैमाने पर खरीदी जायेगी और बफर स्टॉक में और वृद्धि होगी, अनाज भण्डार के प्रबंधों में कोई अधिक सुधार नहीं आया। पंजाब में तो यह स्थिति और भी खराब है और इस रबी के मौसम में भण्डार और भी बढ़ेंगे। भण्डार 85-90 लाख टन तक पहुंच जायेंगे। इसके परिणामस्वरूप बजट में कुछ नहीं किया गया प्रतीत होता। मनरेगा का पैसा कम कर दिया गया है। इससे गांवों में रह रहे गरीबों की सहायता में कमी आयेगी। बजट में ‘प्रधानमंत्री ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महा अभियान’ (पी.एम. कुसुम) और कृषि उद्यान जैसी योजनाएं किसानों को कोई राहत नहीं पहुंचा रही। पंजाब में तो इन योजनाओं का अब तक कोई प्रभाव नहीं। 
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कोई सुधार लाने का प्रयास नहीं किया गया। बजट के वर्ष (2020-21) में एफ.सी.आई. को चावल 37 रुपए किलो और गेहूं 27 रुपए किलो पड़ने का अनुमान है। इसकी कीमत 67 प्रतिशत जनसंख्या से क्रमवार तीन रुपए किलो और दो रुपए किलो वसूल की जाती है। आज़ादी के सात दशक बाद भी क्या 67 प्रतिशत आबादी को इस छूट से खाने के लिए चावल और गेहूं देने की ज़रूरत होनी चाहिए। किसान संस्थाओं ने डीज़ल, कीमियाई खाद, बिजली आदि की कीमतें कम करने की मांग की है। ऋण माफी योजनाएं बड़े-बड़े घरानों की बजाय छोटे किसानों को राहत पहुंचाएं। किसान नेताओं ने मांग की है कि प्रोफेसर स्वामीनाथन कमिशन रिपोर्ट द्वारा की गई सिफारिश  के अनुसार उनके उत्पादों पर आई लागत (सभी खर्च शामिल) की 1.5 गुणा कीमत उनको दी जाए। इस संबंध में भी बजट में कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाये गये।
किसान संस्थाओं ने कीमियाई खादों पर सब्सिडी 79,000 करोड़ रुपए से घटाकर 71,000 करोड़ रुपए किए जाने पर कड़ा रोष प्रकट किया है। उनका कहना है कि यदि किसान फसल को सिफारिश किए अनुसार कीमियाई खाद नहीं डालेंगे तो इससे उत्पादकता और उत्पादन कम होंगे, जिससे किसानों की आमदनी और भी बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने कहा जो भारतीय कृषि खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) का अनाज का भण्डार कम करने का सुझाव दिया गया है, उससे पंजाब और हरियाणा में गेहूं और धान की सरकारी खरीद प्रभावित नहीं होनी चाहिए। यदि सरकारी खरीद में कोई कमी आई तो इससे किसानों में रोष और असंतोष बढ़ेंगे और इन राज्यों में कृषि संकट गम्भीर हो जायेगा। किसान संस्थाओं ने कार्पोरेट सैक्टर को मंडियां स्थापित करने की छूट देने पर भी कड़ी आपत्ति जताई है, उनके प्रतिनिधियों ने कहा है कि यदि ऐसा किया गया और वर्तमान मंडी सिस्टम तथा आढ़तिया प्रणाली को खत्म करके बड़ी कम्पनियों को लाया गया तो यह किसानों की लूट की किए जाने की तरफ एक कदम होगा। 
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