बेजुबानों की जुबानी ...

सर्दियों की गुनगुनी धूप में मूंगफली के स्वाद का लुत़्फ लेते हुए मेरी नज़र एक गिलहरी पर पड़ी। उसकी बड़ी-बड़ी काली आंखें मुझ पर टिकी थीं। उसने अपना नाक फुरकाया और अपने अगले नन्हे पांवों से हाथों का काम लेते हुए थोड़ा-सा मुंह रगड़ा, फिर मेरी ओर देखा...। ‘शायद ! यह मूंगफली खाना चाहती है’, मैंने सोचा। मैंने कुछ दूरी पर मूंगफली के दाने घास पर रख दिए और फिर वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ गई। कुछ पल के बाद मैंने अपनी गर्दन को धीमे से घुमा कर पीछे देखा, गिलहरी और उसके साथ तीन कबूतर मूंगफली का आनन्द ले रहे थे। हम सब चेतन अथवा अवचेतन रूप में इस विश्वास के साथ जीते हैं कि केवल मनुष्य ही एक ऐसा जीवित प्राणी है, जो अपने विचार, मनोभाव एवं एहसास को प्रकट करने के समर्थ है, परन्तु क्या कभी हमने यह सोचा है कि इन बेज़ुबान जानवरों एवं पक्षियों के दिलो-दिमाग में क्या चल रहा है? हम सभी ने चींटियों के अनुशासन, मधुमक्खियों की योजनाबंदी, कौवों की एकता एवं कुत्तों की व़फादारी की अनेक कहानियां सुनी हुई हैं, परन्तु आज भी वैज्ञानिक यह समझने में पूर्णतया समर्थ नहीं हैं कि विश्व के ये  बेज़ुबान जीव-जन्तु प्यार, दु:ख, क्रोध, वियोग, दर्द, एकाकीपन, ़खुशी, भय कैसे महसूस करते हैं तथा आपस में इन भावनाओं की अभिव्यक्ति कैसे करते हैं। सब जीवित प्राणी इन्सानों की भांति ही महसूस करने की सामर्थ्य रखते हैं तथा उसी के अनुरूप अपने हाव-भाव प्रकट करते हैं। हम में से बहुत से लोग मांसाहारी हैं। अधिकतर चमड़े की वस्तुएं पहनने एवं सजावट के लिए चमड़े का सामान खरीदने के शौकीन हैं। कइयों ने पक्षियों को पिंजरों में रखा हुआ है तथा हम में से लगभग सभी सर्कस देख कर बड़े हुए हैं, परन्तु हम में से शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि इस प्रकार आम जीवन में विचरण करते हुए अनभिज्ञता में हमसे किए गए कार्यों का इन बेज़ुबानों पर क्या असर पड़ेगा। विश्व में लाखों बेज़ुबान जानवर एवं पक्षी मनुष्य के अत्याचार का शिकार हो रहे हैं तथा अपने जीवन के लिए मूक लड़ाई लड़ रहे हैं। परन्तु खामोशी अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ सकती क्योंकि हम इन पर दिल दहला देने वाले कहर प्रतिदिन ढाते हैं। कुत्तों को पिंजरे में रखना अथवा फिर हाड़-तोड़ शीत में तथा झुलसाती हुई गर्मी में पूरा दिन ज़ंजीर के साथ बांध कर रखना ही इनके खूंखार होने का मुख्य कारण है। क्या सबसे व़फादार माने गए इस प्राणी को प्यार भरी पुचकार नहीं चाहिए? कहा जाता है कि प्यार से तो पिटबुल जैसे कुत्तों की खूंखार नस्ल भी अपना खतरनाक रूप त्याग देती है। क्या हम इन्हें खूंखार बनाने के ज़िम्मेदार नहीं? क्यों हम इनके कानों को कुतरते हैं, पूंछ को काटते हैं तथा उन्हें ‘डॉग फाइट’ के लिए और तेज़ बनाने हेतु उन पर बिजली के झटके देने जैसे अत्याचार ढा कर अपने मन को प्रसन्न करते हैं? आवारा पशु जो घायल स्थिति में, चारा-पानी उपलब्ध न होने के कारण सड़कों पर लावारिस घूमते-फिरते हैं, क्या इन बेज़ुबानों की ऐसी हालत बनाने के लिए हम ज़िम्मेदार नहीं? सर्कस में छोटे-छोटे पिंजरों में जंगली जीवों को बंद करके, भूखा-प्यासा रख कर, उनकी मारपीट करके, हम उन्हें ही अनेक करतब सिखाते हैं। हम कई जीवों की उनके जीवित रहते अपने पहरावे के लिए चमड़ी अथवा फिर खाल उतारते हैं। क्या उन्हें दर्द नहीं होता? क्यों हम विशाल आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के पंखों को कुतर कर उन्हें पिंजरों में बंदी बनाते हैं? क्यों वैज्ञानिक परीक्षणों के नाम पर हम कई जीवों पर अमानवीय अत्याचार ढाते हैं? यदि हम समझते हैं कि यह इन्सानियत है तो फिर दरिन्दगी क्या हो सकती है? कई मनोवैज्ञानिकों एवं समाज वैज्ञानिकों का कथन है कि जो लोग इन बेज़ुबानों पर अत्याचार करते हैं, वे यहीं नहीं रुकते अपितु इन्सानों पर भी इसी प्रकार के घृणित अत्याचार करके अपने भीतर की हीन भावना की अग्नि को बुझाने की कोशिश करते हैं। अमरीका की फैडरल ब्यूरो ऑफ इन्वैस्टीगेशन (एफ.बी.आई.) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘सीरियल किलर’ एवं बलात्कारी बचपन में जानवरों के साथ पाशविकतापूर्ण हरकतें करते हैं तथा जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, यही पाशविकता उनके दिलो-दिमाग पर छाई रहती है। फिर इस बीमार मानसिकता वाले मनुष्य जानवरों को छोड़ कर इन्सानों पर भी ऐसी ही पाशविकता दर्शाते हैं। इस प्रकार के अनेक उदाहरण आज हम सब के समक्ष हैं। नित्य-प्रति दिल को दहला देने वाली कई घटनाएं घटित होती हैं। यह चिन्ताजनक है कि मनुष्य की दया-भावना एवं ‘इन्सानियत’ क्यों अलोप होती जा रही है? भगवान द्वारा रचित इस सुंदर संसार में उसके बनाए भांति-भांति के असंख्य दिलचस्प जीव हैं। इन बेज़ुबान जीवों को मनुष्यों की भांति धन-दौलत अथवा शोहरत की लालसा नहीं। इन्हें तो बस प्यार की ही भूख है। आओ, हम सभी अपने गुरुओं-पीरों की ओर से प्रदत्त दया की भावना से दूर हुए इन बेज़ुबान जीव-जन्तुओं पर अत्याचार ढाने वालों को सही संदेश देने के लिए प्रयास करें तथा रोबोट बनाते-बनाते स्वयं रोबोट बन गए मनुष्य को, स्वयं भी खुल कर ज़िन्दगी जीने एवं अन्यों को भी ज़िन्दगी प्रदान करने के पथ पर डालें। 

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