मानवता की खातिर तबलीगी जमात वाले सामने आएं

विश्वव्यापी महामारी कोरोना से हिमाचल भी अछूता नहीं रहा। हिमाचल प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या में दिल्ली की जमात में शामिल होने वाले समुदाय के ही ज्यादा मामले सामने आए हैं। शुरुआती दौर में हिमाचल में 4 ही मामले आए थे, लेकिन जैसे ही दिल्ली में जमात में शामिल होने वाले लोगों की शिलाख्त सामने आई तो दिल्ली सहित पूरे देश में हाहाकार मच गया।  दिल्ली की जमात में शामिल होने के लिए हिमाचल के लोग भी गए थे, ये वाले लोग सामने नहीं आ रहे थे और छिप रहे थे। सरकार ने अपील भी की लेकिन उनके सामने न आने की सूचना ही सामने आती रही। इसी बीच मानवता की खातिर प्रदेश के तीन मुस्लिम समाज के अफसरों ने आगे आकर समाज के लोगों से सामने आने की अपील की, जिनमें आईजी आसिफ जलाल (भारतीय पुलिस सेवा), भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यूनुस खान और आईजीएमसी के डिप्टी एमएस डॉक्टर शाद रिज़वी ने सोशल मीडिया के माध्यम से निजामुद्दीन मरकस  में  तब्लीगी जमात में शामिल लोगों से अपील की कि वे सामने आएं। उनको किसी भी प्रकार से डरना नहीं चाहिए। सभी की जांच की जाएगी और जिनमें कोरोना के लक्षण पाए जाएंगे, उनका इलाज किया जाएगा। मुस्लिम समाज के अधिकारियों ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई बीमारी फैले तो घर पर ही नमाज़ अदा करें। इस तरह मुस्लिम अधिकारियों ने अपने समाज के लोगों को समझाने का प्रयास किया हैं कि लगातार पूरे देश में फैल रही बीमारी को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र उपाय है। यह सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखें और बीमारी को फैलने से रोकें। जमात में शामिल होने वाले लोग इस अपील से प्रभावित भी हुए और सरकार के सामने आए। लेकिन हिमाचल में अचानक मामलों में बढ़ौतरी हो गई जिससे संकट तो आया लेकिन इस पर नियंत्रण भी कर लिया गया। यह तभी संभव  हो पाया जब कोरोना पॉज़िटिव लोगों को समाज के अन्य लोगों से दूर रखकर क्वारेंटीन किया गया, जिससे हिमाचल में और ज्यादा  कोरोना वायरस फैलने से बच गया।
मदद की सराहना, फोटो पर सवाल
देश में आए संकट के समय सभी देशवासी एकजुटता दिखाते हुए सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। कोई जरूरतमंदों को खाना खिला रहा है तो कोई राशन सामग्री वितरित कर रहा है। वहीं बहुत से दानवीर प्रधानमंत्री राहत कोष और मुख्यमंत्री राहत कोष में दान दे रहे हैं। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और उनकी पत्नी मुक्ता शर्मा ने राज्यपाल के माध्यम से 2.51 लाख की राशि प्रधानमंत्री केयर्स फंड में अंशदान दिया है। इसी तरह से सैकड़ों लोग मुख्यमंत्री, डीसी और सीधे ऑनलॉइन एकाउंट से राहत कोष में राशि ट्रांस्फर कर रहे हैं। सभी के आर्थिक सहयोग से देश कोरोना से लड़ाई लड़ने के लिए मजबूत होगा। इसके साथ ही दान देने वाले लोगों को लेकर एक सवाल भी उठ रहा है।  दानवीर लोग जरुरतमंदों को खाना और राशन बांटने का सराहनीय कार्य तो कर रहे हैं, लेकिन जरूरतमंदों को राहत सामग्री देते समय फोटो खींचकर सोशल मीडिया में डाल रहे हैं, जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं। भारतीय समाज में दान को लेकर कहा गया है कि दान दाहिने हाथ से दें तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। इसका सीधा सा आशय यह कि किसी भी प्रकार का दान गुप्त ही होना चाहिए। इसका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। इससे न केवल जरूरतमंदों की बदनामी होती है बल्कि दान का महत्व भी खत्म हो जाता है।
लॉकडाउन : उम्मीद से अधिक कामयाब प्रशासन
प्रशासनिक व्यवस्था की सही परीक्षा संकट के समय ही होती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और शिमला जिले में प्रशासनिक व्यवस्था वाकई प्रशंसनीय है। कांगड़ा और शिमला के प्रशासनिक अधिकारियों ने लॉकडाउन के दौरान जनता को नियंत्रित करने और उनको ज़रुरत की वस्तुओं की आपूर्ति करने में बेहतर कार्य किया है। हिमाचल में सबसे पहले कोरोना के मामले कांगड़ा जिले में आए लेकिन वहां के डीसी ने बेहतर कार्यक्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे किसी को कोई परेशानी नहीं हुई और लॉकडाउन का कड़ाई से पालन भी किया गया। कांगड़ा जिले में ज्यादा खतरा इसलिए था कि वहां पर विदेशियों का आना-जाना अधिक है लेकिन उपायुक्त ने सरकारी आदेशों का पालन करने के लिए उचित प्रबंध किए और जनता को समझाने में भी कामयाबी मिली। वहीं जनता को घर में रहकर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई की सुचारू रुप से हुई। कागड़ा की तरह शिमला के उपायुक्त अमित कश्यप ने भी दिन रात शहर का दौरा करते हुए सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने में कामयाब रहे। शहर में कर्फ्यू में ढील के समय आवश्यक सामान की दुकानों का खुलना और लोगों को जरूरत का सामान उपलब्ध होता रहा, जिससे संकट के समय में इन प्रशासनिक अधिकारियों ने बेहतर कार्यक्षमता का प्रदर्शन किया।